Monday, December 29, 2014

मन और बुद्धि के ज्ञान बिना जीवन विज्ञान अधूरा-हिन्दी चिंत्तन लेख(man air buddhi ke gyan bina jivan vigyan ahdura-hindi thought article)



            हमारे देश में अंग्रेजी विद्वान लार्ड मैकाले की उस शिक्षा पद्धति से छात्रों को अध्ययन कराया जा रहा है जो केवल पूंजीस्वामियों के बंधुआ बनने की योग्यता प्रदान करती है।  उपलब्धि के नाम पर सुविधाओं का उपभोग ही जीवन का लक्ष्य सुझाती है।  इस समय शिक्षा पद्धति में बदलाव बहस चल रही है तो भारतीय अध्यात्मिक दर्शन के तत्वों का उसमें समावेश करने का यह कहते हुए विरोध हो रहा है कि इसमें केवल भारतीय धर्म का प्रचार है जिससे देश में रह रहे अन्य विचारधाराओं को मानने वाले आहत हो सकते हैं।
            एक विद्वान ने पाश्चात्य जीव विज्ञान की सीमा बताते हुए कहा था कि उसमें केवल जीव की देह निर्माण और संचालन के सिद्धांत हैं पर मन के साथ बुद्धि तत्वों के सूत्रों का उसमें वर्णन नहीं होता। मन और बुद्धि के ज्ञान के  बिना पाश्चात्य जीव विज्ञान अधूरा है। इसी मन और विज्ञान के सूत्रों पर भारतीय अध्यात्मिक दर्शन में विस्तृत प्रकाश डाला गया है जिसके बिना कोई भी शिक्षार्थी पाश्चात्य संस्कारों से पैदा अंधेरे से बाहर निकल नहीं सकता।  भोग का कोई अंत नहीं है। एक वस्तु प्रयास करने पर पाओ दूसरे की आवश्यकता अनुभव होने लगती है। एक बार सुबह खाना खाओ तो दोपहर और उसके बाद शाम के खाने की चिंता भी साथ लग जाती है। भोजन, वस्त्र और भवन के संग्रह को ही श्रेष्ठ व्यक्ति होने का प्रमाण मान लेना अज्ञान के अंधेरे में ही भटकना है।

कौटिल्य का अर्थशास्त्र में कहा गया है कि
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सहस्त्रोपृलुत्य दुष्टेभ्यो दुष्करं सम्पदाजर्जनाम्।
उपायेन पदं मूर्धिन न्यास्यतो मतहास्तिनाम्।।
            हिन्दी में भावार्थ-हजारों दुष्टो से उपद्रव को प्राप्त होने से उन पर आक्रमण कर संपत्ति का अर्जन करना कठिन है पर उपाय से तो मतवाले हाथियों के मस्तक पर भी पांव रख दिया जाता है।
वाह्यमानमयःखण्डं स्कन्धनैवापि कृन्ताति।
तदल्पमपि धारावद्धवर्तीप्सितसिद्धये।।
            हिन्दी में भावार्थ-कंधे पर भार के रूप में लदा लोहस नहीं काटता पर उससे बना तीखी धारा वाला हथियार कम भारी होने पर भी कष्ट देता है।

            हम अक्सर भारतीय धर्म की रक्षा की बात करते हैं। इतना ही नहीं अनेक उत्साही तो शस्त्र और धन के सामर्थ्य से धर्म के विस्तार की बात करते हैं। उन्हें यह बात समझ लेना चाहिये कि किसी भी समाज की शक्ति उसके सदस्यों की बृहद संख्या नहीं वरन् उनकी कार्य करने की क्षमता है। इस मामले में यहूदियों से सीखा जा सकता है। हिटलर के अनाचारों के बाद वह फिर संगठित हुए और आज इजरायल नाम का एक छोटा राष्ट्र बनाकर पूरे विश्व में प्रभाव रखते हैं।  अपने पड़ौसी देशों की उग्रवादी निर्ममता के विरुद्ध न केवल संघर्षरत हैं वरन् अन्य देशों को भी आतंकवाद से लड़ने में इजरायल सहयोग कर रहा है। वहां की प्रशासन व्यवस्था जनहित के अनुकूल है इसलिये वहां के नागरिक अपने देश के प्रति अत्यंत संवेदनशील रहते हैं।
            हम जब धर्म रक्षा की बात करते हैं तो एक बात याद रखना चाहिये कि मनुष्य अपनी दैहिक आवश्यकताओ के पूर्ण होने के बाद ही मानसिक रूप से दृढ़ हो सकता है। इसके लिये यह जरूरी है कि उसके पास अध्यात्मिक ज्ञान हो।  यह ज्ञान हमारे प्राचीन ग्रंथों के अध्ययन से ही मिल सकता है।


लेखक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा भारतदीप
लश्कर, ग्वालियर (मध्य प्रदेश)
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
hindi poet,writter and editor-Deepak 'Bharatdeep',Gwalior
http://dpkraj.blgospot.com

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Monday, December 22, 2014

नाटकीयता से संवदेना मर जाती है-हिन्दी कविता(natkiyata se sanvedna mar jati hain-hindi poem)



सभ्य इंसानों की
शायद कायरता से
पहचान होती हैं।

स्त्री पर होता
आक्रमण सड़क पर
दृश्य देख रहे नरमुंडों की
खामोशी में जान होती है।

कहें दीपक बापू नाटकीयता से
सतत नाता रखने पर
हृदय की संवेदनायें
मर जाती हैं,
ख्वाबी नायकों के प्रशंसक सभी
खूनखराबे के सच
जब भी सामने आये
अक्ल और आंखें डर जाती हैं,

मनोरंजक कहानियां सच लगती,
अपढ़ों से ज्यादा
पढ़े लिखे लोगों को ठगती,
चालाकी के पैसे से भरी
उनमें जान होती है।
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लेखक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा भारतदीप
लश्कर, ग्वालियर (मध्य प्रदेश)
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Monday, December 15, 2014

दौलत पंख नहीं होती-हिन्दी कविता(daulat pankh nahin hoti-hindi poem)



दौलत वह पंख नहीं है
जिसे लगाकर इंसान
आकाश में उड़ जाये।

कितनी भी महंगी हो एय्याशी
इतनी नहीं कि ओहदे की तरह
नाम के साथ जुड़ जाये।

कहें दीपक बापू यह खुशफहमी
बड़े लोगों में रहती है,
उनके बोल भी बड़े हैं
नहीं जानते
जनता उनको कैसे सहती है,
हट जाती है भीड़ उनके सामने से
जब वक्त दूसरी तरफ मुड़ जाये।
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लेखक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा भारतदीप
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Tuesday, December 9, 2014

शिखर पर वाणी का अलंकरण-हिन्दी कविता(shikhar par wani ka alankaran-hindi poem)



पद पैसे और प्रतिष्ठा के
शिखर पर आकर
हर कोई वाणी के नियम से
मुक्त हो जाता है।

चला न जाता
स्वयं जिस पथ पर
उसके प्रदर्शक बनने की
योग्यता से युक्त हो जाता है।

कहें दीपक बापू रबड़ की जीभ
धरा पर  तलवार की तरह चलती
 तब कोई नहीं देखता
चढ़ जाये सफलता के सिर पर
हर किसी की नज़र में
इंसान का मुख वाक्य
अलंकार से संयुक्त हो जाता है।
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लेखक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा भारतदीप
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Tuesday, December 2, 2014

शब्दों के अर्थ और मायाजाल-हिन्दी कविता(shabdon ke arth aur mayajal-hindi poem)



बाहर हंसने की
नाकाम कोशिश करते लोग
मगर उनके दिल टूटे हैं।

शब्दों का मायाजाल
बुनने में सभी माहिर होते
अनुमान नहीं लगता कि
अर्थ कितने सत्य कितने झूठे हैं।

कहें दीपक बापू सभी के दिल
लगे हैं माया जोडने में,
कुछ उड़ाते
वफा का वादा हवा में
कुछ लगे रिश्ते तोड़ने में,
कमाई के जरिये पर
कोई सवाल नहीं करता
जानना चाहते हैं कि
किसने कितने सिक्के लूटे हैं।
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