Thursday, December 31, 2015

खरीखोटी नीयत-हिन्दी कविता(KhariKhoti Neeyat-Hindi Kavita)

ज़माने के हालात वही रहे
तारीख बदल जाती है।

वादे सुनते हुए
निकाल दी जिंदगी
जुबान देने वाली
सूरतें बदल जाती हैं।

कहें दीपकबापू विश्वास से
नाता टूटे बरसों बीते
खरे सिक्कों की नीयत भी
खोट में बदल जाती है।
------------
लेखक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा भारतदीप
लश्करग्वालियर (मध्य प्रदेश)
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
hindi poet,writter and editor-Deepak 'Bharatdeep',Gwalior
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Tuesday, December 22, 2015

अभिव्यक्ति-हिन्दी शायरी(AbhiVyakti-HindiShayari)

हम पर निगाह रखते
हाथ से इशारा
कभी करते नहीं।

हृदय में सद्भाव
सामने आकर
कभी शब्द भरते नहीं ।

कहें दीपकबापू अपनी चाहत से
स्वयं ही तुम छिपते रहो
मगर हम अपनी
अभिव्यक्ति से डरते नहीं।
------------
लेखक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा भारतदीप
लश्करग्वालियर (मध्य प्रदेश)
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Saturday, December 12, 2015

प्रकाशपुंज-हिन्दी कविता(Prakashpunj-Hindi Kavita)

सफलता का उत्सव
मनाने का प्रचलन
समाज में चला है।

खाने के लोभ में
उठता नहीं सवाल
किस तेल में तला है।

कहें दीपकबापू अंधेरे में
सोते लोग नहीं देखते
राजभवनों में
प्रकाशपुंज कैसे जला है।
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लेखक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा भारतदीप
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Friday, December 4, 2015

सुंदर लगे जब तक बोले नहीं-दीपकबापूवाणी (Sundar lage jab tak bole nahin- DeepakBapuWani)


चाहें तो शब्द लिखें चाहे बोलें, सौदागरों से बाज़ार में दाम तोलें।
‘दीपकबापू’ बेच रहे रचना बाज़ार में, अमृत की जगह विष घोलें।।
-------------------
महिला अधिकारों की बात करें, शोषण के रंगों से अपनी रात भरें।
‘दीपकबापू’ शोहदे बना देते प्रहरी, इज्जत पर जो हमेशा घात करें।।
-------------------
सुंदर लगे जब तक बोले नहीं, मधुर लगे जब तक मुंह खोेले नहीं।
‘दीपकबापू’ सूरत पर हैं फिदा, वहम रहे जब तक सीरत तोले नहीं।।
------------------
सहिष्णुता बाज़ार में बिकने की शय, दाम घटने बढ़ने की चली लय।
‘दीपकबापू’ मनोरंजन के व्यापारी भी, हृदय के भाव करने लगे तय।।
.....................
आंसुओं का भी हो रहा व्यापाार, लाभ मिले लोग रोते बिना मार।
‘दीपकबापू’ हंसी के बड़े सौदागर, रुपये लेकर बने कातिलों का यार।।
----------------
ज़माने में खौफ का माहौल बताकर, अमन में अपना घर बसा रहे।
‘दीपकबापू’ सोचें हम पायें चैन, बाकी ज़माना झगड़ों में फसा रहेे।।
---------------
आदमी कभी देवता नहीं होता, प्रचार कराये अलग बात है।
दीपकबापू पालें ताकत का भ्रम, घबड़ाते जब आती रात है।।
.................................
साधु राजा की जात न होय, जो सर्वजन के साथ बंधु वही होय।
‘दीपकबापू बयान बतायें ऊंचे, बहीखाते में एक परमार्थ न होय।।

नरनारी की प्रेमकथा दिखायें, आस्था में अंधविश्वास करना सिखायें।
दीपकबापू रुपये को इष्ट माने, रुपहले पर्दे पर देव जैसा रुप दिखायें।।
--------------------

स्वांग रचकर जो अमीर होये, पसारे पांव वहीं जहां ज़मीर सोये।
दीपकबापू नकली तलवार हाथ में, चित्र के नायक कहां वीर होये।।
-----------------

लेखक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा भारतदीप
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Wednesday, November 25, 2015

अभिनेता अब अपना धर्म भी बताने लगे हैं-असहिष्णुता विवाद पर सहिष्णु व्यंग्य चिंत्तन लेख (A Actor Stetment on Intolerance-A Hindi Satire Thought article)

                       सुबह जब एक अभिनेता  देश में कथित असहिष्णु वातावरण होने  का बयान टीवी पर सुना तब घर से जाते समय हमने उसके लिये दुआ की थी-हे सर्वशक्तिमान! टीवी चैनल, ट्विटर और फेसबुक पर उस कम से कम शाब्दिक हमलें हों?
                       मालुम था कि हमारी दुआ काम नहीं आयेगी। जब आप आत्ममुग्ध होकर इस सोच के साथ बोलते हैं कि आप इतने प्रभावी हैं कि आपकी जाति, भाषा तथा धर्म के कारण कोई चुनौती नहीं दे सकता तब इस बात पर भी विचार करना चाहिये कि आपकी सार्वजनिक छवि कैसी है? बरसों तक अपने अभिनय से लोगों के हृदय को बहलाने के बाद अचानक जब स्वयं के धर्म का नाम छाती फुलाकर बताते हैं तो यकीन मानिये की आप अपनी ही छवि ध्वस्त करने वाले हैं। उस अभिनेता  के बयान का समर्थन या विरोध करने से अलग महत्वपूर्ण बात यह है कि उन्होंने अपने लाखों प्रशंसक एक साथ खो दिये।
                       हमने आज अनेक ऐसे लोगों को उस अभिनेता पर नाराज होते देखा जो उनके प्रशंसक है। लगता है एक दिन में उन्होंने लाखों प्रशंसक खो दिये। व्यवसायिक दृष्टि से यह ऐसी साख खोना है जिसे दोबारा वापस पाना अत्यंत कठिन होता है।
                       अपने चंद शब्दों से स्वयं की जीवन भर के प्रयासों से बनी स्वयं की छवि धूमिल की जा सकती है- एक अध्यात्मिक साधक की बात कौन समझ पायेगा। अपने शब्दों की अभिव्यक्ति से अपनी बरसों पुरानी छवि का सत्यानाश कुछ लोग कर ही देते हैं-साधक के अनुसार आत्ममुग्धता डर पैदा करती है। अध्यात्मिक चिंत्तक मानते हैं कि मनुष्य सबसे ज्यादा भयभीत तब होता है जब उसे अपना भांडा चौराहे पर फूटने की शंका लगती है।
                       जब हम धर्म से आतंकवाद न जोड़ने की बात कहें तो राज्यप्रबंध भी उससे अलग रखने के लिये सभी देशो से कहना चाहिये। जिन देशों का राज्यप्रबंध धर्म पर आधारित हैं वहां मानवीय सिद्धांत तथा प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन नहीं होता। भारत धर्म आधारित राज्य प्रबंध देशों से साफ कहे कि वह अपने यहां अभिव्यक्ति की आज़ादी का वातावरण बनायें ताकि वहां जनमानस आतंकवाद की तरफ आकर्षित न हो।

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Monday, November 16, 2015

गम कभी छांटे नहीं जाते-हिन्दी शायरी (Gum kabhi chhante nahin jaate-Hindi shayri)

जिंदगी के हसीन पल
ताश के पत्तों की तरह
कभी बांटे नहीं जाते।

गुलाब के फूल
चढ़ते मंदिर में
साथ कभी कांटे नहीं जाते।

कहें दीपकबापू खुश रहने के लिये
हृदय को साधना जरूरी
चाहे साथ हो कितनी मजबूरी
गम कभी छांटे नहीं जाते।
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लेखक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा भारतदीप
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Friday, November 6, 2015

सच बाज़ार में चलता नहीं-हिन्दी कविता(Sach Bazar mein chalta nahin-Hindi Poem)

निंदा व स्तुति का भी
अब होता व्यापार
सम्मान का दाम होता है।

भलाई के नाटक में
सफल अभिनय से
बड़ा नाम होता है।

मिलती प्रसिद्धि उसे भी
जो दर्द पैदा कर
बदनाम होता है।

कहें दीपकबापू सच के पांव होते
मगर बाज़ार में चलता नहीं
बिकना पाखंड का काम होता है।
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लेखक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा भारतदीप
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Thursday, October 29, 2015

संसार का सच-हिन्दी व्यंग्य कविता(Sansar ka Such-HindiSatirePoem)


स्वार्थ के संबंध
लंबे समय तक
रह पाते हैं।

अर्थ का रस सूखते ही
कच्ची दीवारों की तरह
ढह जाते हैं।

कहें दीपकबापू रोना बेकार
मिलने वालों का बिछड़ना तय
निस्वार्थ भाव में नहीं होती लय
विरले होते जो संसार का सच
सह पाते हैं।
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लेखक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा भारतदीप
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Sunday, October 18, 2015

नज़र और नज़रिये का खेल-हिन्दी कविता(Nazar aur Nazariye ka Khel-Hindi Kavita)

देखते हैं चेहरा
जब आईने में
हंसी नज़र नहीं आती।

देखते हैं आंखें झुकाकर
 पांव की एड़ियां
साफ नज़र नहीं आती।

कहें दीपकबापू नज़रिये का खेल
सभी समझ नहीं पाते
पर्दे के खेल पर ही
अपना मन रमाते
सामने नाचते पुतलों की
डोर थामने वाली उंगलियां
सभी की नज़र नहीं जाती।
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लेखक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा भारतदीप
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Wednesday, October 7, 2015

पर्दे पर तस्वीर-हिन्दी कविता(Parde par Taswir)


नहाकर कर से निकलो
धुले कपड़ों पर हवा
धूल डाल ही जाती है।

कीचड़ को देखें
कितना भी घृणा से
कभी कमलमय हो ही जाती है।

कहें दीपकबापू अच्छाई से
बुराई का तुलना क्या करें
यहां तो आंखों के पर्दे पर
चल रही तस्वीर
पल भर में खो ही जाती है।
---------------------
लेखक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा भारतदीप
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Friday, October 2, 2015

दीपकबापूवाणी(DeepakBapuWani New type poem)


नया ज़माने में मौत भी बिकती, बदले में विज्ञापन लाती है।
दीपकबापूमस्ती से देख पर्दा, जहां खबरें धन बरसाती हैं।।
-------------------
यहां लाश की पहचान है धर्म, कातिल भी जात वाला होता है।
दीपकबापूजिंदा बुतों के खेल में, हर दिल घात वाला होता है।।
---------------------
कतरा कतरा कचड़ा बना पहाड़, तू उठ खड़ा हो उसे झाड़।
दीपकबापूबीमार बनने से पहले, उसका कलेजा तू फाड़।।
-------------
कोई मांस खाये या घास चर जाये, अक्लमंद परेशान क्यों हैं।
दीपकबापू देव असुर की बस्ती यहां, झगड़े से हैरान क्यों हैं।।
---------------
मुफ्त की रोटी खाने वाले इंसान, शांत वातावरण से ऊब जाते हैं।
दीपकबापूबाग में लगाकर आग,माली मन बहलाने में डूब जाते हैं।।
-----------------

आईना चेहरे का सच दिखाता, टूटा तो पांव में चुभ जायेगा।
दीपकबापूनीयत से न खेलो, बढ़िया सोच से शुभ आयेगा।।
-----------------
शत्रू मारते वीर सामने से, मित्र पीठ पीछे से झाड़े जाते हैं।
दीपकबापू फूल तोड़ते उंगली से, कांटे नीचे से फाड़े जाते हैं।।
--------------
कर्मफल से घी  मिल जाये, वरना कोई भूखा कोई खाये रूखा।
दीपकबापू कब हंसें या रोयें, कहीं आनंद शब्द बहे कहीं सूखा।।
-------------
दिन में आतंक का डर दिखायें, रात में मित्रता उससे निभायें।
दीपकबापू विकास के झंडाबरदार, विनाश का पाठ भी सिखायें।।
------------
नया ज़माने में मौत भी बिकती, बदले में विज्ञापन लाती है।
दीपकबापूमस्ती से देख पर्दा, जहां खबरें धन बरसाती हैं।।
-------------------
यहां लाश की पहचान है धर्म, कातिल भी जात वाला होता है।
दीपकबापूजिंदा बुतों के खेल में, हर दिल घात वाला होता है।।
---------------------
कतरा कतरा कचड़ा बना पहाड़, तू उठ खड़ा हो उसे झाड़।
दीपकबापूबीमार बनने से पहले, उसका कलेजा तू फाड़।।
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Sunday, September 27, 2015

सिलिकॉन वैली, भारत में निर्माण और भारत निर्माण पर ट्विटर(Twitter on MakeIndiaFirst,ModiInSiliconValley,Modi on USA)

                                    
                                    सिलीकॉन वैली में ढेर सारे भारतीय हैं तब यह सवाल उठता है कि भारत में वैसी जगह क्यों नहीं बन पाई? इस पर मंथन बिना भारत के स्वर्णिम भविष्य के लिये होने वाले सारे प्रयास  बेकार है। यह जानना जरूरी है कि पूंजी और प्रतिभा होते हुए भी भारत में सिलिकॉनवैली जैसी जगह क्यों न बन पाई? तब ही हम कुछ कर पायेंगे। सिलिकॉनवैली  में भारत में ही शिक्षा प्राप्त करने वालों छात्रों का ही योगदान है, तब सवाल उठता है कि उन्हें ऐसे अवसर यहीं क्यों नहीं मिलेभारत में स्वदेशी पूंजी तथा प्रतिभाओं का सम्मान व मनोबल बढ़ाया जाये तो यहां एक नहीं अनेक सिलकॉनवैली हो सकती हैं। आखिर यह कौन समझायेगा कि पूंजी और प्रतिभा होते हुए भी  अमेरिका की सिलीकॉन वैली  को भारतीय आज भी सपना ही समझते हैं।
                                   टीवी पर सिलीकॉनवैली के दृश्य देखकर मजा आ जाये पर भारत की ज़मीनी  वास्तविकता दिमाग में आकर उसे सपने की तरह भंग कर देती है। भारत में सिलिकॉन वैली नहीं है इसका कारण अनेक लोग देश में अकुशलप्रबंध भी मानते हैं, इस पर भी ध्यान देना चाहिये।
                                   यह सही है कि भारत में गरीबों की संख्या बहुत है पर उनकी समस्याओं की चर्चा भिखारी की बजाय श्रमिक मानकर होना चाहिये। गरीब भिखारी नहीं होते कि उन्हें दान दें, वह श्रमिक होते हैं उन्हें अपने श्रम का उचित दाम मिलना चाहिये। हम देश के विकास को अनावयक मानकर केवल इसलिये नहीं नकार सकते कि यहां गरीबों की संख्या ज्यादा है। भारत में अगर सिलिकॉनवेली चाहिये तो सबसे पहले देश के पूंजीपति भारत के कुशल तथा अकुशल श्रमिकों को उचित दाम देना सीखें। जब तक भारत में पूंजीस्वामी अकुशल व कुशल श्रमिकों उचित दाम और सम्मान नहीं देखेंगे तब तक सिलिकॉन वेली होना एक सपना ही होगा। जहां तक हमारा विचार है कि भारत में निर्माण से भारत निर्माण भी होगा। भारत निर्माण से भारत में भी निर्माण हो सकता है। बात बराबर है।
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Friday, September 18, 2015

संदेश-हिन्दी कविता(Sandesh-HIndiPoem)


अगर दिल में होता
कलम से भी लिख देते
सभी के लिये प्रेम संदेश।

अगर दिमाग में होता
मुख से बोल भी देते
सभी के लिये मित्र संदेश।

दीपकबापूदीवार पर टंगी
तस्वीर की तरह ज़मीन पर भी
चेहरे आते जाते हैं,
कहा सुना भूल जाते हैं
कानों  में बांध होता
प्रवाहित कर देते
सभी के हार्दिक शुभ संदेश
-----------
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Saturday, September 12, 2015

दीपकबापू वाणी (Deepakbapu Wani)some Poems on Hindidiwas

अपना लक्ष्य कभी तय नहीं किया, जग को रास्ता दिखाते।
दीपकबापूअंग्रेजी के ग्राहक, हिंग्लिश से वास्ता सिखाते।।
अंग्रेजी के ढोलकिया छद्म रूप में, हिन्दी का का महत्व गायेंगे।
दीपकबापू’  नकदी के गुलाम हैं, मजे से हिन्दी दिवस मनायेंगे।।
देखी एक मच्छर की लीला, ले गया एक डंक से प्राण तीन।
दीपकबापूविकास की धारा में, न देखें जहर पीती मीन।। 
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