Sunday, May 30, 2010

पीने वाले-हिन्दी शायरी (peene vale-hindi shayari)

उनसे पूछा गया कि
‘शराबी लोगों पर आप क्यों भरोसा नहीं करते,
उनके प्रति अविश्वास का भाव क्यों भरते,
क्या वह इंसान नहीं है,
आखिर पीने वाले भी इंसान हैं,
जरूरी नहीं जाम हलक से उतारने वाला
हर शख्स बेईमान है,
फिर हर कोई पीता है अपने पैसे से
किसी दूसरे को एतराज उठाने का अधिकार नहीं है।’

उन्होंने जवाब दिया
‘अगर हमने पी नहीं होती तो
कभी यह सच बयान नहीं करते
कि पीते भले ही लोग हैं शाम को हैं,
पर दिन मे भीं उसकी याद में आह भरते,
छोड़ने पर पता चला कि
हम पीते हुए यकीन के काबिल नहीं थे,
दोस्त बहुत बने, पर उनके दिल नहीं थे,
वादे करके हम भी खूब आते थे,
नहीं निभायेंगे, यह यकीन साथ लाते थे,
अपनी कहानी का अंत
हम दूसरों पर इसलिये जताते हैं,
क्योंकि पीने पर सभी के ख्याल
एक जैसे ही पाते हैं,
साफगोई इसलिये आ गयी है
क्योंकि अब हमारे अंदर नशे का विकार नहीं है।
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Wednesday, May 26, 2010

मुफ्त का मजा-हिन्दी शायरी (muft ka mazaa-hindi shayari)

सिंहासन पर बैठे लोगों को
फरिश्ता क्यों समझ जाते हो,
उनके गुलामों की महफिल में
बजता है चमचा राग
उसे संगीत समझ कर बहल क्यों जाते हो।
बिकती है इंसानों की अदायें भी
पर्दे पर देख कर दृश्य
असली जिंदगी से तोलने क्यों लग जाते हो।
सर्वशक्तिमान को जोर से भोंपू बजाकर
जगाने के आदी लोगों की भ्रमित भीड़ में
अपने यकीन के साथ क्यों जाते हो?
मुफ्त का मजा दिल के अंदर ही है
अपनी आंखों से अंदर ही झांको
बाहर तलाशने में भटकते क्यों जाते हो।

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Saturday, May 22, 2010

सम्मेलन-हिन्दी व्यंग्य कविता (sammelan-hindi vyangya kavita)

सम्मेलन में
कुछ रूठे इस उम्मीद में गये कि
कोई उन्हें मना लेगा
कुछ टूटे दिलों ने आसरा किया कि
कोई उन्हें फिर बना लेगा,
मगर वहां जमी महफिल में
सभी चीख रहे थे
गुर्राने के नये नये तरीके सीख रहे थे,
सद्भाव के नाम संघर्ष दिखने लगा।
सभी ने अपनी अपनी कही,
दूसरे की सलाह भी सही,
तय किया ज़माने में नश्तर चुभोने का,
अपने को छोड़कर सभी को डुबोने का,
फिर कोई अगले सम्मेलन की तारीख लिखने लगा।

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Sunday, May 16, 2010

इस तरह की चर्चायें कन्या भ्रुण हत्यायें रोकना कठिन बना सकती हैं-हिन्दी लेख (public disscution and kanya bhrun hataya)

अगर कुछ ब्लाग लेखकों के पाठ की बातों पर यकीन किया जाये तो फिर उस पत्रकार युवती की हत्या/आत्महत्या का मामला न रहकर अनेक विषयों पर बहस का रह गया है। हमारे देश में कथित रूप से विकासवादी तथा मनुष्यवादी बुद्धिजीवियों का प्रचार माध्यमों, विश्वविद्यालयों के साथ ही सामाजिक संगठनों पर भी वर्चस्व है और उनकी नीति यह है कि मरे हुए आदमी पर अपनी शोक रचनायें रचो और उसके लिये किसी जिंदा आदमी खलनायक बनाओ। अगर कोई नारी मर जाये तो नारीवादी उसके लिये शिकार ढूंढते हैं भले ही वह नारी हो! बहु मरे तो सास बेटी मरे तो मां और बहिन मरे तो बहिन के खिलाफ जंग छेडते हुए उनको संकोच नहीं  होता।
वह एक युवती युवा पत्रकार थी जो बिहार के छोटे से शहर दिल्ली आई। यहां महानगर संस्कृति का आकर्षण को झेल नहीं पायी और जवानी की मस्ती में डूब गयी। पत्रकार प्रेमी से शादी की तारीख तय हुई पर वह नहीं हुई-मामले में यह सबसे बड़ा पैंच है। उच्च जाति की लड़की का विवाह अपने से कम जाति के लड़के से हो यह मां बाप को मंजूर नहंी था-यह प्रचार भी काल्पनिक लगता है क्योंकि प्रेमी की जाति को नीची तो नहीं माना जा सकता। लड़की गर्भवती थी और संदिग्ध हालत में उसकी उस समय मौत हो गयी जब वह घर में मां के साथ अकेली थी। कहना कठिन है कि वहन क्या हुआ पर सार्वजिनक रूप से जिस तरह इस उसके परिवार को लांछित किया जा रहा है वह गलत है।
पत्रकार प्रेमी ने दिल्ली में बैठक होहल्ला मचाया तो मां के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज हो गया। टीवी चैनलों पर बहस शुरु हो गयी। देश की जाति पाति और धर्म व्यवस्था को लेकर-यह भुला दिया गया कि गर्भवती होने के बाद यह विषय महत्वपूर्ण  नहीं  रहा था। जांच आगे बढ़ी तो पता लगा कि लड़की की आत्महत्या की बात तो पुलिस ने पहले ही मान ली थी पर दिल्ली से प्रचार माध्यमों के दबाव के चलते उसे हत्या का मामला बनाना पड़ा। अब पुलिस आत्महत्या के लिये उकसाने, धोखा देने तथा बलात्कार करने का मामला उसके पत्रकार प्रेमी पर दायर कर रही है। इसका मतलब यह है कि एक मौत पर दो अलग तरह के मामले बने हैं जो शायद कानूनी रूप से कुछ उलझन भरे हो सकते हैं।
इधर एक ब्लाग लेखक ने लड़की के पड़ौसियों के हवाले से दावा किया है कि यह आत्महत्या ही है क्योंकि उसकी एक पड़ौसन ने उसे सुबह देखा था तब वह उदास थी और उसके बाद ही यह घटना हुई। उस ब्लाग लेखक ने पत्रकार प्रेमी पर भी तमाम तरह की उंगलियां उठाई हैं।
हम यहां इन बहसों में दिये जा रहे तर्कों का खंडन या समर्थन नहीं कर रहे बल्कि ऐसे मामलों में सार्वजनिक रूप से चर्चाओं का परिणामों पर विचार करें तब लगेगा कि हम अनजाने में लोगों के अंदर आतंक का भाव बढ़ा रहे हैं। पोस्टमार्टम रिपोर्ट हत्या तथा आत्महत्या दोनों का इशारा कर रही है। वह भी ढंग से नहीं हुआ यह भी कहा जा रहा है। इधर दिल्ली में जन और प्रगतिवाद का दंभ भरने वाले बुद्धिजीवी इस तरह प्रदर्शन कर रहे हैं जैसे कि लड़की के हत्यारे माता पिता हों। एक बार शादी तय होकर स्थगित होने के मामले में वह नहीं जाना चाहते। वह इन संभावनाओं पर विचार नहीं करते कहीं घर से सहमति के नाम पर लड़की के माता पिता से दहेज ऐंठने का तो प्रयास नहीं हो रहा था। यह खतरनाक खेल है। इससे समाज में पहुंचने वाले संदेशों पर निगाह करें तो यकीनन वह कन्याओं की माताओ, पिताओं और भाईयों के लिये चिंता बढ़ाने वाले हैं।
वैसे ही अपने देश में कन्या भ्रुण हत्याओं को लेकर चिंतायें बढ़ रही है। अभी तक इसके लिये देश की दहेजप्रथा को माना जाता था पर ऐसी घटनाओं पर सार्वजनिक
बहस लोगों के मन में यह धारण बढ़ायेगी कि लड़कियों का जीना ही नहीं मरना भी अब तनाव का कारण बन सकता है। अगर उनकी लड़की किसी लड़के के प्रेम के चक्कर में पड़ी तो वह आत्महत्या कर ले तो वह उनको हत्या के जुर्म में भी फंसा सकता है और सबसे बड़ी बात यह कि उसकी मदद के लिये एक समूह भी मौजूद है। इसके अलावा यह भी हो सकता है कि जिन परिवारों में कन्यायें हैं वहां उनके माता पिता और भाई घर से बाहर निकलकर नौकरी करने या पढ़ने से प्रतिबंध लगा सकते हैं। कहने का अभिप्राय यह है कि कालांतर में लड़कियों को ही बुरे नतीजे भुगतने पड़ सकते हैं। वैसे भी इस प्रकरण से एक बात समझ में आयी है कि प्राचीन घूंघट प्रथा हो या आधुनिक परंपरा की मस्ती उसके दुष्परिणाम लड़की को भी भोगने पड़ते हैं। हमारे पुराने विद्वान सही कहते हैं कि लड़की इज्जत पीतल के लोट की तरह है जो एक बार खराब होकर धुल जाता है जबकि लड़की इज्जत कांच की तरह है एक बार टूटी तो फिर नहीं जुड़ती। फिर अपनी लड़की की सार्वजनिक चर्चा किसी भी परिवार को मानसिक कष्ट देती है। इस तरह किसी मृत लड़की को न्याय दिलाने के लिये प्रदर्शन जीवित लड़कियों के लिये परेशानी का कारण बन सकता है। मुश्किल यह है कि कुछ कथित बुद्धिजीवियों को समझाना कठिन है वह तो मृतकों के शोक पर ही अपने ख्यालों तथा आदर्शों को रोटी की तरह पकाते हैं।
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Wednesday, May 12, 2010

पुराने नायक, नये खलनायक-हिन्दी व्यंग्य कवितायें (purane nayak, naye khalnayak-hindi vyangya kaivtaen)

राजशाही लुट गयी
लुटेरे बन गये
ज़माने के खैरख्वाह।
उठाये थे पहले भी गरीब
साहुकारों का बोझ
भले ही भरकर रह जाते थे आह,
अब भी कहर बरपा रहे
लुटेरे तमंचों के जोर पर रोज
फिर भी बोलना पड़ता है वाह वाह।
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इतिहास क्यों पुराना सुनाते हो,
यहां घट रहा है रोज नया घटनाक्रम
तुम पुरानी कथा क्यों सुनाते हो।
पढ़ लिखकर किताबें क्यों ढूंढ रहे हो
जमाने को दिखाने का रास्ता,
अपनी खुद की सोच बयान करो
मत दो रद्दी हो चुके ख्यालों का वास्ता,
पुराने समय के नायकों की याद में
नये खलनायकों की चुनौती क्यों भुलाते हो।
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Sunday, May 9, 2010

टी-ट्वंटी में बीसीसीआई टीम का तमाशा खत्म-हिन्दी लेख (T-20 world cricket cup-hindi article)

वेस्टइंडीज ने बीसीसीआई की क्रिकेट टीम को बीस ओवरीय प्रतियोगिता में हराकर लगभग बाहर कर दिया हैै और श्रीलंका से आखिरी मैच केवल औपचारिक ही रह गया है।
आईपीएल में भारी कमाई कर चुके बीसीसीआई के खिलाड़ी उसका बोझ बीस ओवरीय विश्व कप प्रतियोगिता में नहीं उठा पायेंगे इसका अनुमान पहले ही अनेक लोगों ने कर लिया था। भारतीय क्रिकेट विशेषज्ञ जानते थे कि शारीरिक थकान और धन के बोझ तले बीसीसीआई क्रिकेट टीम के अधिकांश खिलाड़ी उतने उत्साह से नहीं खेल पायेंगेे जिससे कि विश्व कप जीता जा सके। आज वेस्टइंडीज से हारने के बाद भारत विश्व कप की दौड़ से बाहर हो गया है।
अधिकतर प्रचार माध्यमों में व्यवसायिक विशेषज्ञ पुराने क्रिकेट खिलाड़ी होते हैं पर वह बजाय क्रिकेट के अपने प्रायोजकों के प्रति अधिक समर्पण दिखाते हैं। यह भी संभव है कि उनको दूसरे देशों की टीमों की तैयारी का आभास न रहता हो और उनके ध्यान में केवल भारत और पाकिस्तान दोनों ही देश बसते हैं। इसमें से एक क्रिकेट विशेषज्ञ ने सेमीफायनल ने में चार टीमों में आस्ट्रेलिया, दक्षिण अफ्रीका, भारत तथा पाकिस्तान का नाम लिया था। उस समय लगा था कि हमारे देश में क्रिकेट के नाम पर कोरे लोग ही बसते हैं क्योंकि उनको लगता है कि चूंकि एशिया के खिलाड़ी कमा खूब रहे हैं इसलिये शायद यही क्रिकेट खेला जाता है। सच बात तो यह है कि पहले तथा दूसरी बीस ओवरीय विश्व कप तक दूसरे देश इस प्रतियोगिता को गंभीरता से नहीं ले रहे थे पर आईपीएल में पैसे के भारी आकर्षण में विदेशी खिलाड़ी अब इस विश्व कप की तैयारी अच्छी करने लगे हैं क्योंकि उनको लगता है कि इससे भारत में क्रिकेट क्लबों के स्वामी उनकी नीलाम बोली अच्छी लगायेंगे। यही कारण है बीस ओवरीय प्रारूप में पाकिस्तान और बीसीसीआई की टीमें अब वैसी मजबूत नहीं मानी जाती जैसे पहले थी। इस प्रतियोगिता में भारत और पाकिस्तान अब सेमीफायनल से लगभग बाहर हो गये हैं।
अब तो यह देखना है कि क्रिकेट में भारत की लोकप्रियत का क्या हाल होता है? इसके बावजूद भी लोग क्रिकेट देखते हैं तो यह मानना पड़ेगा कि यहां केवल पैसा खेलता है, खेल नहीं। दूसरी बात लोग खेल का मतलब हीं नहीं समझते, जो बड़े लोग थोप दें वही खेलने लगते हैं जैसे अंग्रेज इस देश को क्रिकेट का खेल थोप गये हैं जिसे केवल आठ देश ही खेलते हैं। क्रिकेट गुलामों का खेल है और हमारे देश् के लोग गुलामी की मानसिकता के साथ जीने के आदी हो चुके हैं।
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Sunday, May 2, 2010

समाज सेवा और अपराध-हिन्दी क्षणिकायें (social service and crime-hindi short poem)

समाज सेवा शुरु करने से पहले
कोई न कोई अपराध करना जरूरी है,
लोग देते हैं डर कर चंदा
कभी नहीं पड़ता धंधे में मंदा,
घी निकालने के लिये टेढी उंगली की तरह
चलना आजकल की मजबूरी है।
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नैतिकता की बातें करते वह लोग,
दौलत पाने की चाहत का लगा जिनको रोग।
सिमट गया है शिखर पुरुषों का दायरा
वाद और नारों के इर्दगिर्द,
खुद हो गये हैं सफेदपोश
काले करनामों अंजाम दे रहे उनके शागिर्द,
लोगों को त्याग करने की क्या प्रेरणा देंगे
अपने लिये जुटा रहे ढेर सारे भोग।
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दुःख इस बात का नहीं कि
वह अपने वादे से मुकर गये,
तकलीफ इस बात ये हुई,
वह अपना यकीन हमारे यहां खो गये।
चेहरे पर नकाब पहनकर धोखा देते तो
कोई बात नहीं थी,
पर हमारे अरमान का कत्ल कर
वह झूमकर नाचे
जैसे खुद शहंशाह हो गये।
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कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
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