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Thursday, November 15, 2007
एग्रीग्रेटरों से लिंक ब्लोग पर ही समस्या क्यों ?
अपने आप में यह आश्चर्य जनक बात है कि आखिर एग्रीग्रेटरों से लिंक ब्लोग पर ही यह समस्या क्यों है? क्या किसी को हिन्दी ब्लोग एक जगह दिखना नहीं सुहाता है-या परमजीत बाली और मैं ही इसी समस्या के शिकार हैं। कम से कम यह समस्या ब्लागस्पाट.कॉम की नहीं लगती-अगर होती तो मेरे यह कहीं लिंक न होने वाले ब्लोग क्यों काम कर रहे हैं। मैंने जो कर के देखा है वही लिख रहा हूँ और बाकी कोई सुधीजन हो तो बताये मैं क्या करूं? उम्मीद करता हूँ कि सक्रिय लोग इस तरफ ध्यान देंगे।
Wednesday, October 3, 2007
संत कबीर वाणी: साधू वह जो समदर्शी हो
चाणक्य नीति:ज्ञानी को लोभी और राजा को सन्तुष्ट नहीं होना चाहिए
- साहसी मनुष्य को अपने पराक्रम का पुरस्कार अवश्य मिलता है। सिंह की गुफा में जाने वाले को संभव है काले रंग का मोती गजमुक्ता मिल जाये परंतु जो मनुष्य गीदड़ की मांद में जायेगा तो उसे गाय की पुँछ और गधे के चमडे के अलावा और क्या मिल सकता है।
- धन का लोभ करने वाला ज्ञानी असंतुष्ट रहते हुए अपने धर्म का पालन नहीं कर पाता, इसलिए उसका गौरव शीघ्र ही नष्ट हो जाता है। उसी तरह राजा भी सन्तुष्ट होते ही नष्ट हो जाता है क्योंकि वह अपने राज्य के प्रति सन्तुष्ट होने के कारण महत्त्वान्काक्षा से रहित सुस्त हो जाता और शत्रु उसे घेर लेता है।
- उनका जीवन व्यर्थ है जिन्होंने कभी अपने हाथों से दान नहीं किया, कभी अपने कानों से वैद नहीं सुना, अपने आँखों से सज्जन पुरुषों(साधू-संतों) के दर्शन नहीं किये, जिन्होंने कभी तीर्थयात्रा नहीं की जो अन्याय से प्राप्त किये धन से अपना भरण-भोषण करते हैं, घमंड से जिनका सिर हमेशा ऊंचा रहा।
Tuesday, October 2, 2007
रहीम के दोहे:मागने से पद छोटा हो जाता है
तीन पैग बसुधा करो, तऊ बावनै नाम
यहाँ आशय यह है कि याचना कराने से पद कम हो जाता है चाहे कितना ही बड़ा कार्य करें। राजा बलि से तीन पग में संपूर्ण पृथ्वी मांगने के कारण भगवान् को बावन अंगुल का रूप धारण करना पडा।
कबीर वाणी:उसी धन का संचय करो जो आगे काम आये
सीस चढाये पोटली, ले जात न देख्या कोइ
चाणक्य नीति:क्रोध उतना ही करें जितना निभा सकें
- जिसके प्रति लगाव(सच्चा प्यार) वह दूर होते हुए भी पास रहता है। इसके विपरीत जिसके प्रति लगाव नहीं है वह प्राणी समीप होते हुए भी दूर रहता है। मन का लगाव न होने पर आत्मीयता बन ही नहीं पाती और किसी प्रकार का संबंध बन ही नहीं पाता।
- जिस किसी प्राणी से मनुष्य को किसी भी प्रकार के लाभ मिलने की आशा है उससे सदैव और प्रिय व्यवहार करना चाहिए। मृग का शिकार करने की इच्छा रखने वाला चालाक शिकारी उसे मोहित करने के लिए उसके पास रहकर मधुर स्वर में गीत गाता रहता है।
- विद्वान व्यक्ति वही है जो अपने व्यक्तित्व के अनुकूल ऎसी बात करता हो जो प्रसंग के भी अनुकूल हो। अच्छी से अच्छी बात अप्रान्सगिक होकर प्रभावहीन हो जाती है। यदि वह बात अप्रिय हो और उसमें क्रोध की अभिव्यक्ति आवश्यक हो तो वह भी उतना ही प्रदर्शित करना चाहिए जितना निभा सकें।
Saturday, September 29, 2007
गरीबों के नाम बहुत दर्शन थोड़े-हास्य व्यंग्य
अब सवाल है कि क्या वह लोग प्याज की कीमतों के बढने से इसलिये परेशान है कि इससे गरीब सहन नहीं कर पा रहे या उन्हें खुद भी परेशानी है? या उन्हें अपने पहनावे से यह लग रहा था कि प्याज की कीमतों के बढने पर उनकी परेशानी पर लोग यकीन नहीं करेंगे इसलिये गरीब का नाम लेकर वह अपने साक्षात्कार को प्रभावी बना रहे थे। हो सकता है कि टीवी पत्रकार ने अपना कार्यक्रम में संवेदना भरने के लिए उनसे ऐसा ही आग्रह किया हो और वह भी अपना चेहरा टीवी पर दिखाने के लिए ऐसा करने को तैयार हो गये हौं। यह मैं इसलिये कह रहा हूँ कि एक बार मैं हनुमान जी के मंदिर गया था और उस समय परीक्षा का समय था। उस समय कुछ भक्त विधार्थी मंदिर के पीछे अपने रोल नंबर की पर्ची या नाम लिखते है ताकि वह पास हो सकें। वहां ऐक टीवी पत्रकार एक छात्रा को समझा रहा था'आप बोलना कि हम यहाँ पर्ची इसलिये लगा रहे हैं कि हनुमान जीं हमारी पास होने में मदद करें।'
उसने और भी समझाया और लडकी ने वैसा ही कैमरे की सामने आकर कहा। वैसे उस छात्र के मन में भी वही बातें होंगी इसमें कोई शक नहीं था पर उसने वही शब्द हूबहू बोले जैसे उससे कहा गया था।
प्याज पर हुए इस कार्यक्रम में जैसे गरीब का नम लिया जा रहा था उससे तो यही लगता था कि यह बस खानापूरी है। मेरे सामने कुछ सवाल खडे हुए थे-
- क्या इसके लिए कोई ऐसा गरीब टीवी वालों को नहीं मिलता जो अपनी बात कह सके। केवल उन्हें शहरों में उच्च और मध्यम वर्ग के लोग ही दिखते हैं, और अगर गरीब नहीं दिखते तो यह कैसे पता लगे कि गरीब है भी कि नहीं।
- जो केवल प्याज से रोटी खाता है उसका पहनावा क्या होगा यह हम समझ सकते हैं तो यह टीवी पत्रकार जो अपने परदे पर आकर्षक वस्त्र पहने लोगों को दिखाने के आदी हो चुके हैं क्या उससे सीधे बात कराने में कतराते हैं जो वाकई गरीब है। उन्हें लगता है कि गरीब के नाम में ही इतनी ही संवेदना है कि लोग भावुक हो जायेंगे तो फिर फटीचर गरीब को कैमरे पर लाने की क्या जरूरत है।
- जो गरीब है उसे बोलने देना का हक ही क्या है उसके लिए तो बोलने वाले तो बहुत हैं-क्या यही भाव इन लोगों का रह गया है।
आजादी के बाद से गरीब का नाम इतना आकर्षक है कि हर कोई उसकी भलाई के नाम पर राजनीति और समाज सेवा के मैदान में आता है पर किसी वास्तविक गरीब के पास न उन्हें जाते न उसे पास आते देखा जाता है। जब कभी पैट्रोल और डीजल की दाम बढ़ाये जाते है तो मिटटी के तेल भाव इसलिये नही बढाए जाते क्योंकि गरीब उससे स्टोव पर खाना पकाते हैं। जब कि यह वास्तविकता है कि गरीबों को तो मिटटी का तेल मिलना ही मुश्किल हो जाता है। देश में ढ़ेर सारी योजनाएं गरीबों के नाम पर चलाई जाती हैं पर गरीबों का कितना भला होता है यह अलग चर्चा का विषय है पर जब आप अपने विषय का सरोकार उससे रख रहे हैं तो फिर उसे सामने भी लाईये।
प्याज की कीमतों से कोई मध्यम वर्ग कम परेशान नहीं है और अब तो मेरा मानना है कि मध्यम वर्ग के पास गरीबों से ज्यादा साधन है पर उसका संघर्ष कोई गरीब से कम नहीं है क्योंकि उसको उन साधनों के रखरखाव पर भी उसे व्यय करने में कोई कम परेशानी नहीं होती क्योंकि वह उनके बिना अब रह नहीं सकता और अगर गरीब के पास नहीं है तो उसे उसके बिना जीने की आदत भी है। पर अपने को अमीरों के सामने नीचा न देखना पडे यह वर्ग अपनी तक्लीफे छिपाता है और शायद यही वजह है कि ऐक मध्यम वर्ग के व्यक्ति को दूसरे से सहानुभूति नहीं होती और इसलिये गरीब का नाम लेकर वह अपनी समस्या भी कह जाते है और अपनी असलियत भी छिपा जाते हैं। यही वजह है कि टीवी पर गरीबों की समस्या कहने वाले बहुत होते हैं खुद गरीब कम ही दिख पाते हैं।
Friday, September 28, 2007
सुनो सबकी करो मन की-हिन्दी हास्य कविता
वही पा रहे ज्ञानी का सम्मान
वैद, पुराण और शास्त्र जिन्होंने कभी
समझना तो दूर पढे भी न होंगे
लोगों में करते उनका बखान
कभी सुनकर हैरानी होती है कि
क्या वह सब लिखा है ग्रंथों में
जो सुनते उनका ज्ञान
या कुछ हमसे ही पढने में छूट गया
या चूक गया हमारा ध्यान
कभी कभी तो शक होता है कि
हम कोई और ग्रंथ पढे थे
या तथाकथित ज्ञानियों ने
तथ्य पाने मन से गढे थे
कहीं हम तो नहीं भूल जाते
अपने ही दर्शन का ज्ञान
कहैं दीपक बापू
अपने ही हाथ हैं जिस तरह जगन्नाथ
वैसे ही हमारी बुद्धि है हमारे साथ
किसी के सुने पर इतनी आसान से
यकीन नहीं करते
जब तक जब तक उसकी पुष्टि ना कर लें
खुद ही पढ़कर ग्रंथ करते हैं
प्राप्त करते हैं ज्ञान
कह गए बडे-बुजुर्ग सुनो सबकी
करो वही जो मन रहा है मान
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माया और सत्य-हिन्दी हास्य कविता
यह कभी तय नहीं कर पाए
जिस माना को पाने की चाहत है
उसके आदि और अंत को समझ नहीं पाए
चारों और फैली दिखती है रोशनी
पर कभी हाथ से पकड़ नहीं पाए
कहीं इस घर मे मिलेगी
कहीं उस दर पर सजेगी
और कहीं किसी शहर में दिखेगी
उसके पीछे दौडे जाते लोग
जितना उसके पास जाओ
वह उतनी दूर नजर आये
सौ से हजार
हजार से लाख
लाख से करोड़
गिनते-गिनते मन की भूख बढती जाये
कहै दीपक बापू
माया की जगह जेब में ही है
उसे सिर मत चढ़ाओ
इधर-उधर देख क्यों चकराये
पीछे जाओगे तो आगी भागेगी
बेपरवाह होकर अपनी रह चलोगे
तो पीछे-पीछे आयेगी
जितना खेलोगे उससे
उतना ही इतरायेगी
मुहँ फेरोगे तो खुद चली आयेगी
आदमी की पास उसका है धर्म
करते रहो समर्पण भाव से अपना कर्म
सत्य का यही है मर्म
जीवन के खेल में वही विजेता होते
जो सत्य के साथ ही चल पाए
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Thursday, September 27, 2007
एक ही कंपनी-हिन्दी हास्य कविता
'आज शूटिंग नहीं करूंगा
पैकअप करा दो
मेरा मूड है खराब'
निर्माता ने अपना मोबाइल
उसकी तरफ बढ़ाया और कहा
'मैंने नंबर लगा दिया है
पहले इस पर बात कर लो
फिर देना जनाब'
हीरो ने नंबर देखा और घबडाया
अपने सेक्रेटरी को बुलाया
उसने जब मामला समझा
तब उसने भी अपना मोबाइल
निर्माता की तरफ बढाया
और कहा
'उस बिचारे को क्या धमकाते हो
मुझ से बात करो
आप इस नंबर पर बात करो पहले जनाब '
निर्माता का सेक्रेटरी भी वहीं खड़ा
उसने भी नंबर देखा और खुश होकर बोला
'अरे काहेका झगडा आप और हम एक ही
कंपनी का मोबाइल इस्तेमाल करते हैं
फिर क्यों झगडा करते हैं साहब'
हीरो ने कुछ सुना कुछ समझा
और बोला
'बात एक कंपनी ही की है
यह सुनकर मैं खुश हुआ
अब तो शूटिंग शुरू करो जनाब'
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समस्याओं के जंगल में आन्दोलन-हिन्दी हास्य कविता
जुलूस सजाते हैं
चीख-चिल्लाकर नारे लगाते हैं
और फिर आश्वासन और वादों का
पुलिंदा लेकर वापस आते हैं
कई बरस से चल रहा है
आंदोलनों का सिलसिला
पर फिर भी किसी को कुछ नहीं मिला
समस्याओं के रोग नित बढते जाते हैं
अभी तक इतने आश्वासनों, वादों और
घोषणाओं के पुलिंदे बंट चुके हैं कि
उनेमें कोई तोहफे होते तो
सब जगह इन्द्रपुरी जिसे दृश्य होते
पर फिर जुलूस के लिए
कहाँ से लोग जुटाए जाते
कमरे के बाहर की राजनीति तो
दिखाई देती है
पर अन्दर के सौदे कौन देखे
इसलिये लोग जहाँ से चलते हैं
फिर लॉट कर वहीं अपने को पाते हैं
समस्याओं के इस जंगल में
आंदोलन रेंगने वाले कीड़े की
तरह शोभा पाते हैं
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सफलता का ठेका-हिन्दी हास्य कविता
किसी के पास विज्ञान का
किसी की पास शिक्षा का है ठेका
किसी ने लिया है
इंडियन आइडियल बनाने का
किसी के पास है विश्व चैंपियन
बनाने का ठेका
पालक अपने बालकों को
उनसे पास भेजकर सोचते हैं
सब काम अपने आप हो जायेंगे
अब वह सिरमौर ही बनकर घर आएंगे
जो सफल हो जाते हैं वह
गाते हैं ठेकेदारों की महिमा
जो असफल हौं वह अपनी
किस्मत को दोष देकर रह जाते हैं
हर तरह की गारंटी वाला
सब जगह चल रहा है ठेका
Wednesday, September 26, 2007
स्कूल ने बोर्ड बदला-हास्य हिन्दी कविता
छात्रो की भर्ती बढाने के लिए
अपने प्रचार के पर्चों में
शिक्षा के अलावा अन्य गतिविधियों में
संगीत, गायन, नृत्य और अभिनय में
इस तरह प्रशिक्षण देने का
दावा किया गया था कि
बच्चा इंडियन आइडियल प्रतियोगिता में
नंबर वन पर आ जाये
ट्वंटी ओवर में विश्व कप मे देश जीता
मिटा कर लिखा गया अन्य गतिविधियों में
यहाँ ट्वंटी ओवर क्रिकेट सिखाने की
विशेष सुविधा उपलब्ध है
जिसमे सिक्स लगाए का
जमकर अभ्यास कराया जाता है
जिससे खिलाड़ी सिक्स सिक्सर
लगाने वाला बन जाये
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बाजार और प्रचार-हिन्दी हास्य कविता
मर्जी पर नहीं चलता बाजार
करता है काम एक तंत्र
जिसे कहते हैं प्रचार
सामान खरीदने वाले
कही रेडियो पर सुना हो
कही टीवी पर देखा को
कही पत्र-पत्रिका में पढा हो तब
बनाते अपने विचार का आधार
कभी कौन बनेगा करोड़पति
कभी इंडियन आइडियल
तो कभी चाहिए क्रिकेट का हीरो
उत्पाद बेचने के लिए
आजकल जरूरी है यह सब
नहीं तो सिमट जाता है जीरो
पर पूरा व्यापार
कहै दीपक बापू
आदमी की देह से ज्यादा
उसकी अक्ल पर काबू पाने के लिए
चल रही है विज्ञापन की जंग
जिसमें पैसे के अलावा कोई
किसी का साथी नही
कोई किसी के संग
साथ अपने अक्ल लेकर जाओ बाजार
ठगी से बच नही सकते
सस्ती चीज कही से ले नहीं सकते
किसी चीज की गारंटी भी नहीं उपचार
किसी चीज को खरीद कर ठग जाओ
तो भूल जाओ
मत करो पछतावे का विचार
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इंडियन आइडियल-हास्य कविता
'आई लव यू' का प्रपोजल
लडकी ने 'सोचूँगी पर मेरी पसंद है
कि इंडियन आइडियल जैसा कोई'
कहकर लगा दिया डिस्पोजल
वह खुश हो गया
और हर रोज उसकी राह में खडा होकर
नित नए रचता स्वांग
जब वह निकलती वहाँ से
फिल्मी गाने ऐसे गाता
जैसे पी रखी हो भांग
वह उसे मुस्कराकर देखती और निकल जाती
वह खुश होता हर पल
कई दिन तक चला यह नाटक
पर अभी तक मंजूर
नहीं हुआ था उसका प्रपोजल
उस दिन लडकी उसके पास से गुजरी
और जोर से बोली
'बंद करो यह फिल्मी गाने
अब नहीं रह गए मेरे लिए इसके मायने
अब मेरी पसंद है
ट्वंटी ओवर में सिक्स सिक्सर
लगाने वाले जैसा आइडियल'
लड़का हक्का बक्का खडा रहा
ओपनिंग होने से पहले ही
उसके प्यार का डि स्पोजल
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Tuesday, September 25, 2007
चौकों-छक्कों से देश का नाम रोशन करेंगे-हास्य हिन्दी कविता
धीरज नहीं था
इसलिये बालक
इंडियन आइडियल बनने के लिए
नृत्य और संगीत के अभ्यास में जुटे थे
तिस पर चक दे इन्डिया के वजह से
खेलों में देश का नाम रोशन करने का काम
फिल्मी हीरो के जिम्मे छोडे थे
'दोस्त दोस्त ना रहा
प्यार प्यार ना रहा' की तर्ज पर
अलग-अलग होकर
ख़्वाबों में भूलें थे
बीस ओवर में देखा जो धोनी एंड कंपनी का
जोहानसबर्ग में धमाका
भूल गए सब
और अब दोस्त ही दोस्त की
तलाश में जुटे थे
सब चिल्ला रहे थे
'आओ चलो फिर शुरू करें क्रिकेट
कोई जरूरत नही हैं पचास ओवर की
सारा कमाल बीस ओवर में ही करेंगे
कोइ जरूरत नहीं लोगों के एस एम एस की
हम तो चौकों और छक्कों से ही
अपनी देश का नाम रोशन करेंगे
जहाँ अपने हाथ ही होंगे जगन्नाथ
क्या करेंगे लेकर फिल्मी गीतों का साथ
हम तो अपनी सफलता के गीत खुद लिखेंगे
और वह सब अगले
विश्व कप की तैयारी में जुटे थे
और इस तरह
असली इंडियन आइडियल बनूंगा-हिन्दी हास्य कविता
एक दिन ही चढ़ा
दूसरे दिन उतरा
बालक को करा रहे थे
माता-पिता म्यूजिक की प्रेक्टिस
उसके लिए जुटाए थे तमाम सामान
और फिल्मी गानों के केसिट्स
और कह रहे
'लगा रह मुन्ना भाईस की तरह
हम तेरे लिए जुटाएँगे
चारों तरफ से एस एम एस'
बीस ओवरीय विश्व कप में
भारत की जीत पर
बालक जोर से बिफरा
उठा लाया घर से कबाड़ से पुराना बल्ला
और बोला
'मैं नकली नहीं
असली इंडियन आइडियल बनूंगा
दूसरों की धून पर नृत्य नही करूंगा
अब तो बीस ओवर की राह पर चलूँगा
लोगों के एस एम एस की राह नही तकूंगा
उनको ताली बजाने के लिए मजबूर करूंगा'
और वह बरसात में खेलने चल पडा
Monday, September 24, 2007
श्रीगीता का ज्ञान
भक्ति भाव से श्रीगीता
फिर भी नही लगता आया हमें ज्ञान
पता नहीं लोग पढते हैं या नहीं
समझ से परे लगता उनका बखान
श्रीगीता का यही संदेश समझ में आता है
'कर्म जैसा ही फल होगा
निष्काम भक्ति से परमात्मा प्रसन्न होंगे
करेंगे जीवात्मा का कल्याण'
ईश निंदा हेतु किसी के शीश पर प्रहार
करने का हमने नहीं देखा उसमें ज्ञान
परमात्मा द्वारा स्वत: ही
निंदकों के लिए किया गया है
कीट योनि में भेजने का विधान
कैसे ले सकता है यह जिम्मा कोई इन्सान
कहैं दीपक बापू
हो सकता है हमसे श्रीगीता का श्लोक
आख़िर हम हैं इन्सान और यह है भूलोक
न देवता हैं, न निवास है स्वर्ग लोक
गलतियों के पुतले हैं, देह का नहीं अभिमान
हम तो इतना जानते
युद्ध से विरक्त हो रहे अर्जुन को
वीरता दिखाने के लिए प्रेरित करते हुए भी
दिया था श्री कृष्ण जी ने अहिंसा का संदेश
सबके कर्मों का फल देने का
अपने पास ही रखा विधान
फिर भी महाज्ञानी होने का दवा नहीं करते
हम संशय से जूझ रहे हैं
ढूंढते हैं कोई ज्ञानी-ध्यानी
जो इस विषय पर हमें दे ज्ञान
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Saturday, September 22, 2007
उसे पुकारों दिल से
तंत्र-मन्त्र कर भगाने का
नाटक करते नजर आते हैं
बीमारी चिंताओं से बढ़े
वह हवाओं की बताते हैं
हरकते करे दीवानों जैसी
असर शैतानों का बताते हैं
विश्वास की कमी अविश्वास करती पैदा
फसल काटने के लिए सभी जगह
सर्वशक्तिमान की कृपा का दावा
कराने वाले दलालों के ठिकाने मिल जाते हैं
अशिक्षितों का क्या
शिक्षित भी उनके यहाँ हाजरी लगाते हैं
मरीज कहाँ जाएँ बिचारे
डाक्टर तक वहाँ लाईन लगाते हैं
कहैं दीपक बापू
वह बैठा अन्दर मुस्कराता है
जिसे इधर-उधर ढूँढने जाते हैं
उसकी कृपा वह क्या दिलाएंगे
जो उसके नाम पर रोटियाँ सेंके जाते हैं
एक हाथ उठाएं दुआ के लिए
दूसरे से पैसा लिए जाते हैं
बहुत सारे मन्त्र हैं
खुद ही जप कर
अपनी दवा खुद ही कर लो
भला जादू के मन्त्र से कभी
विश्वास और प्यार जीते जाते हैं
नाम कोई भी हो उसे पुकारो दिल से
तभी उसके अपने पास होने के
सहज अनुभूति पाते हैं
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बहस और तर्क तो विद्वानों को करना चाहिए
स्वतंत्रता के बाद इस देश में सभी संगठनों, संस्थाओं और व्यक्तियों की कार्यशैली का एक तयशुदा खाका बन गया है जिससे बाहर आकर कोई न तो सोचना चाहता है और न उसके पास ऐसे अवसर हैं। धर्म, विज्ञान, अर्थशास्त्र, साहित्य, राजनीति, फिल्म और अन्य क्षेत्रों में बहुत लोग सक्रिय हैं पर प्रचार माध्यमों में स्थान मिलता है जिसके पास या तो कोई पद है या वह उन्हें विज्ञापन देने वाला धनपति है या लोगों की दृष्टि में चढ़ा कोई खिलाडी या अभिनेता है-यह बिल्कुल जरूरी नहीं है कि उसे उस विषय का ज्ञान हो जिस पर वह बोल रहा हो। इसी कारण सभी प्रकार की बहस बिना किसी परिणाम पर समाप्त हो जाती हैं या वर्षों तक चलती रहती हैं। जैसे-जैसे इलेक्ट्रोनिक प्रचार माध्यमों का विस्तार हुआ है और बहस भी बढने लगी है और कभी-कभी तो लगता है कि प्रचार माध्यमों को लोगों की दृष्टि में अपना प्रदर्शन में निरंतरता बनाए रखने के लिए विषयों की जरूरत है तो उनमें अपना नाम छपाने के लिए उन्हें यह अवसर सहजता से प्रदान करते हैं।
अन्य विषयों पर बहस होती है तो आम आदमी कम ही ध्यान देता है पर अगर धर्म पर बहस चल रही है तो वह खिंचा चला आता है। धर्म में भी अगर भगवान् राम श्री और श्री कृष्ण का नाम आ रहा तो बस चलता-फिरता आदमी रूक कर उसे सुनने, देखने और पढने के लिए तैयार हो जाता है। मैं कुछ लोगों की इस बात से सहमत हूँ कि भगवान श्री राम और श्री कृष्ण इस देश में सभी लोगों के श्रद्धा और विश्वास का प्रतीक हैं। लोग उनके प्रति इतने संवेदनशील होते हैं कि उनकी निन्दा या आलोचना से उन्हें ठेस पहुँचती हैं। इसके बावजूद कुछ लोग प्रचार की खातिर ऐसा करते हैं और उसमें सफल भी रहते हैं।
धर्म के संबंध में सबसे बड़ी समस्या यह है कि हमारे प्राचीन ग्रंथों को शैक्षणिक पाठ्यक्रमों में शामिल नहीं किया गया पर इसके बावजूद इन्हें श्रद्धा भाव से पढने वालों की कमीं नहीं है। यह अलग बात है कि कोई कम तो कोई ज्यादा पढता है। फिर कुछ पढने वाले हैं तो ऐसे हैं जो इसमें ऐसी पंक्तियों को ढूंढते हैं जिसे उनकी आलोचना करने का अवसर मिले। वह पंक्तिया किस काल और संदर्भ में कही गयी हैं और इस समय क्या भारतीय समाज उसे आधिकारिक रुप से मानता है या नहीं, इस बात में उन्स्की रूचि नहीं होती। मुझे तो आश्चर्य तो तब होता है कि ऐसे लोग अच्छी बातों की चर्चा क्यों नहीं करते-जाहिर है कि उनका उद्देश्य ही वही होता है किसी तरह नकारात्मक विचारधारा का प्रतिपादन करें। मजे की बात तो यह है कि जो उनका प्रतिवाद करने के लिए मैदान में आते हैं वह भी कोई बडे ज्ञानी या ध्यानी नहीं होते हैं केवल भावनाओं पर ठेस की आड़ लेकर वह भी अपने ही लोगों में छबि बनाते हैं-मन में तो यह बात होती है कि सामने वाला और वाद करे तो प्रतिवाद कर अपनी इमेज बनाऊं।
मतलब यह कि धर्म मे विषय में ज्ञान का किसी से कोई वास्ता नहीं दिखता। एक मजेदार बात और है कि अगर किसी ने कोई संवेदनशील बयान दिया है प्रचार माध्यम भी उसके समकक्ष व्यक्ति से प्रतिक्रिया लेने जाते हैं बिना यह जाने कि उसे उस विषय का कितना ज्ञान है। भारत के प्राचीन ग्रंथों के कई प्रसिद्ध विद्वान है जो इस विषय के जानकार हैं पर उनसे प्रतिक्रिया नहीं लेने जाता जबकि उनके जवाब ज्यादा सटीक होते, पर उससे समाचारों का वजन नही बढ़ता यह भी तय है क्योंकि लोगों के दिमाग में भी यही बात होती है कि प्रतिक्रिया देने का हक केवल पद, पैसा और प्रतिष्ठा से संपन्न लोगों को ही है पंडितों (यहाँ मेरा आशय उस विषय से संबधित ज्ञानियों और विद्वानों से है जो हर वर्ग और जाति में होते हैं) को नहीं। वाद, प्रतिवाद और प्रचार के यह धुरी समाज कोई नयी चेतना जगाने की बजाय लोगों की भावनाओं का दोहन या व्यापार करने के उद्देश्य पर ही केंद्रित है।
इसलिये जब ऐसे मामले उठते हैं तब समझदार लोग इसमें रूचि कम लेते हैं और असली भक्त तो बिल्कुल नहीं। इसे उनकी उदासीनता कहा जाता है पर मैं नहीं मानता क्योंकि प्रचार की आधुनिक तकनीकी ने अगर उसके व्यवसाय से लगे लोगों को तमाम तरह की सुविधाएँ प्रदान की हैं तो लोगों में भी चेतना आ गयी है और वह जान गए हैं कि इस तरह के वाद,प्रतिवाद और प्रचार में कोई दम नहीं है।
Friday, September 21, 2007
बंधुआ बुद्धिमान-व्यंग्य शायरी
करे रहे हैं अगडम-बगडम बातें
उससे तो लगता है कि
बंधुआ मजदूरों का युग गया
तो बंधुआ बुद्धिमान का युग आ गया है
मुश्किल यह है कि
बंधुआ मजदूरों की मुक्ति के लिए तो
इनका इस्तेमाल किया जा सकता है
पर इनके लिए कोई लडेगा
इसमें शक लगता है
बडे-बडे आदर्शों की बातें
तरह-तरह की विचारधारा की
गरीबों में बांटे सौगातें
'वाद' और नारों से भरे बस्ते
आंदोलन के जरिये पूरी दुनिया में
इन्कलाब लाने का ख्याली पुलाव दिखाते
पुराने देवी-देवताओं के नाम पर
नाक-भौं सिकोड़ जाते
लक्ष्यहीन चले जा रहे हैं
मार्ग का नाम नहीं बताते
एक शब्द से अधिक कुछ जानते हैं
इसमें शक लगता है
पुराने संस्कार में ढूंढते दोष
जिसके पाले में घुस जाएँ
उसी की बजाते
एक दिन किसी बात को अच्छा
दूसरे दिन ही उसमें खोट दिखाते
कहीँ दीपक बापू
इस रंग बदलती दुनिया में
कैसे-कैसे नजारे आते हैं
बंधुआ बुद्धिमानों की मुक्ति का
मार्ग ढूँढना तो दूर सोचना भी मुशिकल
जिसकी सेवा में हौं उसके दास बन जाते हैं
इनकी मुक्ति का प्रयास जो करते हैं
उनके लिए मुश्किल पैदा कर जाते हैं
लार्ड मैकाले ने जो बीज बोए
उसकी शिक्षित गुलामों की
फसल सब जगह लगी पाते हैं
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शाश्वत सत्य के रुप हैं राम
आ रहे रोज ऐसे बयान
बढ़ रही है जमाने में
फिल्मों के नकली पात्रों का
अभिनय करने वालों की शान
अमीरों के ड्राइंग रूमों में
लगती हैं लगती है तसवीरें
पर फिर भी नहीं पाते
देवताओं जैसी पूजा
उठाया कुछ लोगों ने उन्हें यही दर्जा
दिलाने का बीड़ा
इसलिये रामजी के काल्पनिक
होने का करते एलान
चक दे इंडिया में देश को
विश्व कप जीता दिखाकर
करा रहे लोगों से वाह-वाह
पर सच में क्या भारत ऐसे कहीं जीता
एशिया कम में क्या जीती टीम
पूरे देश में 'चक दे इन्डिया' का ढिंढोरा पीटा
विश्व कप में पिटी हॉकी टीम पर
कभी मंथन नहीं करेंगे
फिल्मों में नकली पात्र गढ़कर
लोगों को भ्रमित करेंगे
देश की बढते दिखाते नकली शान
मुन्ना भाई में गांधी मार्ग का नही
गांधीगिरी का किया प्रचार
गांधीजी का कम नकली पात्र के
गुणों पर ज्यादा किया विचार
रुपहले परदे पर अभिनेताओं की
रामजी जैसी छबि उतारने का
इस तरह प्रयास करेंगे
कि परदे के बाहर की तस्वीर लोग भूलेंगे
जब बाजार में ज्यादा नहीं टिकता झूठ
विज्ञापन पर पलने वालों के उमेठते कान
नकली हीरो के लिए बड़ी लकीर नहीं खींच सकते
तो असली हीरो का कम करो मान
हर फिल्म में ऐक ही हीरो करता है
पूरे समाज का उद्धार
बाकी पब्लिक दिखाते बेकार
अकर्मण्य लोगों की फ़ौज बढाते
जो अपनी दुर्गत से उबरने के लिए
करती हीरो का इन्तजार
कोई नकली हीरो आयेगा जो
अकेले लड़कर उबार जाएगा
रामजी की तरह वानर सेना नहीं जुटाएगा
अगर कोई फिर हुआ अवतार तो
हमें भी लड़ने के लिए बुलाएगा
हमें घरो से निकालकर जंग के
मैदान मे ले जाएगा
इससे तो हीरो अच्छा जो सारा
काम अकेले कर जाएगा
यही सोच लोगों को नही होने
देता सत्यता का भान
कहैं दीपक बापू
रामायण में अकेले रामजी ही नही
हनुमान, सुग्रीव, अंगद, जाम्बवान
और नल-नील भी नायक जैसा सम्मान पाते
रामायण का भी यही है संदेश कि
धर्म के लिए सब मिलकर लड़ो
मर्यादा और भक्ति भाव से रहते हुए
किसी से भी न डरो
मत भूलो अपनी पहचान
कण-कण में राम है
कल्पनाओं से परे उनका काम है
जो लिखते हैं पर वाल्मीकि और
तुलसी जैसा न रच पाते न पाते समान
कुंठा में व्यक्त करते अभिमान
रामजी शाश्वत सत्य का प्रतीक है
सच्चे भक्त ही यह जानते हैं
वह बहकते नही हैं
और हँसते हैं ऐसे सुनकर बयान
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Thursday, September 20, 2007
रामजी बेड़ा पार लगाएंगे
रामजी करेंगे बेड़ा पार
जलमार्ग हो या थल मार्ग
कोई अगर बाधा होगी तो
अपने बनवाये एक क्या
सेतु तुड़वा देंगे चार
उनकी भक्ति में शक्ति अपार
पर आएगा आड़े तुम्हारा अंहकार
तुम चाहोगे कि
काम सब रामजी करें
नाम तुम्हारा हो
दूसरों के यकीन और भक्ति की
परवाह नहीं
बढाना चाहते अपना व्यापार
दिखाते है लोगों को सपने
जिन पर यकीन नही करते उनके अपने
रामजी के नाम से बड़ा नामा
दूसरे क्या देंगे
अपने ही देते धोखा बारंबार
रामजी ने कहा
'मुझसे बडे हैं भक्त मेरे
बिना लालच और लोभ
मेरी भक्ति के भाव में पडे'
ऐसे भक्तों की शक्ति अपार
जिनका कुछ लोग भी करते व्यापार
जो अभक्ति में देखते फ़ायदा
वह भी लेते रामजी का नाम कई बार
कहैं दीपक बापू
सच और झूठ का पता तो रामजी जाने
पर हम तो उनकी शक्ति को माने
भक्त तो नाम लेते हैं
अभक्त भी लगाते पुकार
पर उनसे भी क्या कहें
कहीं एक क्षण भी हृदय से याद किया
तो हो जाएगा उनका बेड़ा पार
रामजी की माया है अपरंपार
अपने भक्तों के दें भक्ति
और अभक्तों को माया के चक्कर में
ऐसा फंसायें कि घूमें बेकार
इस धरती पर ही स्वर्ग बसाने के चाह
अपनी देह के अमर होने का भ्रम
व्यापार ही जिनका धर्म
भक्तों की भावनाओं बेखबर
जिन्होंने तय कर लिया है कि
अपनी दैहिक शक्ति का प्रदर्शन दिखाएँगे
रामजी के अलावा उन्हें
कौन समझा सकता है कि
यकीन कर लो
कुछ पल हृदय से भक्ति कर लो
रामजी तुम्हारा भी बेड़ा पार लगाएंगे
तू तो हैं हिन्दी का सेवक
लेखकों से कहने लगे
हिन्दी के चिराग जला दो
सारे जगत में ज्ञान का प्रकाश
हम फैलायेंगे
ऊंची इमारत में रहने वाले
चारो ओर संपन्नता की
रोशनी में रहने वाले
कार में बैठकर टहलने वाले
गरीब लेखकों से कहते हैं कि
तुम हिन्दी के लिए
अपने प्रतिभा से रोज करो रचनाएँ
हमारे प्रकाशन में है ताकत
हम उन्हें तुमसे ज्यादा गरीबों में
सस्ती दरों पर पढ़वायेंगे
ज्ञान के चिराग तो बहुत आसान है जलाना
तुम माया के चक्कर में ना आना
घर में दिया न जलता हो
पर तुम ज्ञान का प्रकाश फैलाना
मिटटी के दिए की क्या कीमत
बाजार से खरीद लाना
तेल में क्या लगता है
किराने की दुकान से उधार लाना
रुई का क्या
अपने घर के कबाड़ से जुटाना
तू दान कर
अपनी मातृभाषा हिन्दी का नाम कर
हम नही लिखना जानते
इसलिये नहीं लिखते
शब्दों के शेर हम से नही सधते
माया तो ख़ूब है पर
व्याकरण का मायाजाल नहीं समझते
हम तो बाजार ही सजायेंगे
हम हैं प्रकाशन के स्वामी
और तू है हिन्दी का सेवक
क्या यह कम है तेरे चिराग
बाजार में चमकते नजर आएंगे
रोटी की चिन्ता मत कर
वह तो तुझे भगवान दिलवायेंगे
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नैतिकता की दुहाई देना बेकार
मारे जाने के समाचार प्रचार
माध्यमों मे छा जाते
पर उनके हाथों मारे गए
बेकसूर लोगों को भूल जाते
शायद अपराधियों के हाथ में
शक्ति के स्त्रोत होने का ही यह
परिणाम है कि हर दिन
अपराधों के बढते ग्राफ पर
हायतौबा मचाने वाले
रात को उनके गले मिलने जाते
उनकी ह्त्या की शिकार देहों की रूहें
उनका पीछा नहीं छोड़ेंगी
यह लोग समझ नहीं पाते हैं
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अपराधियों ने प्रचार माध्यमों की
वजह से ही हीरो की छबि पायी है
आज कोई दान, पुण्य और परोपकार
करने पर इज्जत नहीं पाता
लोग में जो डर और आतंक फैला दे
वही हीरो कहलाता
जिसने तलवार उठायी
उसने ही दमदार की छबि पायी
लोग खुद ही देते हैं उनको प्रोत्साहन
नैतिकता और मान-मर्यादा कि
बेकार है देना दुहाई
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Wednesday, September 19, 2007
विचारों का धंधा
और बोला
'यार आजकल कोई
अपने पास नहीं आता है
हमसे पूछे बिना यह समाज
अपनी राह पर चला जाता है
हम अपनी विचारधाराओं को
लेकर करें जंग
लोगों के दिमाग को करें तंग
ताकि वह हमारी तरफ आकर्षित हौं
और विद्वान की तरह सम्मान करें
नहीं तो हमारी विचारधाराओं का
हो जायेगा अस्तित्व ही खत्म
उसे बचने का यही रास्ता नजर आता है'
दूसरा बोला
'यार, पर हमारी विचारधारा क्या है
यह मैं आज तक नहीं समझ पाया
लोग तो मानते हैं विद्वान पर
मैं अपने को नही मान पाया
अगर ज्यादा सक्रियता दिखाई
तो पोल खुल जायेगी
नाम बना रहे लोगों में
इसलिये कभी-कभी
बयानबाजी कर देता हूँ
इससे ज्यादा मुझे कुछ नहीं आता है'
विचारक बोला
'कहाँ तुम चक्कर में पड़ गये
विचारधाराओं में द्वंद में भला
सोचना कहाँ आता है
लड़कर अपनी इमेज पब्लिक में
बनानी है
बस यही होता है लक्ष्य
किसी को मैं कहूं मोर
तो तुम बोलना चोर
मैं कहूं किसी से बुद्धिमान
तुम बोलना उसे बैईमान
मैं बजाऊँ किसी के लिए ताली
तुम उसके लिए बोलना गाली
बस इतने में ही लोगों का ध्यान
अपने तरफ आकर्षित हो जाता है'
दूसरा खुश होकर उनके पाँव चूने लगा
और बोला
'धन्य जो आपने दिया ज्ञान
अब मुझे अपना भविष्य अच्छा नजर आता है'
विचारक ने अपने पाँव
हटा लिए और कहा
'यह तो विचारों के धंधे का मामला है
सबके सामने पाँव मत छुओ
वरना लोग हमारी वैचारिक जंग पर
यकीन नहीं करेंगे
मुझे तो लोगों को भरमाने में ही
अपना हित नजर आता है।
Tuesday, September 18, 2007
भ्रम को उतना ही करीब पाओगे
खवाब भले ही हकीकत होने लगें
सपने चाहे सामने चमकने लगें
उम्मीदें भी आसमान में उड़ने लगें
पर तुम अपने पाँव हमेशा
जमीन पर ही रख पाओगे
झूठ को सच साबित करने के लिए
हजार बहानों की बैसाखियों की
जरूरत होती है
सच का कोई श्रृंगार नहीं होता
कटु होते हुए भी
उसकी संगत में सुखद अनुभूत होती हैं
कब तक उससे आंखें छिपाओगे
फ्लॉप ब्लोगर और हिट कवि
'यार, कवि सम्मेलनों में होने लगी है
हुटिंग ज्यादा
मुझे किसी ने अंतर्जाल पर जाकर
अपनी कविता की दुकान सजाने का
आइडिया सुझाया
तो मुझे तुम्हारा नाम याद आया'
ब्लोगर बहुत खुश हुआ
उसने सोचा अब तक मिलती थी
उनचास टिप्पणियां
अब पचास का जुगाड़ खुद मेरे पास आया
तत्काल उसे कम्प्यूटर के सामने बिठाकर
अंतर्जाल पर काम करने का
पूरा आइडिया समझाते हुए
उसका भी एक ब्लोग बनवाया
जाते-जाते कवि गुरूदक्षिणा में
कवि ने दिया ज्ञान
'क्या यह अगड़म-बगडम लिखते हो
कुछ कवितायेँ और कहानियां लिखा करो
अपनी हिन्दी के ज्ञान का विस्तार करो
जिसकी वजह से इतना तुमने नाम पाया'
ब्लोगर ने बाँध ली कवि की बात गाँठ बांधकर
जुट गया साहित्य सृजन में
पर होता गया फ्लॉप
रचनाएं तो बहुत होने लगीं
टिप्पणियां होती गईँ कम
फिर भी वह लिखने से बाज नही आया
एक दिन पहुँचा कवि के घर
और बोला
'बहुत दिन से न तुम्हें देखा
न तुम्हारा ब्लोग
जो तुमने मुझसे बनवाया '
कवि ने उसे अपना ब्लोग दिखाया
और बोला
'तुमसे बनाने के बाद मैंने
ब्लोग को छद्म नाम से बनाया
क्योंकि चुराई हुई कविताओं के लिए
मैं तो पहले ही बदनाम था
उससे बचने का यही रास्ता नजर आया
देखो मेरे नाम पर पुरस्कार भी आया'
ब्लोगर ने देखा कवि का ब्लोग
उसमें कवि के कतरनों के नीचे
उसकी कविताओं के ही अंश लगे थे
जिनमें कवि ने जोडा था अपना नाम
जिनमें पचास-पचास से
ज्यादा कमेन्ट जड़े थे
फिर कवि ने दिखाए
दूसरे ब्लोग
उनमें भी टिप्पणियों में
ब्लोगर की कविताओं की छबि थी
उसने कवि से कहा
'यहाँ भी तुम बाज नहीं आये
मेरी कतरन से हिट पाए
तुम्हारे रास्ते पर चलाकर मैं
तो हो गया फ्लॉप ब्लोगर
तुमने मेरी रचनाओं से ही
इतना बड़ा पुरस्कार पाया'
कवि घबडा गया और बोला
'यार, मैं क्या करता
मैंने तो अखबार की कतरनों और
तुम्हारी कविताओं के अंशों से ही काम चलाया
यही आइडिया मेरी समझ में आया
अब तुम किसी और से मत कहना
मेरी जिन्दगी में तो पहला
पुरस्कार आया'
ब्लोग वहाँ से निकल बाहर आया
और आसमान में देख कर बोला
'अजब है दुनिया
मैं कवितायेँ लिखकर हिट से
फ्लॉप ब्लोगर हो गया
और वह ब्लोग मेरी कवितायेँ लिखकर
हिट कवि कहलाया'
Sunday, September 16, 2007
भूल गया अपना ज्ञान
अज्ञानियों के सम्मेलन में
पाया बहुत सम्मान
सब मिलकर बोले दो 'हम को भी ज्ञान'
वह भी शुरू हो गया
देने लगा अपना भाषण
अपने विचारों का संपूर्णता से किया बखान
उसका भाषण ख़त्म हुआ
सबने बाजीं तालियाँ
ऐक अज्ञानी बोला
'आपने ख़ूब अपनी बात कही
पर हमारी समझ से परे रही
अपने समझने की विधि का
नहीं दिया ज्ञान
कुछ दिनों बात वही बुद्धिमान गया
बुद्धिजीवियों के सम्मेंलन में
जैसे ही कार्यक्रम शूरू होने की घोषणा
सब मंच की तरफ भागे
बोलने के लिए सब दौडे
जैसे बेलगाम घोड़े
मच गयी वहाँ भगदड़
माइक और कुर्सियां को किया तहस-नहस
मारे एक दूसरे को लात और घूसे
फाड़ दिए कपडे
बिना शुरू हुए कार्यक्रम
हो गया सत्रावसान
नही बघारा जा सका एक भी
शब्द का ज्ञान
स्वनाम बुद्धिमान फटेहाल
वहाँ से बाहर निकला
इससे तो वह अज्ञानी भले थे
भले ही अज्ञान तले
समझने के विधि नहीं बताई
इसलिये सिर के ऊपर से
निकल गयी मेरी बात
पर इन बुद्धिमानों के लफडे में तो
भूल गया मैं अपना ज्ञान
आंकडो के जाल में मत आओ, तुम लिखते जाओ
कतरनों में लिखे आंकड़ों पर
अपनी दृष्टि मत लगाओ
लिखो कहानी, कविता और व्यंग्य
और लोगों को पढ़ाते जाओ
और दूसरे का लिखा भी पढते जाओ
हिन्दी की दशा कहीं शोचनीय नहीं है
तुम्हार लिखे से वह अंतर्जाल पर
चमक रही है
जिन्हें पढ़ना है वह खुद आएंगे
तुम अपनी रचनाएं
कहीं डालने मत जाओ
अपने ब्लोग पर डटे रहो
हमने देखा है हिन्दी के पाठक
दूर-दूर से उसे पढने आते हैं
हमारी पीठ थपथपाते हैं
लोगों के बहकावे में मत आओ
यहाँ लिख और वहां दिख जैसे
नारों पर न करो दृष्टिपात
आंकडे हमें झूठ बोलने और भ्रम का
जाल फैलाने के लिए रचे जाते हैं
ताजमहल खड़ा है वहीं पर
बाजार में उसे भी दौड़ता दिखाते हैं
तुम हिन्दी में हास्य-व्यंग्य के दीपक
जलाते जाओ
कबाड़ से निकली कतरन में तो
बस अँधेरे दिखाए जाते हैं
जहाँ नहीं है रोशनी की जरूरत
वहीं अग्नि जलाए जाते हैं
पर सत्य यह है अपने घर की रोशनी से
मेहमानों को को खुश कर पाते हैं
तुम अपनी मातृ भाषा हिन्दी को
अपने ही घर में समृद्ध किये जाओ
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Saturday, September 15, 2007
कवि सम्मेलन में पहुंचा जब ब्लोगर
पहुंच गया ब्लोगर
लोगों ने समझा कोई नया कवि आया
सबकी पुरानी कवितायेँ झेलते हुए
उसको सुनने के इन्तजार में बिताया
आख़िर उसके मित्र कवि संचालक ने
उसे भी कविता सुनाने के लिए बुलाया
'और कहा कि आज हम सुनेंगे
अंतर्जाल के महान कवि जो बहुत हिट हैं
नए जमाने में पूरी तरह फ़िट हैं '
ब्लोगर ने गला किया साफ और
सुनाने लगा वहीं सुनाई गयी
कविताओं के अंश
साथ मे रखता 'बहुत बढ़िया'
और 'बहुत सुन्दर' जैसे शब्द
लोग चीखने और चिल्लाने लगे
और पूछने लगे
'कैसा है ब्लोगर यहीं की कवितायेँ
फिर हमें सुनाता है और
अपने दो शब्द चिपकाता है'
ब्लोगर बोला
' यह ठीक समझो कि
यहाँ कुछ पंक्तियां लेकर
कमेंट लगा रहा हूँ जैसे
वहां करता हूँ
अगर पूरी की पूरी पोस्ट ही लिंक कर देता
तो तुम्हारा क्या हाल होता
सोचो तुम्हारा कितना समय बच जाता है '
लोग हल्ला मचाने लगे
कवियों ने उसे किसी तरह वहाँ से हटाया
वह अपने मित्र से बोला
'कैसे लोग हैं ज़रा भी तमीज नहीं है
कितना हिट हूँ मैं वहां
यहाँ हूट कर दिया
नहीं जानते कि कैसे
ब्लोगर का सम्मान किया जाता है'
कवि मित्र बोला
'इतनी जल्दी घबडा गये
हमारे साथ रोज ही ऐसा हादसा पेश आता है
तुम खुश किस्मत हो कि
तुम्हारे कंप्यूटर से कोई बाहर नही आता है'
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हिन्दी की दशा बहुत खराब
अंग्रेजी इलाकों एकदम शोचनीय
यह न बताया कि अपने इलाक़े में
कौनसी अंग्रेजी है पूज्यनीय
तुम उठो -बैठो अंग्रेजी के साथ
कौन करेगा हिन्दी में बात
कैसे हो सकती है हिन्दी वंदनीय
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एक लेखक ने दूसरे से कहा
'अंग्रेजी इलाक़े में हिन्दी की हालत
बहुत खराब है
चलो कुछ हिन्दी में पोस्टर
चिपकाये आते हैं
लोग आते - जाते पढेंगे
यहाँ तो हमारा लिखा कोई
पढता नही
जब भी देखो फ्लाप हो जाते हैं
दूसरा बोला
'यार, अपने इलाक़े में भी तो
अंग्रेजी की हालत खराब है
पर अंग्रेज कभी पोस्टर चिपकाने
यहाँ नहीं आते हैं
जो चल रही है
उसकी डोली भी देशी गुलाम
उठाएँ जाते हैं
फिर अच्छा हो कि हम
करें आत्म मंथन
कुछ अच्छा चिन्तन
यहीं के हिट हमें फलेंगे
वह अंग्रेज कभी हिन्दी नहीं समझेंगे
उनकी उम्मीद पर क्यों हम
में है बाजार वाद दर्शन तुम रहना
आशाओं पूरी दुनिया पूरी पूरीए दुनिया
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अपनी गाँठ के पूरी पूरी होता है
और रोटी का पेट से
मातृभाषा के प्रचार का प्रयास है व्यर्थ
Friday, September 14, 2007
इससे तो हम फ्लाप ही ठीक
चंडूखाने से खबर यह आयी
अंतर्जाल पर हिन्दी भाषा में
गालीवाद का युग आ गया
सौम्यता, सुन्दरता और माधुर्य की
परंपराओं की हो गयी विदाई
खबर ने जमकर हिट पायी
तब समझ में आया
लिखने वाले ने क्या गजब की
अक्ल पायी
सुन्दर, सौम्य और मधुर शब्दों से
अगर अपनी रचना सजाता
किसे पढा कर हिट पाता
गाली लिखने से लोंगों की दृष्टि खिंच आयी
कहैं दीपक बापू
हम तो फ्लाप ही रहेंगे
क्योंकि अपने गुरुजनों से
सरल और मधु शब्दों से ही
लिखने-पढने की प्रेरणा पाई
सोच रहे कि अभी इन लोगों ने लिखा ही क्या है
जो इतनी जल्दी निराशा घर कर आयी
लिखते हैं चार लाईनें
सोचते हैं कि तुलसी, सूर, मेरा और कबीर की
तरह लोगों में पूजें जाएँ
इस कोशिश में ऐसे लिख जाते
कि उनका लिखा और क्या पढेंगे
अपना लिखा खुद ही नही पढ़ पाते
लूटना चाहते हैं बस वाह-वाही
बैठकों में ऐसे जाते जैसे
हिन्दी के हैं बहुत बडे शेर
लौटते हैं मन में लेकर गलियों का ढ़ेर
और जो लिखते तो कराते
मातृ भाषा की जग हँसाई
हमें नहीं चाहिऐ गाली लिखकर हिट
इसी तो फ्लाप ही ठीक हैं भाई
फिर भी कहते हैं
सबको हिन्दी दिवस की बधाई
Thursday, September 13, 2007
अंतर्जाल से हिन्दी से गया साधुवाद
छायेगा अब गालीवाद
पहली पोस्ट में ही धाक जमाई
छद्म नाम रखकर एक कायर
किस तरह शीर्षक में ही गाली
लिखकर हिट जुटा गया
बात हमारे समझ में न आयी
कल तक फेरते रहे आंख
पर आत्मा नहीं फेर पाए
शब्द और विचार और बार-बार कहैं
निकाल हमें बाहर
मात्रृ भाषा की करनी है लडाई
चन्द लोग पढ़ क्या लेते हैं हिन्दी
समझते हैं अपने को समझते हैं
तुलसी, सूर और प्रेमचंद
हम जो लिखें उस पर बजायें ताली
जहां जाएँ वहीं छाये
कबीर और मीरा जैसे पूजे जाएँ
यही सोच कर घर से निकलते है
अपने विचारों में अस्वच्छ्ता लिए
नीयत रहते हैं काली
साफ हैं तो नाम क्यों छिपाएँ
किससे भय की भावना मन में पाली
योग्यता है नहीं
अहंकार उड़ रहा है आसमान में
दानव की तरह अदृश्य रहकर
करते है हमला
अमेरिका और रूस की बात करेंगे
जैसे बहुत बडे ज्ञानी हौं
नासिक से गंध
कर्ण से श्रवण
और चक्षु से दर्शन करने की तमीज नहीं
अपने मन में विद्वान होने की
गलत फ़हमी पाली
कहैं दीपक बापू
गलतफहमी में मत रहना
तुम भूल सकते हो
पर हम भी तलाश रहे हैं
अपने छद्म ब्लोग पर अभद्र कमेन्ट
करने वाले को
कोई मामूली ब्लोगर मत समझना
हमारे शब्द ही हैं अमोघ बाण
एक बार चलकर फिर लॉट आएंगे
मात्र भाषा हिन्दी का वरदान
हर गद्य-पद्य रचना के तत्काल बाद ही
लौटती हैं तरुणाई
एक बार अपना परिचय दे दो
फिर देखो हमारी कविताई
याद रखना सुबह शाम
विचरते हैं हम चौपालों पर
रख लो तुम अपने लिए दोपहर की पाली
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Wednesday, September 12, 2007
अल्पज्ञानी और कौवा
सिद्ध के पास लेने ज्ञान
और बोले
'महाराज ज़िन्दगी से हैं हम परेशान
तमाम तरह के तंत्र-मंत्र किये
तमाम दरबारों पर मत्था टेका
पर हुआ नही कल्याण
हमारे मन को शांति मिले
कृपा कर ऐसा दें ज्ञान'
सिद्ध पुरुष ने तीनों को देखा और कहा
'मैं कोई चमत्कारों का सौदागर नहीं
जो पल में कर दूं तुम्हारा कल्याण
पहले लूंगा तुम्हारा इम्तहान
फिर दूंगा जीवन का ज्ञान'
तीनों को दी कापी और पेन और कहा
'इस पर कौवे पर निबंध लिखो
इसमें तुम्हारा लिखा हुआ ही
कराएगा परिचय दस मिनट में ही कि
कौन कितना बुद्धिमान'
तीनों ने दस मिनट में कापी लिखकर
दे दीं गुरू जीं के हाथ में
करने लगे वह उसकी जांच
एक ने लिखा
'कौवे के बारे में मुझे कुछ भी
लिखना नही आता
मैं तो हूँ गंवार और अनजान '
दुसरे ने लिखा
'कौवा है एसा पंछी
जिसकी सबसे होती है तीक्ष्ण दृष्टी
उस जैसा गुण पा ले
कभी दुख्नी न हो इन्सान'
तीसरे ने लिखा
'कौवा काला, काली उसकी नीयत
सुबह उसकी आवाज सुन लें तो
पूरा दिन होते परेशान'
सिद्ध पुरुष ने फैसला दिया
'कौवे के बारे में जो नहीं जानता
उस निरे अज्ञानी को और
जो उसमें दूरदृष्टि देखता है
उस परम बुद्धिमान को
मैं अपना शिष्य बनाऊंगा
जिसने कौवे में दोष देखे
दिखा उसमें एक भी गुण
उस अल्पज्ञानी को
मैं नहीं दे पाऊँगा कोई ज्ञान'
तीनों चले गए तो गुरुजी के
पुराने और प्रिय शिष्य ने पूछा'
'उस निरे अज्ञानी से तो वह ठीक था
कुछ लिखना-पढना तो जानता था
उसे भी अपना शिष्य बना लेते
कृतार्थ करते उसे देकर ज्ञान'
सिद्ध पुरुष ने कहा
'उसे अपने अक्षर ज्ञान का था अहंकार
सब विषय में पढा पर उसका था अभिमान
इसलिये रह गया अल्पज्ञानी
पर उस अपढ़ अज्ञानी को यह मालुम है कि
नहीं है इसके पास नहीं कोई ज्ञान
वह लगन से सीखेगा
बुद्धिमान पर तो होगी थोडी मेहनत
पर उस अल्पज्ञानी पर
पूरी जिन्दगी गुजार देता
फिर भी नहीं होता उसे ज्ञान
सदैव अहंकार में डूबा रहता
थोडा सीखता ज्यादा दिखाता
दोष दूसरों में देखे
नहीं होता कभी उन्हें अच्छाई का भान
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Tuesday, September 11, 2007
चलते रहो
अपने निज पथ पर चलते रहो
कही राह पथरीली होगी
कहीं हरियाली कालीन की तरह फैली होगी
कही लाल मिट्टी की चादर बिछी होगी
कहीं वर्षा ऋतू के जल से नहाई होगी तो
कही कीचड से मैली होगी
चलते रहो
अपने निज पथ पर चलते रहो
अपने कदम आहिस्ता-आहिस्ता बढाए जाओ
प्रेम और सुन्दर शब्दों के पुष्प बरसाते जाओ
तुम्हारे पाँव तले गाँव की पगडंडी होगी
कहीं महानगर की सड़क पडी होगी
लोगों के पाँव तो होते जमीन पर
दिमाग घूमता है आसमान पर
तुम जमीन की ही सोचना
ख़्वाबों से नहीं
जिन्दगी की हकीकतों से
तुम्हारी मंजिल की दूरी तय होगी
चलते रहो
अपने निज पथ पर चलते रहो
कहीं उबड़-खाबड़
तो कहीं समतल
कदम-दर-कदम राह की
अलग-अलग शक्ल होगी
कहीं कंटीली होगी तो
कहीं सपनीली होगी
कहीं आसमान की तरफ
तो कहीं पाताल की तरफ गिरती होगी
तुम सत्य का संदेश बिखेरते जाना
हर प्राणी मात्र पर दया दिखाना
सड़कें और पगडंडियाँ तो अपनी जगह रहेंगी
तुम अपने सत्कर्मों से अपने निशान छोड़ते जाना
जो उस राह से तुम्हारे गुजरने की पहचान होगी
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Monday, September 10, 2007
मेकअप की माया
'अपना मुहँ धोकर आओ
क्योंकि यह रोल ही एसा है
जिसमें तुम्हें लगना है
एक दम सामान्य नारी'
हीरोइन को नागवार गुजरा यह विचार
वह बोली-
'क्या बेवकूफों वाली बात करते हो
लगता है मेरी छबि खराब करनी है
तुम मुझसे वैसे ही जलते हो
अगर मुहँ धोकर आयी तो
पूरा मेकअप खराब हो जाएगा
मेरा चेहरा अपने घर पर
काम करने वाली बाई जैसा हो जाएगा
तुम डाइरेक्टर हो या अनाडी'
डाइरेक्टर ने शांति से जवाब दिया
'यह घर की बाई का ही रोल है
सुन्दर नहीं है पर उसके मीठे बोल हैं
यह कोई मामूली रोल नहीं है
तुम्हारे लिए चुनौती है भारी'
हीरोइन ने कहा
'मीठे बोल तो मेरे भी हैं
और न भी हैं तो डबिंग में
दूसरे उधार आवाज ले सकते हैं
पर लोग तो मरते है चेहरे पर
उसी पर आहें भरते हैं
मुझे मंजूर नही है यह चुनौती
चाहे कितनी भी दो रकम भारी'
डाइरेक्टर ने कहा
'कोयल काली होती है
पर अपनी मधुर वाणी के कारण ही
लगती है प्यारी
आप अच्छा अभिनय करेंगी तो
अपने आप फिल्म हिट हो जायेगी हमारी'
हीरोइन नहीं मानी
और गयी निर्माता के पास
और कहानी बयान की सारी
उसे समझा बहुत कुछ
वह भी आग बबूला हुआ और
डाइरेक्टर से बोला
'आजकल गया है समय बदल
घर में काम करने वालीं महिलाएं भीं
करती हैं हीरोइन जैसा मेकअप
तुम ख्वाबों में मत रहो
देखो पूरे जमाने का गेटअप
हीरोइन का मत खराब करो मेकअप
इससे तो फिल्म पिट जायेगी हमारी'
डाइरेक्टर मान गया और अकेले में बोला
'गरीबी का दर्द यह अमीर क्या जानेंगे
उन्हें झोंपडी में महल जैसा सुख लेकर
देख कर उसे भी उजाडेंगे
जिनकी आंखों में दौलत और शौहरत का
मेकअप गढा हो
वह गरीब को भी वैसा ही मानेंगे
माया का है सच पर पहरा भारी'
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नाम कमाने के चक्कर में मत पडना
' मैं बड़ा होकर करूंगा समाज सेवा'
शिक्षक ने कहा
'तब तो तुम अच्छी तरह पढ़-लिख लो
बडे आदमी बन जाओ
अपने नाम के आगे उपाधियां लगाओ
और कहीं से पुरस्कारों की जुगाड़ लगाओ
फिर भले ही दिखाने के लिए करना समाज सेवा
होगी तुम्हारी इज्जत चारों तरफ
बग़ैर इनके चाहे कितनी भी कर लो
कोई नहीं होगा नाम लेवा'
बालक ने अपने पिता से कहा
पहले तो वह चकराये फिर बोले
'जो राह बताई है तुम्हारे शिक्षक ने
उसी राह पर चलना
पहले अपना घर भरना सीख लो
आजकल मीडिया बहुत पावरफुल है
बाँट देना कुछ कंबल और अनाज
फोटो खिंचवा कर टीवी और अखबार में
विज्ञापन के रुप में छपवा देना
इससे पहले उपाधियों और पुरस्कार का
अपनी नेम प्लेट पर अंबार लगा लेना
फिर तुम्हें प्रसिद्धि दिलाएगी समाज सेवा
बालक का मन फिर गया
उसने सोचा
पहले उपाधियों और पुरस्कारों के
अपने लिए ढ़ेर लगा लूं
शायद तभी होगी समाज सेवा'
फिर उसने अपने दादाजी से पूछा
तो उन्होने कहा
'तुम अपने मन की बात किसी से न कहना
तेरे निच्छ्ल मन को वह नहीं
कभी समझ पाएंगे
अभी जमकर पढ़-लिखना
पर अपने मन में समाज के लिए
सच्ची हमदर्दी रखना
शक्ति का संचय तो करना क्योंकि
वही समाज सेवा के काम आयेगी
पर नाम कमाने के चक्कर में मत पडना
वरना वह झूठी हो जायेगी
तारीख ने सब देखा है
मजबूत किलों के राजाओं को क़ैद में जिन्दगी बिताते देखा है।
इतिहास की तारीख को देखकर भी कोई अनदेखा करे
पर तारीख ने सबके कारनामे और अंजाम को देखा है।
उन लोगों को भी देखा, जमाने के लिए लगाए जिन्होंने गुलशन
जमाने ने खुद उजाडा उनको, तारीखों ने यह सब होते भी देखा है।
दिन में दिखाए कोई एक चेहरा, रात को बताये दूसरा
तारीख ने फरेबियों के नकाब को भी उतरते देखा है
कहैं दीपक बापू जमीन पर पाँव और आसमान में दिमाग
ऐसे लोगों को जमीन पर ओंधे मुहँ गिरते तारीख ने देखा है।
Sunday, September 9, 2007
इस तरह वह शादी न हो सकी-हास्य कविता
दूल्हे ने दहेज़ में
मोटर साइकल देने की माँग उठाई
उसके पिता ने दुल्हन के पिता को
इसकी जानकारी भिजवाई
मच गया तहलका
दुल्हन के पिता ने
आकर दूल्हे से किया आग्रह
शादी के बाद मोटर साइकल देने का
दिया आश्वासन
पर दूल्हे ने अपनी माँग
तत्काल पूरी करने की दोहराई
मामला बिगड़ गया
दूल्हे के साथ आए बरातियों ने
दुल्हन पक्ष की कंगाल कहकर
जमकर खिल्ली उडाई
दूल्हन का बाप रोता रहा ख़ून के आंसू
दूल्हे का जमकर हंसता रहा
आख़िर कुछ लोगों को आया तरस
और बीच-बचाव के लिए दोनों की
आपस में बातचीत कराई
मोटर साइकल जितने पैसे
नकद देने पर सहमति हो पाई
दुल्हन के सहेलियों ने देखा मंजर
पूरी बात उसे सुनाई
वह दनदनाती सबके सामने आयी
और बाप से बोली
'पापा आपसे शादी से पहले ही
मैंने शर्त रखी थी कि मेरे
दूल्हे के पास होनी चाहिए कार
पर यह तो है बेकार
मोटर साईकिल तक ही सोचता है
क्या खरीदेगा कार
मुझे यह शादी मंजूर नहीं है
तोड़ तो यह शादी और सगाई'
अब दूल्हा पक्ष पर लोग हंस रहे थे
'अरे, लड़का तो बेकार है
केवल मोटर साइकिल तक की सोचता है'
बाद में क्या करेगा अभी से ही
दुल्हन के बाप को नोचता है
क्या करेंगे ऐसा जमाई'
बात बिगड़ गयी
अब लड़के वाले गिडगिडाने लगे थे
अपनी मोटर साइकल की माँग से
वापस जाने लगे थे
दूल्हा गया दुल्हन के पास
और बोला
'मेरी शराफत समझो तुम
मोटर साइकल ही मांगी
मैं कार भी माँग सकता था
तब तुम क्या मेरे पास हवाई जहाज
होने का बहाना बनाती
अब मत कराओ जग हँसाई'
दुल्हन ने जवाब दिया
' तुम अभी भी अपनी माँग का
अहसान जता रहे हो
साइकिल भी होती तुम्हारे पास
मैं विवाह से इनकार नहीं करती
आज मांग छोड़ दोगे फिर कल करोगे
मैंने तुममें देखा है कसाई'
दूल्हा अपना मुहँ लेकर लॉट गया
इस तरह शादी नही हो पायी
-------------------
सचिव हो तो ऐसा-हिन्दी हास्य कविता
मदद नामक संस्था में
हो गया माहौल हुआ गर्म
अब बौछार होगी
पीड़ित लोगों की मदद के लिए
तरह-तरह के सामान की
नहीं था इसमें किसी को भ्रम
संस्था प्रमुख ने बुलाया अपने सहायकों को
और कहा
'इलाक़े में सूखा था फिर भी
हमारे लिए थी हरियाली
पिछले साल किसी ने नहीं मनाई
पर अपनी अच्छी मनी दिवाली
ऐक भी दाना नहीं बाँटा अन्न
पर कागजो पर दिखाया
बंटते कई टन
चन्दा और दान देने वाले
हमारा हिसाब देखेंगे
हमने नहीं दिया कमीशन
इसलिये दुकानदार हमें
अपने माल के फर्जी बिल नही देंगे
अब बाढ़ का आ गया संकट है
और बिना हिसाब मागे कोई
हमें कुछ देगा मत रखना यह भ्रम'
बैठक में सन्नाटा खिंच गया
तब सचिव ने कहा
'आप क्यों अपना ख़ून जलाते हो
हमने सब सोच रखा है सब
आप दिमाग क्यों खपाते हो
हमारे भाग्य से छींका फूटा है
लोगों पर बाढ़ का कोप टूटा है
ढह गए कई मकान
उनमें अपने गोदाम और उसमें रखा अन्न
बह जाना दिखा देंगे
किसी नकली ऑफिस में
रखा रिकार्ड भी तबाह हुआ बता देंगे
आज ही भेज देता हू सब जगह विज्ञप्ति
जिसमें अपने नुकसान के अलावा
दान और चन्दा देने वालो से अपील भी होगी
बाढ़ पीड़ितों पर दिखाने के लिए रहम
जो सामान आयेगा उसका
इंतजाम भी कर लिया है
सूखा पीड़ित इलाकों में
उसकी भूखो द्वारा लूट बता देंगे
इस बवाल में कौन पूछेगा
हमारे ऐक इलाक़े में
अब भी मचा है सूखे से हाहाकार
दूसरे इलाके में लोग कर रहे
भीषण बाढ़ से चीत्कार
हमारे कमाल को कौन ढूंढेंगा
बस आप नकली आंसू बहाते रहें
अपना और सेवकों घर भरवाते
करते रहें अपना कर्म'
संस्था प्रमुख खुश हो गये और बोले
'सचिव हो तो ऐसा, एकदम बेशर्म
जिसने की शर्म उसके फूटे कर्म'
------------------------
जब माया के रंग हो जाते बदरंग
नोट भरकर सोवें
ऐसे भाग्य तो किसी-किसी के होवें
मायापुत्र नॉट करें आर्तनाद
क्या हो गयी हमारे गत
हम तो दिन में बाजार में
चलने-फिरने वाले जीव
रात को कैसे जिन्दा लाशों को ढोवें
काश किसी सुन्दरी के पर्स में हौवें
यह क्या कि लोग दिन में हमारे लिए
करें हजारों पाप
प्यार से पुचकार घर लावें
और तकिया और गद्दों में भरकर हम पर सोवें
मायापति सोने के भी कोई
कम बुरे हाल न होवें
होना चाहिए गले और उंगली में
वही लग जाता है नल की टोंटी में
और लोग अपने अच्छे बुरे हाथ
उसका कान उमेठ कर धोवें
जिसे चमकना चहिये अपनी ख्याति के अनुरूप
होते हैं जिसके गह्रने शोरूम में
लोग उसके सामान को ऐसे देखे
जैसे चमकदार पीतल के होवें
वाह री माया तेरे खेल
कोई बेचता पीतल का सामान सोना बताकर
कहीं सोने को छिपाता पीतल जताकर
कहने वाले सही कह गये कि
अति सबकी बुरी होवें
चाहे माया के ढ़ेर ही क्यों न होवें
ख़ूब लगा लो अपने घर में
फूट जाता है भांडा जब
सर्वशक्तिमान डलवाता छापा
माया के रंग हो जाते बदरंग
भाग्य की रेखाएं टेढी होवें
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Saturday, September 8, 2007
कबूतरनी कि पत्नी
विदेश में हर भारतीय को अपने साथ
ले जाने में दिक्कत होगी पत्नी
साबित करना होगा नहीं है
वह उड़ाकर लाई कबूतरनी
शादी का एलबम सीडी या कोई
सबूत साथ रखना होगा
उड़ाकर लाई कबूतरनी नहीं
ब्याह कर लाई पत्नी यही
बार-बार साबित करना होगा
कहना पडेगा चीख-चीख कर
'यही है मेरी पत्नी'
कितना हैरान होगा जब कोई
विदेशी पूछेगा
'यह आपकी कौन'
भारतीय कहेगा
'पत्नी '
विदेशी पूछेगा
'क्या अपनी'
भला विदेशियों को कैसे ही
उनके घर में कोई पलटकर पूछ सकता है कि
'क्या पराई भी होती है पत्नी'
हवाई अड्डों पर शुरू होगी चेकिंग
'कौन लाया है पत्नी और कबूतरनी '
कितनी बार सबूत माँगता है आदमी
अपनी पत्नी से उसके पतिव्रता होने के
वह दिन भी आयेगा जब
पत्निव्रता होने के सबूत उसे
अपने साथ रखने होंगे'
हवा में उड़ने से पहले और बाद
उसे कदम-कदम पर
करना होगा साबित
'जो स्त्री मेरे साथ है
उसे लाने का खर्चा मैंने ही उठाया है
कोई नहीं खाया है कमीशन
इसे लाने के लिए इसके माँ-बाप से भी
लाया हूँ लिखित परमीशन
यह कोई कबूतरनी नहीं
मेरी है अपनी पत्नी'
इस तरह विदेशी दौरे पर आदमी की
जान तो सांसत में रहेगी
हंसती रहेगी पत्नी
मोबाइल का माडल, प्रेम का माडल
उस लडकी को लव लेटर थमाया
पर लडकी की तरफ से कभी
कोई जवाब नही आया
उसने लव में एक्सपर्ट अपने दोस्त
से जब इस बारे में बात की तो
वह बोला
'क्या बाबा आदम के जमाने में रहते हो
मोबाइल के जगह लडकी के हाथ में
सडे-गले कागज़ वाला प्रेमपत्र रखते हो
अब तो गिफ्ट देकर प्रेम का इजहार
करने का ज़माना आया'
दोस्त की बात से उसकी समझ
में पूरा माजरा आया
उसने बाजार से खरीदा मोबाइल
फिर जाकर लडकी के हाथ में थमाया
उसे गौर से देखने के बात वह बोली
'पुराना माडल है समझ में नहीं आया'
बिचारा सकपकाया
फिर निकला बाजार में
भटका इधर उधर
आख़िर ऐक नया माडल समझ में आया
बहुत महंगा था
फिर भी खरीद कर जा पहुंचा उस रास्ते पर
जहाँ से गुजरी वह तो उसे दिखाया
उसने उलट-पुलट कर देखा
फिर पूछा
'बेटरी फटने वाली तो नहीं
क्या इसे चेक कराया'
उसने ना में गर्दन हिलायी
मुहँ से प्रेम के इजहार के रुप में
प्रथम शब्द की उसकी अभिव्यक्ति
नहीं निकल पायी
लडकी ने वह मोडल भी लौटाया
वह तत्काल भागा फिर बाजार की तरफ
बेटरी चेक कराकर लॉट आया
और वापस घर जाती लडकी को दिखाया
लडकी ने अपने पर्स से निकाल कर
उसे मोबाइल दिखाया
'सौरी, तुम्हारे इस प्रेजेंट से पहले ही
यह एकदम नए माडल का मोबाइल
मेरे पास आया
मुझे पहली नजर में भाया'
उसके जाते ही लड़का आकाश में
देखकर हताशा में चिल्लाया
'शाश्वत प्रेम की इतनी गाथाएं सुनता हूँ
पर इस आधुनिक प्रेम का माडल किसने बनाया
जिस पर है मोबाइल के माडल की छाया
यह कभी मेरे समझ में नहीं आया'
---------------------------
Wednesday, September 5, 2007
मैं शिक्षक नहीं बनूंगा
'बडा होकर में शिक्षक बनूंगा
सब बच्चों को अच्छी शिक्षा देकर
आप का नाम रोशन करूंगा'
माँ घबडा कर रोने लगी
बाप ने बेटे को समझाया
' बेटा यह बेकार ख़्याल कैसे
तुम्हारे मन में आया
कहीं तुम्हारे स्कूल के टीचर
तुम्हें बहका तो नहीं रहे
खुद को हैं उनको रोटी के लाले
कहीं तुम्हें भी दरिद्रता की
आग में तो नहीं झोंक रहे
कल मैं तुम्हारे स्कूल जाकर
प्रिंसिपल से बात करूंगा'
माँ को फिर भी चैन नही आया
और बोली
'इसे किसी अच्छे डाक्टर को दिखाओ
मैंने इसके लिए देखें है कैसे सपने
नही सुन सकती इसके यह शब्द
कि मैं भी टीचर बनूँगा'
बाप ने डाक्टर को दिखाया
उसने दवाई लिखकर कहा
'चिन्ता की कोई बात नही
आपका बच्चा ठीक जो जाएगा
ऐसा मैं इलाज करूंगा'
कुछ दिन बाद बच्चे ने कहा
'मैं स्कूल का प्रिंसिपल बनूंगा'
बाप उसे डाक्टर के पास ले गया
और बोला
'आपके इलाज का फायदा हो रहा है
बच्चा ठीक हो रहा है पर
इसे कुछ और आगे बढ़ाईये
कालिज के लेवल तक लाईये
मैं आपका अहसान नहीं भूलूंगा'
कुछ दिन इलाज के बाद बच्चा बोला
'ना टीचर बनूँगा न प्रिंसिपल
मैं तो अपने की स्कूल और कालेज खोलकर
उसका डाइरेक्टर बनूंगा
अपने ही बनवाऊंगा मंहगे होस्टल
सबसे महंगी फ़ीस रखूंगा
सस्ती किताबे बेचूंगा मंहगे भाव
स्कूल और कालेज पर आपका नाम लिखूंगा'
माँ-बाप बहुत खुश हुए और
डाक्टर को दिया धन्यवाद और फ़ीस
और उसे बताया कि स्कूल और कालिज के
विचार से तो वह निकल नही पाया
पर अब डाइरेक्टर बनने के सोचता है
और कहता है कि
'में शिक्षक नही बनूंगा। '
मैं टीचर बनूंगा
'बडा होकर में शिक्षक बनूंगा
सब बच्चों को अच्छी शिक्षा देकर
आप का नाम रोशन करूंगा'
मन घबडा करो रोने लगी
बाप ने बेटे को समझाया
' बेटा यह बेकार ख़्याल कैसे
तुम्हारे मन में आया
कहीं तुम्हारे स्कूल के टीचर
तुम्हें बहका तो नहीं रहे
खुद को हैं उनको रोटी के लाले
कहीं तुम्हें भी दरिद्रता की
आग में तो नहीं झुक रहे
कल मैं तुम्हारे स्कूल जाकर
प्रिंसिपल से बात करूंगा'
माँ को फिर भी चैन नही आया
और बोली
'इसे किसी अच्छे डाक्टर को दिखाओ
मैंने इसके लिए देखें है कैसे सपने
नही सुन सकती इसके यह शब्द
कि मैं भी टीचर बनूँगा'
Tuesday, September 4, 2007
बुद्धिजीवियों का झगडा और आम आदमी
'मेरी बात सुनो '
दूसरे ने कहा
'पहले मेरी बात सुनो'
दोनों में तू तू -मैं मैं हो गयी शुरू
बहस इस बात पर लंबी चली कि
पहले कौन बोले और कौन है इसके लायक
कौन है चेला कौन है गुरू
चारों तरफ लग गयी भीड़
ऐक आम आदमी उनके पास आया
और उसने झगड़ा सुलझाया
जिसने पहले प्रस्ताव दिया है
वही करे पहले कहना शुरू
पहले ने कहा
'अब पहले मैं नही कहूंगा
जो यह कहेगा वही सुनुँगा'
दूसरे ने भी पलटा खाया और बोला
'अब यह बोलेगा मैं सुनूँगा
यह पहले मेरी सुनकर
अपनी बात गढ़ लेगा
इस मामले में है गुरू'
फिर हो गया शुरू
आम आदमी ने पूछा
' दोनों पहले यह बताओ
आपकी बुद्धि में क्या भरा है
इतिहास, भूगोल या अर्थशास्त्र'
दोनो ऐक स्वर में बोले
'झगड़ा शास्त्र'
और फिर उस पर अपना
ज्ञान बघारना किया शुरू
वह भागने लगा तो उसे पकड लिया
और ऐक बोला
'यह झगडा तो तुम्हें फंसाने के लिए था
अब पूरा ज्ञान सुनकर जाओ गुरू '
दूसरे ने कहा
'मैं कर रहा हूँ झगड़े पर उपाधि लेने का प्रयास
यही दिलवायेंगे
गुरू दक्षिणा में माँगा था ऐक श्रोता
नही दिल्वाता तो मैं रोता
मैं हूँ चेला यह ठहरे गुरू'
डरा सहमा आदमी कुछ देर तो सुनता रहा
फिर झटका देकर अपना हाथ छुड़ाया
और नहीं रुका जो किया भागना शुरू
-------------
चेहरे पर होते सब फ़िदा, देखता कोई चरित्र नहीं है
काम करने की योजना बनाई
निर्देशक ने इस पर अपनी आपत्ति जताई
पर फिर मजबूर होकर मान गया
जब निर्माता ने दी कम बजट की दुहाई
दोनों ने मिलकर नए लड़को-लड़कियों से
साक्षात्कार लेकर अपनी फिल्म की कास्ट बनाई
निर्देशक था चालाक
उसने अपने ही चेलों को
अभिनय और गायन में काम
दिलाने की योजना बनाई
पहले कर आया अकेले
साक्षात्कार का नाटक
फिर चयनित उम्मीदवारों की
निर्माता के सामने परेड कराई
पहले आया हीरो की भूमिका का उम्मीदवार
पहने था सिर पर मवालियों वाली टोपी
और हाथ में लिए था चाक़ू
निर्देशक ने उससे दिखावे के लिए पूछा
'क्या नाम है तुम्हारा'
उसने कहा
'गबन'
निर्देशक ने पूछा
'कितने केस कर चुके हो'
उसने कहा
'अब तक छप्पन'
उसके बाहर जाते ही निर्माता बोला
'यह तो कहीं से भी हीरो नहीं लगता
इसके चरित्र से तो भय लगता
दर्शक कभी इस विलेन को
हीरो नहीं मानेंगे
बाक्स आफिस पर फिल्म की होगी पिटाई'
निर्देशक बोला
'तुम्हें फिल्म बनानी है कि नही
बनाकर चलानी है कि नहीं
यह बहुत पहुंच वाला है
बदनाम है तो क्या नाम वाला है
रहा चरित्र का सवाल तो
मत मचाओ बवाल
फिल्म की कहानी में
इससे शांति, प्रेम, दया और अहिंसा को
बुलंद कराने वाले डायलाग बुलवा देंगे
जनता और मीडिया से वाह-वाह दिलवा देंगे
हीरोइन के रुप में भी इसकी गर्लफ्रेंड को चुना है
अगर कही किसी केस में बंद हो गया तो
चर्चा का केंद्र बन जाएगा
ऐक दिन इसके अन्दर जाने का
दूसरे दिन हीरोइन का इससे मिलने जाने का
सब जगह लाइव प्रसारण आएगा
अपनी फिल्म को फोकट में प्रचार मिल जाएगा
जहाँ देखो उसका नाम सुनाई देगा
इससे प्रचार का तुम्हारा खर्च भी बचेगा
कहो कैसी योजना बनाई?'
निर्माता बोला
'योजना तो बहुत अच्छी है
पर जोखिम बहुत है
मेरी समझ से परे है
पर तुम अमल करो भाई'
निर्देशक बोला
'आजकल कोई किसी का बंधु और मित्र नहीं है
सब फ़िदा होते है चेहरे पर
कोई देखता किसी का चरित्र नहीं है
अभी तुम दौलत के ढ़ेर पर हो
मैं तुम्हें शौहरत की दूंगा ऊंचाई
कभी नहीं की होगी
ज़िन्दगी में सोचा भी नहीं होगा
इतनी करोगे कमाई
-----------------'
Sunday, August 26, 2007
हीरो को मिली जेल, प्रियतम प्यार में फेल
गाने सुनने के शौक़ ने उन दोनों को
आपस में मिलवाया
फिर तो उन्होने फ़िल्मों जैसा ही
प्रेम प्रसंग रचाया
हीरो के जन्म दिन पर
प्रियतम ने प्रेयसी को
फेवरिट हीरो की फिल्मों की
सीडी अपने पहले उपहार के रुप में दीं
और उसने फिल्म में दिया था जैसा
सोने का हार वैसा ही उसे पहनाया
दोनों ने एक होटल में
केक काटकर जश्न मनाया
उसकी हर फिल्म
पहले दिन पहले शो में देखी और
हर गाने पर शोर मचाया
जब प्रेम फिल्मों जैसा था
तो फिल्म जैसी समस्या भी आनी थी
और वह दिन भी आया जब
हीरो को उसके काले कारनामों ने
सीधे असली जेल भिजवाया
प्रियतम तो गया संभल पर
प्रियतमा का हृदय घबडाया
और उसने जेल के बाहर जाकर
अपना डेरा जमाया
इधर प्रियतम ने रोज मिलने के
ठिकाने से जब उसे नदारद पाया
तो बहुत घबडाया
उसने अपनी प्रेयसी के मोबाइल पर
कई बार बजाई घंटी पर उसे बंद पाया
इधर-उधर ढूँढता रहा
अखिर जेल के दरवाजे से
हीरो का दर्शन किये बग़ैर लौटे
उसके ऐक मित्र ने उसे
प्रेयसी का पता बताया
वह वहां पहुंचा तो
अपनी प्रियतमा को गम में डूबा पाया
उसे देखते ही वह बोली
'तुम मुझे प्यार करते हो तो
अन्दर जाकर हीरो का पता लगाओ
उसका हाल जानकार मुझे बताओं'
प्रीतम बोला
'उसे अपने कर्मों का फल भोगने दो
उससे हमारा अब क्या वास्ता
अब उसे तुम भूल जाओ तुमने तो
अब मुझे अपना हीरो बनाया
बिना अपराध के अन्दर जाना संभव नहीं
सरकार ने कानून ही ऐसा बनाया'
प्रेयसी को गुस्सा आ गया और बोली
'मुझे इससे मतलब नहीं है
मुझे तो बस हीरो के दर्शन करने हैं
आज तुम्हारे इम्तहान का समय आया
उस हीरो की वजह से तुम्हारा और मेरा मिलन हुआ
जिसे किस्मत ने सींखचों के पीछे पहुंचाया'
जब प्रियतम ही अपनी जताई असमर्थता
तब वह बोली
'हीरो गया जेल और तुम्हें उस पर
बिल्कुल भी तरस नहीं आया
मैंने तो उसकी तस्वीर तुम में
देखकर ही तुमसे प्यार रचाया
उसके समर्थन में देखो कितने
लोगों ने आवाज उठाई है और तुमने
ऐक भी नहीं लगाया नारा
तुम प्यार के इम्तहान में फेल हो गये
आज मैंने तुम्हें आजमाया'
बहुत समझाने पर भी वह नहीं मानी
तब प्रियतम को भी गुस्सा आया और बोला
'अच्छा ही है जो तुमने
अपना असली रुप दिखाया
नकली हीरे को असली समझकर
उसमें दिल लगाने की बात मेरे
समझ में भी नहीं आयी
परदे की हीरो जिन्दगी के विलेन
अभिनय कें दिखाएँ बहादुरी और जिन्दादिली
हकीकत में कमजोर और बेरहम
लिखे डायलाग बोलने वाले
क्या बेजुबानों की भाषा समझेंगे
उनके चाहने वालों की बुद्धि पर
तो मुझे शक होता है
अच्छा ही उसे मिली जेल
मैं हुआ प्यार में फेल'
ऐसा कहकर प्रियतम अपने घर चला आया
बेटा हीरो या साधू बनना
जब से प्रचार के लिए
न किसी घौटाले में फंसने का भय
कुचल डाले
कहैं दीपक बापू
हीरो जैसी शौहरत और साधू जैसी
Saturday, August 25, 2007
बगुला भगत पर टिकी धर्म की धुरी
लाभ उठाकर भक्ति के नाम पर अंधविश्वास
और प्रेम के नाम पर प्रपंच रचाएं
पहने वस्त्र साधू और फकीर के
चाल, चरित्र और चाहत असाधु की
यज्ञ करें राष्ट्र के कल्याण के लिए
अपने लिए दौलत के अंबार जुटाएँ
मूहं में नाम , बगल में छुरी
बगला भगत पर टिकी धर्म की धुरी
कौन किसको साधे
कौन किससे सधे
सबने निज स्वार्थ ओढ़ लिए
माया के अँधेरे में भटक रहे हैं
एअर कन्डीशन कमरे में सांस ले रहे हैं
भ्रम,भय और भ्रष्टाचार का अँधेरा फैलाकर
लोगों को रोशनी के अहसास बैच रहे हैं
खालीपन है सबकी आँखों में
इन्सान तरस रहा है
इन्सान देखने के लिए
कहीं समंदर का पानी मीठा बताएं
कभी भगवान को दूध पिलायें
कही मूर्ती के आंसू टपकावाएं
इंसानियत और ईमान ढूंढते थक गये
किसी इन्सान में देखने के लिए
कौन कहता है कि
मजहब नहीं सिखाता बैर रखना
दुनियां में हर जंग पर
धर्म-मजहब का नाम लिखा है
इंसानों के बीच खडी है दीवार
इनके नाम पर सब लड़ रहे है
अपने -अपने पंथ के गौरव के लिए
बनाया था ऊपर वाले ने
इन्सान को आजादी से
जीने के लिए
उसने स्वर्ग के मोह में
अपने को गुलाम बना लिया
जात , भाषा और धर्म की
झूठी शान की खातिर लड़ने के लिए
जो जिम्मा लेते है ऊपर वाले का
सदेश फ़ैलाने की दुनिया की
अपने इंसानों को ही
दूसरे के लिए लिए शैतान बनाएं
---------------------
प्यार से है ज्यादा जान प्यारी
अपनी प्रेमिका से कहा
'हम दोनों के परिवार वाले
नहीं हो रहे हमारे रिश्ते पर सहमत
उनसे लड़ने की नहीं है हम दोनों में हिम्मत
चलो कहीं डूब कर मर जाते हैं
अपना नाम अमर प्रेमियों की
लिस्ट में शामिल करा जाते हैं '
प्रेमिका ने ग़ुस्से में अपना
हाथ छुडा कर कहा
'पगला गये हो
इस जमाने में प्रेम पर
आत्महत्या करने की
बात तो सोचना भी बेकार
मैं तो समझी थी कि टाइम
पास करने हम आते हैं
पुराने समय में नहीं थे
इन्टरनेट, कंप्यूटर और
टीवी जैसे मनोरंजन के साधन
नहीं देख पाता था कोई भी
नकली प्रेम के विज्ञापन
सिमटी रहती थी गाँव तक ही सोच
ऐक लडकी-लड़के के मिलने पर
हंगामा पूरे इलाके में मच जाता
अब तो सेंकड़ों सड़कों पर घुमते हैं
देखकर भी हर कोई अनदेखा कर जाता
अब तो पड़ फीकीं पुरानी प्रेम कहानी
कोई याद नहीं करता उनको
सबको याद हैं बस फिल्मी हीरो और
हीरों की नाम मुहँ जुबानी
ऐक ढूँढो हजार मिलते हैं
शादी के लिए रिश्ते
कलकत्ता से कनाडा तक दिखते हैं
तुम में नहीं है हिम्मत
पर मुझे तुम्हारे प्यार से ज्यादा है जान प्यारी
इसलिये कल से हम अजनबी हो जाते
-------------------
माँ-बाप कब सुधरेंगे
'मेरे मान-बाप नहीं है
बिना दहेज़ के मेरा विवाह
करने को तैयार
उनकी मर्जी के बिना
अगर मैंने बढ़ाया कदम तो
वह मुझ संपत्ति से बेदखल कर देंगे
मेरा-तुम्हारा साथ बस इतना ही था
अब फिर कभी नहीं मिलेंगे'
प्रेमी ने खेला था चालाकी से अपना दाव
प्रेमिका को पहले आया ताव
फिर संभलकर प्रसन्नता से बोली
'बहुत अच्छा हुआ
मेरी तरफ से उनको धन्यवाद देना
मेरी चिंता बिल्कुल न करना
कन्याओं के भ्रूण गिराने से चली जो हवा
उससे पड़ गया है लड़कियों का अकाल
समझदार माँ-बाप अब बेटे की शादी में
अब नहीं मांगते पैसा और माल
मेरे लिए परिवारवालों के पास
बिना दहेज़ के मेरा हाथ मांगने वाले
रिश्तों की झड़ी लगी थी
तुम्हारे साथ जिंदगी गुजरने के लिए तो
बस मैं अकेली अड़ी थी
आज से हम अपने रास्ते अलग कर लेंगे'
अपनी चाल नाकाम होते देखकर
प्रेमी घबडाया और बोला
'अभी जल्दी न करना
मैं अपने माता-पिता को
मनाने के प्रयास जारी रखूंगा
कभी न कभी तो हामी भरेंगे '
प्रेमिका ने कहा
'उमर निकल जायेगी तुम्हारी
माँ-बाप को मनाते
तुम जैसे कई बैठे हैं अपनी जवानी गंवाके
मैं अब इन्तजार नहीं कर सकती
विदेशों से आये हैं मेरे लिए रिश्ते
सोचती हूँ जाकर माँ-बाप की बात मान लूं
अच्छा तो मैं अब चलती हूँ
किस्मत में रहा तो फिर कभी मिलेंगे'
प्रेमिका चली गयी
प्रेमी पीछे से चिल्लाता रहा
पर वह अनसुना कर गयी
प्रेमी बोला'लड़को को तो सब
सुधरने के लिए कहते हैं
पर अपने मुहँ से दहेज़ मांग कर
अपने लड़के की जवानी बरबाद
करने वाले माँ-बाप कब सुधरेंगे'
Wednesday, August 22, 2007
ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा की प्रतिमाएं
क्योंकि सर्वेसर्वा ने आजादी के दिन
ऐक कार्यक्रम में कहा था
ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा
वह प्रतिमाएं हैं जो अब पुरानी हो चलीं
पर हमें उनका दामन नहीं छोड़ना
अपने विभाग में उन्हें बनाए रखना
ताकि लोगों में बने अपने विभाग की
छबि स्वच्छ और एकदम भली
कई अधिकारियों और कर्मचारियों की
हवाईयां उड़ रही थीं
अखिर यह प्रतिमाएं कहाँ हैं
कभी देखी नहीं अपने यहां
अगर थी तो गयी कहाँ
अब तो लोगों में चर्चा का विषय बन गयीं हैं
लोगों ने कभी देखी नहीं
इसलिये देखने आएंगे
हम उन्हें क्या दिखाएंगे
अख़बार और टीवी वाले चिल्लायेंगे
और इसके साथ ही
प्रतिमाएं ढूँढने की कवायद
जोरशोर से शुरू हो चली
बहुत कोशिश करने पर भी
वह कहीं न मिली
थक-हार कर सर्वेसर्वा से
ही पता पूछने के लिए
ऐक सहायक उनके पास गया
तो उन्होने खा
'तुम पगला गये हो
भाषण नहीं समझते
मैंने ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा के
किसी पत्थर की प्रतिमाओं का
जिक्र नहीं किया था
मेरा तात्पर्य केवल भावनाओं से था
तुम लोग तो उससे भी दूर रहना
मेरी सुविधाओं पर ही ध्यान रखना
हमारे यहाँ कैसे रह सकती है
ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा
जब कहीं भी नहीं चली
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दृश्य-अदृश्य
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सुरा, सुंदरी और सता के खेल में
अब ऐसे दृश्य सामने आने लगे हैं
कि पता ही नहीं लगता
असल हैं या फिल्म की शूटिंग है
दौलत, शौहरत और ताकत के सहारे
करने वालों का हर कर्म
शानदार अभिनय कहलाये
गरीब की बुरे क्या अच्छे कर्म पर भी
लोग करते हूटिंग है
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दृश्य-अदृश्य
प्रचार प्रबंधक रचते हैं
शब्दों का ऐसा मायाजाल कि
फिल्मी हीरो
असल जिन्दगी में विलेन होते हुए भी
लोगों के दिल में हीरो होते हैं
अखबार और टीवी में खबरों की
ऐसी चाल रचते हैं गोया कि
हीरो के जग जाहिर काले कारनामे भी
ऐसे प्रस्तुत होते हैं जैसे
कोई काल्पनिक दृश्य हैं
देश , समाज और मर्यादाओं का
कोई लेना-देना नहीं
हीरो से लड़ने वाली
उसे सताने वाली
ऎसी शक्ति है जो अदृश्य है
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प्रचार प्रबंधन
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असली दृश्य नकली लगे
और नकली लगे असली
इसी करामात को
कहते हैं प्रचार प्रबंधन
खलनायक को फिल्म में पीटकर
बनता है नायक
करता है असल जिंदगी में खलनायकी
पर अखबार रहते हैं खामोश
और टीवी पर ऐसे दृश्य आते जैसे
लोग देख रहे हैं स्वपन
Tuesday, August 21, 2007
मयखाने के पास अस्पताल
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अब रात के अंधेरो से ज्यादा
दिन की रौशनी में
अपनों की अँधेरी नीयत से
घबडाते हैं
क्योंकि जो दुष्कर्म करते थे अनजाने लोग
वही अपने कर दिखाते हैं
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मय खानों के पास अस्पताल
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पहले लोग मयखाने तक
खुद जाते और आते हैं
और फिर खुद जाते और
दूसरे उन्हें लाते हैं
मय का मायाजाल ऐसा कि
जब तक चढ़ी रहे दिलो-दिमाग पर
आदमी शेर की तरह गरजता है
और जब उतरे तो बिल्ली की तरह डरता है
इसलिये मय खानों के पास
अस्पतालों की लगने लगी हैं बाढ़
पीने वालों की जब उखड़ने लगे सांस
तब बिना इलाज मरने का गम
साथ लेकर नहीं जाते हैं
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कल्पना
श्रृंगार रस की कविता को
ऐक कवि महोदय
बहुत लंबा खींच जाते हैं
महिलाओं में इसीलिये
प्रसिद्धि भी पाते हैं
जब उनसे वजह पूछी गयी
तो बोले
'क्रीम, पाउडर और फैशियल
के ज़माने में जब लोग
वास्तविक सौन्दर्य को
देखने के लिए तरसे जाते हैं
और यह तो प्रकृति का नियम है
जिससे लोग होते हैं वंचित
उसी के लिए मरे जाते हैं
नहीं करते किसी की तारीफ दिल से
इसलिये महिलाएं देखती हैं
मेरी कविता की नायिका में अपनी तस्वीर
पुरुष कल्पनाओं में ही सौन्दर्य की
प्रशंसा का आनंद उठाते हैं
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Sunday, August 12, 2007
सास-बहू का सीरियल और झगडा
जब घर वापस लौटा तो
सास-बहू में कुहराम मचा हुआ था
बाप बाहर सिर पकड़े बैठा था तो
अन्दर बच्चों का मुहँ सूख रहा था
उसने बेटे से पूछा तो
वह बोला-'हम तो पढ़ रहे थे
ज्यादा तो पता नहीं
पर झगडा जब शुरू हुआ
तब टीवी पर सास-बहू वाला
कोई सीरियल चल रहा था
दादी ने कहा इसकी सास ठीक है
बहू है एकदम नालायक
मम्मी ने कहा सास करा रही है
सब जगह झगडे
बहू तो है एकदम सीधी
फिर तो जो चला दोपहर से
वाद-विवाद जो
आपके आने तक चल रहा था'
आदमी ने इन्क्वायरी शुरू की
बेटी से पूछा-'
तुम भी तो देखती हो
अपनी दादी-मम्मी से साथ सीरियल
दोनों में छिड़ गयी जंग
ऐसा कौनसा सीन चल रहा था'
बेटी ने कहा-'
मम्मी और दादी तो
अपने-अपने कमरे में
अलग-अलग चैनल पर
सास-बहू के सीरियल देख रहीं थी
एक में थी बहू विलेन तो दूसरे में
सास खतरनाक रोल कर रही थी
मम्मी गयी चाय के लिए
दादी से पूछने तो वह रो रही थी
सीरियल वाली बहू को कोस रही थी
मम्मी अपने सीरियल की सास
पर क्रोध प्रकट कर रही थी
मैं तो छत पर चली गयी
सीरियल का सीन घर में
आते देख डर लग रहा था'
आदमी अपना सिर पकड
कर बैठ गया
अपनी माँ को समझाए कि
अपनी पत्नी को मनाये
वह कुछ तय नहीं कर पाया
क्योंकि वह सीरियल नहीं देख रहा था
जिससे पैदा हुआ झगडा
अभी तक उसके घर में चल रहा था
जंगल में प्रजातंत्र
पास ही मेमनों का झुंड जंगल की
राजनीति में चर्चा कर रहा था
एक ने कहा-"
हमारे राजा की मति फिर गयी है
पास के जंगल का शेर हम पर
नजरें गाढ़े बैठा है
और यह उससे शांति का
समझौता कर रहा है
अपने जंगल की नहीं
अपनी जान की फिक्र कर रहा है
वह इस बात से अनजान थे कि शेर
सब बातें सुन रहा था
दूसरे ने कहा -'
इसे पता नही अगर यह राजा है
तो हम भी प्रजा हैं
अगर हम यह जंगल छोड़ गये
तो इसकी गद्दी खतरे में होगी'
गद्दी की बात सुनकर शेर उठ बैठा
और जम्हाई लेते हुए बोला-'
क्या कहा किसकी गद्दी ख़तरे में होगी'
उसकी गर्जना सुनकर हर मेमना
बुरी तरह काँप रहा था
सबने शेर से ऐसे मुहँ फेरा
जैसे वह किसी अन्य विषय पर
बतिया रहे थे पर शेर है कि
गरज रहा था-'
जिसे जाना है चले जाओ
मैं तो राजा ही पैदा हुआ हूँ
राजा ही मरूंगा
तुम मुझे मत चलाओ
मैं तुम्हारी हर बात सुन रहा था'
मेमनों का नेता बोला-'
हुजूर आपने ही तो इस
जंगल में लोकतंत्र की
स्थापना की है उसमें तो
सब चलता है
आप महान है आपकी दम पर
तो वही चलता है '
उसकी बात पर शेर का
गुस्सा ठण्डा हो गया और
वह जोर-जोर से हंस रहा था
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अँधेरे में तीर का तक चलेंगे
जहाँ दाल का पानी भी नहीं मिलता
कागजों में बाँट जाती है खीर
गरीबी का इलाज करते हैं
ऐसे शल्य-चिकित्सक
जो नहीं जानते इसकी पीर
आकर्षक योजनाओं का रथ
भ्रष्टाचार के पहियों पर
धीरे-धीरे रेंगता हुआ चलता है
जिसको अवसर मिलता है
वही फुर्ती से कमीशन
लूटकर चलता बनता है
बोरी में बंद गेहूं, दाल और चावल
बिचोलियों के भोजन में
बन जाता है मटन-पनीर
बेरोजगारी का इलाज
वह लोग करते हैं
जो ऊपरी कमाई के कहलाते हैं वीर
प्रतिवेदन में लिखे होते हैं दावे
हजारों बनाम पेट भर जाने के
जाने-पहचाने नाम वाले
मुख होते हैं मोहताज दाने-दाने के
पता नहीं कब तक चलेंगे
इस तरह अंधेरे में तीर
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नारे लगते-लगते विकास के
इस देश में आशाओं और आकांक्षाओं
के दीप जलने लगे हैं
फाइलों में ऊंची विकास दर के
आंकडे अब सितारों की तरह
चमकने लगे हैं
टीवी चैनलों और अखबारों में
विकास की बातें करने वालों के
चेहरे रोज चमकने लगे हैं
पर सड़कों पर पडे गड्ढे
चहुँ और फैले गंदगी के ढ़ेर
और रोजगार के लिए भटकते
हुए युवकों का हुजूम
जो एक कटु सत्य की तरह
सामने खडा है
उससे क्यों डरने लगे हैं
विकास के आंकडे और सच
अलग-अलग क्यों लगने लगे हैं
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शिक्षा अब व्यापार हो गयी है
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शिक्षा अब धर्म नहीं
व्यापार हो गयी है
शिक्षक देते हैं अखबार और टीवी में
अपने श्रेष्ठ होने का विज्ञापन
छात्र लिखते हैं अपनी
मांगों के लिए नित नये ज्ञापन
किताबें पढने के लिए
न लिखीं जातीं
न छापीं जातीं
बाजार में बिक जाये
छात्रों पर किसी तरह थोप पायें
ऎसी व्यूह रचना की जाती है
शब्दों पर भी माया की
अब मार हो गयी है
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शिक्षा और ज्ञान सस्ता
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निजी संस्थान में काम करने वाले
एक क्लर्क से ज्यादा
दिहाडी के मजदूर
ज्यादा कमाते हैं
कहीं वह पिछड़ जाते हैं
शिक्षा और ज्ञान कहीं सस्ते
कहीं खोलें ऊंचाई के रस्ते
ऐसे दृश्य देश की अकुशल प्रबंध की
समस्या को दर्शाते हैं
ऊंचीं-ऊंची बातें करते वाले
इस देश के रहनुमा अर्थशास्त्री भी
इस विषय पर बहस और
चर्चा करते से कतराते हैं
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Saturday, August 11, 2007
पुरस्कार ऐसे ही नहीं मिल जाते हैं
अपने सचिव से कहा'-
इस बार के वार्षिक पुरस्कार के लिये
ऐसे लेखक का नाम ढूँढना
जो लिखता हो पर प्रचार के लिये
किसी की न तो
चमचागिरी करता हो
न ही ऐक रचना लिखकर
उसे हजार जगह सुनाता हो
न छ्पवाता हो
और उसके रचना में दम भी हो
समाज सेवा के क्षेत्र में भी
किसी ऐसे व्यक्ति का नाम सुझाना
जो वाकई में निष्काम भाव से
सेवा करता हो
उसके नाम पर चंदा न कर
अपनी जब से पैसा लगाता हो
बैठक में सन्नाटा खिंच गया
सचिव कुछ देर सोचने के बाद
मुस्कराता हुआ बोला-'
सर इसके लिये कहीं
और जाने की क्या जरूरत है
इतना काम है कि किसे
इतनी माथापच्ची करने की फुरसत है
आपके सुपुत्र जी की कुछ कविताएँ
कालिज के मेग्जीन में छपीं हैं
मित्रो के बीच में कविता भी
खूब सुनाते हैं न किसी की
चमचागिरी करते हैं
न कहीं अन्यत्र सुनाने जाते हैं
और समाज सेवा में तो सर
आप ही जाने जाते हैं
अपने घर का पुराना सामान
मंदिर में दान दे आते हैं
और कहीं प्रचार के लिये
खबर नही छ्पवाते हैं
सर मेरा विचार तो यह है
कि दोनों पुरस्कार आप
पिता-पुत्र पर फ़िट हो जाते हैं
मन्त्री जी खुश हो गये और बोले -'
तुम जाकर यह घोषणा करो
तब तक हम यह खबर
अपनी श्रीमतीजी को सुना कर आते हैं
उन्हें भी पता लगे कि
पुरस्कार ऐसे ही नहीं मिल जाते हैं
Tuesday, August 7, 2007
सबसे अलग होकर लिख
समाज में झगडा न होता हो तो
कराने के लिए लिख
शांति की बात लिखेगा
तो तेरी रचना कौन पढेगा
जहां द्वंद्व न होता वहां होता लिख
जहाँ कत्ल होता हो आदर्श का
उससे मुहँ फेर
बेईमानों के स्वर्ग की
गाथा लिख
ईमान की बात लिखेगा
तो तेरी ख़बर कौन पढेगा
अमीरी पर कस खाली फब्तियां
जहाँ मौका मिले
अमीरों की स्तुति कर
गरीबों का हमदर्द दिख
भले ही कुछ न लिख
गरीबी को सहारा देने की
बात अगर करेगा
तो तेरी संपादकीय कौन पढेगा
रोटी को तरसते लोगों की बात पर
लोगों का दिल भर आता है
तू उनके जजबातों पर ख़ूब लिख
फोटो से भर दे अपने पृष्ठ
भूख बिकने की चीज है ख़ूब लिख
किसी भूखे को रोटी मिलने पर लिखेगा
तो तेरी बात कौन सुनेगा
पर यह सब लिख कर
एक दिन ही पढे जाओगे
अगले दिन अपना लिखा ही
तुम भूल जाओगे
फिर कौन तुम्हे पढेगा
झगडे से बडी उम्र
शांति की होती है
गरीब की भूख से
लडाई तो अनंत है
पर जीवन का
स्वरूप भी बेअंत है
तू सबसे अलग हटकर लिख
सब झगडे पर लिखें
तू शांति पर लिख
लोग भूख पर लिखें
तुम भक्ति पर लिख
सब आतंक पर लिखें
तू अपनी आस्था पर लिख
सब बेईमानी पर लिख
तू अपने विश्वास पर लिख
जब लड़ते-लड़ते
थक जाएगा ज़माना
क्योंकि मुट्ठी हमेशा
भींचे रहना कठिन है
हाथ कभी तो खोलेंगे ही लोग
तब हर कोई तुम्हारा लिखा पढेगा
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छिद्रान्वेष्ण करने वाले क्या ख़ाक सृजन करेंगे
करें छिद्रान्वेषण
कहैं जैसा वह लिखता है
वैसा खुद नही दिखता है
आधा-अधूरा पढ़ें
शब्दों के अर्थ न समझें
भाव क्या वह समझेंगे
करते हैं लिखने वाले का
चरित्र विश्लेषण
ऐसे लेखक क्या सृजन करेंगे
अपने दोष रहित होने का
जिसे आत्मबोध है
अपनी चाहत के अनुरूप
न लिखा होने का जिनके मन में
अत्यंत क्रोध है
दुसरे लेखक से अपने
लिखे के अनुसार ही चाल, चरित्र और
चेहरा रखने का होने का अनुरोध है
लिखेंगे वह खुद जो
उसका वह मतलब खुद नहीं समझेंगे
भाव रहित और भ्रमित अर्थ के
शब्दों से ही अपने पृष्ठ भरेंगे
आजकल तो दोष देखने का
सिलसिला कबीर और तुलसी में भी
देखने का चल पडा है
हिंदी में इसलिये सार्थक
रचनाओं का अकाल पडा है
विदेशी लेखकों में
महानता ढूँढने वाले
उनके शब्दों को दोहराकर
इतराने वाले
अपनी मातृभाषा को
पवित्र रचनाओं की क्या सौगात देंगे
कहैं दीपक बापू
अपने दोषों में ही जीवन का
अर्थ ढूँढा है
अपने ही धर्म ग्रंथों में ही
जीवन का अनमोल सत्य ढूँढा है
तुलसी, सूर, कबीर और मीरा के
छंदों में जीवन का रहस्य ढूँढा है
उनकी रचनाओं में दोष ढूँढने वाले
हिंदी के स्वर्णिम काल में
पत्थर ढूँढने वाले
अपनी मातृभाषा की माला में से
क्या भला शब्दों के मोती चुनेंगे
जो दोषों का पुलिंदा पकड़े बैठे हैं
छिद्रों में अन्दर तक घुसे हैं
ऐसे लोग भला क्या ख़ाक सृजन करेंगे
Monday, August 6, 2007
माया और मय के खेल में सिद्ध भी फेल हो जाएँ
दूल्हा-दुल्हन की जोडी को
राम-सिया जैसी बताएं
पर उनके बारातियों जैसी
मर्यादा नहीं निभाएं
शराब पीकर करते हैं
भरे बाजार करते हैं डांस
सड़क पर जाम लगाएं
आत्मा के मिलन का तो नाम है
लगती है नीलामी दूल्हे की
मांग होती है
टीवी, फ्रिज, मोटर साइकिल
और गैस चूल्हे की
राजा दशरथ जैसे नहीं है
पर मांगें ऎसी कि
बडे-बडे अमीर भी शरामाएं
मर्यादा, संस्कार और कुल की
बातें होती हैं बड़ी-बड़ी
पर लेनदेन की बात पर
सब अपनी औकात बताएं
कहैं दीपक बापू
ज्यों-ज्यों चलते हैं धर्म की राह
त्यों-त्यों अधर्म सामने आता है
सिद्धांतों और आदर्शों के झंडे तले ही
पाखण्ड सरेआम रचा जाता है
शराब के नशे में अमर्यादित होकर
करते हैं मर्यादा की बात
शादी के सौदे में लाखों का लेनदेन कर
करते हैं भगवान् की मर्जी बात
माया और मय का खेल ही ऐसा कि
बडे-बडे सिद्ध भी फेल हो जाएँ
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Sunday, August 5, 2007
फ्रेंड्स डै बना छुट्टी का दिन
झुग्गी-झौंपडी की जगह महल का चित्र
सब बच्चे बडे उत्साह से अपने कार्य में जुट गये, पर एक बच्चा परेशान चुपचाप बैठा था और चित्र नहीं बना पा रहा था। टीचर ने जब उसे डांटा तो वह रुआंसा हो गया और बोला-''सर, मुझे चित्र नहीं बनाना आता।
टीचर ने कहा-''कोशिश करो, अभी नहीं तो बाद में बन जाएगा।"
वह बच्चा बोला-''आप मुझे मारेंगे तो नहीं।"
टीचर ने कहा-"नहीं!तुम जैसा भी बनाओ। मैं तुम्हें नहीं मारूंगा।"
उस बच्चे ने चित्र बना दिया। प्रतियोगिता समाप्त हो गयी। सबने अपनी कापी टीचर को सौंप दीं। सबने अच्छे चित्र बनाए थे। रंग-बिरंगी कलम से उन चित्रों में उनके निवासी भी चित्रित किये गये थे। पर उस बच्चे ने आडी-तिरछी लाइनें खींचकर एक मकान बना दिया और उस पर लिख दिया 'मेरा आलीशान महल' और उससे बहुत दूर गड्ढेनुमा गोला खींचकर लिख दिया 'झुग्गी-झौंपडी'।
टीचर ने प्रसन्न होकर उसे ही पुरस्कार दिया। अन्य टीचरों ने जब यह देखा -सूना तो उनसे आपति जताई। तब उन्होने उत्तर दिया -" तुम जानते हो न! पूत के पाँव पलने में ही नजर आते हैं। उसने झुग्गी-झौपडी को गड्ढे में डालकर किसी तरह अपना आलीशान महल बना लिया। आख़िर उसमें वह सभी गुण दिख रहे हैं जिससे लगता है कि आगे वह ऐसा ही करेगा। अगर कहीं झुग्गी-झौंपडी बनाने वाला ठेकेदार बन गया तो......अपने लिए कितना बडा महल बनाएगा और कितनी तो इसके पास गाडियां होंगी। और कुछ नहीं तो तब इसकी वजह से समाज में कितना सम्मान होगा कि मैंने कितने बडे ठेकेदार को पढ़ाया है।
बाकी टीचर उनका मुहँ ताक रहे थे । कुछ ने तो उनकी दूरदर्शिता की सराहना भी की।
Saturday, August 4, 2007
कहीं अमेरिका तो कहीं भारत लगता है
बना देने का तुम्हारा ख्याली पुलाव
डरावने सपने जैसा लगता है
या तो तुम्हे सच पता नहीं
या हमारा खबरची एकदम
झूठा लगता है
पता नहीं क्यों दूर का ढोल
तुम्हें सुहावना लगता है
टीवी और फिल्मों में
दिखती हैं ऊंची-ऊंची और
चमकदार इमारतें
चहूँ ओर पेड से सजी
काले नाग की तरह चमकती
और दमकती हुई सड़कें
उन पर दौड़ती हुईं
रंगीन महंगी कारें
मनभावन दृश्य देखकर
तुम्हारा मन उछलने लगता है
पर रोशनी के पीछे जो अंधियारे हैं
उनके होने का अहसास केवल
उसे जीने वालों को ही लगता है
जब तक फिट हो
तेज दौड़ सकते हो
अमेरिका में हिट होते
नजर आओगे
जब थकने लगेगा मन
ढलने लगेगा तन
तब अपने वतन लॉट आओगे
अगर अमेरिका बन गया यहां
फिर कहाँ जाओगे
अमेरिका के जख्म का इलाज
लोग कराने यहां आते है
वहां अपने रक्त को सस्ता
और दवा को महंगा पाते हैं
बुखार के हमले के शिकार
उससे बचने के लिए
अपने वतन आते हैं
वहाँ की अस्पताल की सीढिया
चढ़ने से अधिक
विमान में चढना सहज पाते हैं
अगर यहाँ अमेरिका बन गया तो
फिर कहाँ लॉट जाओगे
तुम्हारे ख्याली पुलाव का
सच से वास्ता नहीं लगता है
अमेरिका में बेकारी, भ्रष्टाचार
और गरीबी नहीं है
यह सोचना तुम्हारा वहम है
लगता है अपनी क़दर
न होने से नाखुश हो
अपने देश को कमतर बता रहे हो
यह तुम्हारा झूठा अहम है
तुम्हारे ख्याली पुलाव में
भ्रम छाया लगता है
कहै दीपक बापू
फिर भी नहीं मानते बात हमारी
तो मान लो यहां भी अमेरिका
बन गया है
गरीब का जीना वहां भी
इतना ही दूभर है
जितना यहाँ हो गया है
माया का स्वप्नलोक है अमेरिका
पर भूलोक के सच को
जानते है भारत के लोग
इसलिये नहीं पालते
व्यथित होकर भी
आत्महत्या का रोग
जिन्होंने धारण किया है
पश्चिमी देशो की संस्कृति को
अपनी जड़ों से कटकर
अमेरिका यहीं बसा लिया है
सामाजिक कार्यक्रमों में
बहती है अंग्रेजी शराब की धारा
अमेरिकी संगीत को उनका
हिस्सा बना लिया है
शाम को गोधूलि बेला में
गायों की झुंड की जगह मार्ग में
उनकी जगह मिलते हैं
पैट्रोल-डीजल का धुँआ छोड़ते वाहन
जहां बहती थीं दूध की नदियां
वहाँ हर तरफ जहर बहता लगता है
अब होने या न होने का
प्रश्न ही कहाँ जो
तुमने उसे दिल में फंसा लिया है
द्वंदों के बीच में है देश का समाज
कहीं अमेरिका तो
कहीं भारत लगता है
Friday, August 3, 2007
खेल सिफारिश का
मिल जाये किसी बडे आदमी
की हमें भी सिफारिश
हर आदमी के दिल में यह
हमेशा होती है कशिश
सबके दिल की बातें
पूरी हो जातीं तो
हर जगह बस गयी होती जन्नत
सिफारिश से अगर
सारा जहाँ सज गया होता
तो जुह्न्नुम खाली पडा होता
गली-मुहल्लों में पडे कूड़े के ढ़ेर
मलेरिया और डेंगू के मच्छरों जैसे शेर
कभी के मिट गये होते
सर्दी में पानी के लिए तरसते लोग
नहीं करते महसूस गर्मी की तपिश
यहाँ दया और दान पर नहीं मिलती
बड़ों की चौखट पर जाकर
कितनी भी करो
आरजू और मिन्नतें
परन्तु उनके दिल में रखी
बर्फ की चट्टान नहीं पिघलती
पानी, दवा, सड़क और बिजली की
जरूरत से कोई वास्ता नहीं
कारों के खास नंबर
कालोनी में करोड़ों का प्लाट
कौड़ियों की दाम पर
देने के लिए बडे प्यार से
मिल जाती है सिफारिश
समाज सेवा के नाम पर
गरीबों, दलितों और शौषितौं
के लगते है रोज नारे
पर सिफारिशी चिट्ठी पर
किसी बडे आदमी का नाम
जिसकी पूरी होती हर फरमाईश
कहैं दीपक बापू
मन में कई बार आया
कई लोगों ने बहलाया
कुछ ने फुसलाया
पर की कहीं से नही पाई
किसी बडे आदमी की सिफारिश
अपने हाथ ही बने जगन्नाथ
अपने चरण ही बने कमल
अब बडे-बडे लोगों की ओर देखकर
मन्द-मन्द मुस्कराते है
आख़िर वह लोग भी इतने बडे
बन जाते है किसी से लेकर सिफारिश
जो खुद खरीदी है उसे किसी और को
मुफ़्त में कैसे देंगे
कोई पुराना माल नहीं है
जो कबाड़ समझ कर
गरीब को दान में देंगे
इसलिये उस सर्वशक्तिमान की
चौखट पर ही अब अपना शीश नवाते हैं
जब उनके मन में आयेगा
वही करेंगे सिफारिश
गीत-संगीत का मोबाइल से क्या संबंध
हुआ यूँ कि कल हम अपने एक मित्र के साथ एक होटल में चाय पीने के लिए गये, वहाँ पर कई लोग अपने मोबाइल फोन हाथ में पकड़े और कान में इयर फोन डालकर समाधिस्थ अवस्था में बैठे और खडे थे। हमने चाय वाले को चाय लाने का आदेश दिया तो वह बोला-" महाराज, आप लोग भी अपने साथ मोबाइल लाए हो कि नहीं?'
हमने चौंककर पूछा कि-"तुम क्या आज से केवल मोबाइल वालों को ही चाय देने का निर्णय किये बैठे हो। अगर ऐसा है तो हम चले जाते हैं हालांकि हम दोनों की जेब में मोबाइल है पर तुम्हारे यहाँ चाय नहीं पियेंगे।"
वह बोला-"नहीं महाराज! आज से शहर में एफ.ऍम.बेंड रेडिओ शुरू हो गया है न! उसे सब लोग मोबाइल पर सुन रहे हैं। अब तो ख़ूब मिलेगा गाना-बजाना सुनने को। आप देखो सब लोग वही सुन रहे हैं। आप ठहरे हमारे रोज के ग्राहक और गानों के शौक़ीन तो सोचा बता दें के शहर में भी ऍफ़.एम्.बेंड " चैनल शुरू हो गये हैं।"
" अरे वाह!"हमने खुश होकर कहा-" मजा आ गया!"
"क्या ख़ाक मजा आ गया?" हमारे मित्र ने हमारी तरफ देखकर कहा और फिर उससे बोले-"गाने बजाने का मोबाइल से क्या संबंध है? वह तो हम दोनों बरसों से सुन रहे हैं । यह तो अब इन नन्हें-मुन्नों के लिए ठीक है यह बताने के लिए कि गाना दिखता ही नहीं बल्कि बजता भी है। इन लोगों नी टीवी पर गानों को देखा है सुना कहॉ है, अब सुनेंगे तो समझ पायेंगे कि गीत-संगीत सुनने के लिए होते हैं न कि देखने के लिए। "
हमारे मित्र ने ऐसा कहते हुए अपने पास खडे जान-पहचाने के लड़के की तरफ इशारा किया था। उसकी बात सुनाकर वह लड़का तो मुस्करा दिया पर वहां कुछ ऐसे लोगों को यह बात नागवार गुजरी जो उन मोबाइल वालों के साथ खडे कौतुक भाव से देख और सुन रहे थे। उनमें एक सज्जन जिनके कुछ बाल सफ़ेद और कुछ काले थे और उनके केवल एक ही कान में इयर फोन लगा था उन्होने अपने दूसरे कान से भी इयर फोन खींच लिया और बोले -"ऐसा नहीं है गाने को कहीं भी और कभी भी कान में सुनने का अलग ही मजा है। आप शायद नहीं जानते।"
हमारे मित्र इस प्रतिक्रिया के लिए तैयार नहीं था पर फिर थोडा आक्रामक होकर बोला-" महाशय! यह आपका विचार है, हमारे लिए तो गीत-संगीत कान में सुनने के लिए नहीं बल्कि कान से सुनने के लिए है. हम तो सुबह शाम रेडियों पर गाने सुनने वाले लोग हैं। अगर अब ही सुनना होगा तो छोटा ट्रांजिस्टर लेकर जेब में रख लेंगे। ऎसी बेवकूफी नहीं करेंगे कि जिससे बात करनी है उस मोबाइल को हाथ में पकड़कर उसका इयर फोन कान में डाले बैठे रहें । हम तो गाना सुनते हुए तो अपना काम भी बहुत अच्छी तरह कर लेते हैं।"
वह सज्जन भी कम नहीं थे और बोले-"रेडियो और ट्रांजिस्टर का जमाना गया और अब तो मोबाइल का जमाना है। आदमी को जमाने के साथ ही चलना चाहिए।"
हमारा मित्र भी कम नहीं था और कंधे उचकाता हुआ बोला-"हमारे घर में तो अभी भी रेडियो और ट्रांजिस्टर दोनों का ज़माना बना हुआ है।अभी तो हम उसके साथ ही चलेंगे।
बात बढ न जाये इसलिये उसे हमने होटल के अन्दर खींचते हुए कहा-"ठीक है! अब बहुत हो गया। चल अन्दर और अपनी चाय पीते हैं।"
हमने अन्दर भी बाहर जैसा ही दृश्य देखा और मेरा मित्र अब और कोई बात इस विषय पर न करे विषय बदलकर हमने बातचीत शुरू कर दीं। मेरा मित्र इस बात को समझ गया और इस विषय पर उसने वहाँ कोई बात भी नहीं की । बाद में बाहर निकला कर बोला-" एक बात मेरी समझ में नहीं आ रही कि यह लोग गीत-संगीत के शौक़ीन है या मोबाइल से सुनने के। देखना यह कुछ दिनों का हे शौक़ है फिर कोई नहीं सुनेगा हम जैसे शौकीनों के अलावा।"
हमने कहा-" यह न तो गीत-संगीत के शौक़ीन है और न ही मोबाइल के! यह तो दिखावे के लिए ही सब कर रहे हैं। देख-सुन समझ सब रहे हैं पर आनंद कितना ले रहे हैं यह पता नहीं।"
हमारे शहर में एक या दो नहीं बल्कि चार एफ.ऍम.बेंड रेडियो शुरू हो रहे है और इस समय उनका ट्रायल चल रहा है। जिसे देखो इसी विषय पर ही बात कर रहा है। मैं खुद बचपन से गाने सुनने का आदी हूँ और दूरदर्शन और अन्य टीवी चैनलों के दौर में भी मेरे पास एक नहीं बल्कि तीन रेडियो-ट्रांजिस्टर चलती-फिरती हालत में है और शायद हम जैसे ही लोग उनका सही आनद ले पायेंगे और अन्य लोग बहुत जल्दी इससे बोर हो जायेंगे। हम और मित्र इस बात पर सहमत थे कि संगीत का आनंद केवल सुनकर एकाग्रता के साथ ही लिया जा सकता है और सामने अगर दृश्य हौं तो आप अपना दिमाग वहां भी लगाएंगे और पूरा लुत्फ़ नहीं उठा पायेंगे।
गीत-संगीत के बारे में तो मेरा मानना है कि जो लोग इससे नहीं सुनते या सुनकर उससे सुख की अनुभूति नहीं करते वह अपने जीवन में कभी सुख की अनुभूति ही नहीं कर सकते। गीतों को लेकर में कभी फूहड़ता और शालीनता के चक्कर में भी नही पड़ता बस वह श्रवण योग्य और हृदयंगम होना चाहिए। गीत-संगीत से आदमी की कार्यक्षमता पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार अधिक टीवी देखने के बुरे प्रभाव होते हैं जबकि रेडियो से ऐसा नहीं होता। मैं और मेरा मित्र समय मिलने पर रेडियो से गाने जरूर सुनते है इसलिये हमें तो इस खबर से ही ख़ुशी हुई । जहाँ तक कानों में इयर फोन लगाकर सुनने का प्रश्न है तो मेरे मित्र ने मजाक में कहा था पर मैंने उसे गंभीरता से लिया था कि 'कानों में नहीं बल्कि कानों से सुना जाता है।'
बहरहाल जिन लोगों के पास मोबाइल है उनका नया-नया संगीत प्रेम मेरे लिए कौतुक का विषय था। घर पहुंचते ही हमने भी अपने ट्रांजिस्टर को खोला और देखा तो चारों चैनल सुनाई दे रहे थे। गाने सुनते हुए हम भी सोच रहे थे-'गीत संगीत का मोबाइल से क्या संबंध ?'
Wednesday, August 1, 2007
बेटा तू साधू या हीरो बनना
माँ कहती थी
पढ़ जा बेटा
तुझे किसी तरह भी
इंजीनियर या डाक्टर है बनना
बाप कहता था
पढ़ या नहीं परन्तु
दुनिया के सारे गुर सीख ले
तुझे किसी तरह नेता है बनना
अब दोनों ही कहते हैं
पढ़ या नहीं तेरी मर्जी
परन्तु तू साधू या हीरो बनना
जब से प्रचार के लिए
साधू और हीरो की माँग
बाज़ार में बढ़ी है
जनता की नजरों में
उनकी छबि चढी है
वह दिन अब लद गये जब
लोग अपने प्रतिनिधियों के
दीवाने थे
अब टूट गया है उनका भ्रम
वह दिन भी गये जब लड़के के
साधू बन जाने का भय सताता था
अब उन्हें पता चल गया है
उसका आश्रम कोई वीराने में नहीं बसेगा
पर्ण कुटिया के तरह नहीं
फाइव स्टार की तरह सजेगा
ग्रंथों का ज्ञान तोते की तरह रटेगा
और दुनिया भर की एश करेगा
बन गया हीरो तो भी
महापुरुषों की तरह पुजेगा
सबके माता-पिता की यही है तमन्ना
न किसी घौटाले में फंसने का भय
न किसी सेक्स स्कैंडल में
बदनाम होने की आशंका
साधू होकर काले धन को
सफ़ेद करेगा
पकडा गया तो भी उनके
भक्तो के भड़कने के भय से
कौन पकडेगा
हीरो होकर जेल गया तो भी
प्रशंसकों का हुजूम उमडेगा
अच्छा हो या बुरा
चारों तरफ बजेगा डंका
बेटे के ऐसे ही रुप की
करते हैं सब कल्पना
कहैं दीपक बापू
हम अपने को खुद ठगते हैं
या कोई हमें मूर्ख बना जाता है
धर्म ग्रंथ पढ़-पढ़कर
और फिल्म देखकर
अपनी उम्र गंवाते जा रहे हैं
अपना ज्ञान ही अज्ञान लगता है
स्वाभिमान ही अपना अपमान
करने जैसा लगता है
हीरो जैसी शौहरत और
साधू जैसी क्यों न कर सके कमाई
क्यों नहीं पाली ऎसी तमन्ना
फिर सोचते हैं यह तो भेड़ चाल है
जब इनका यह भी भ्रम टूटेगा
इसने ऊपर भी कोई
सर्वशक्तिमान है
जब यह भांडा फूटेगा
तब लोगों की रह जायेगी सब कल्पना
अभी तो कह लेने दो
बेटा साधू या हीरो बनना
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