Sunday, August 12, 2007

जंगल में प्रजातंत्र

जंगल का राजा शेर सो रहा था
पास ही मेमनों का झुंड जंगल की
राजनीति में चर्चा कर रहा था
एक ने कहा-"
हमारे राजा की मति फिर गयी है
पास के जंगल का शेर हम पर
नजरें गाढ़े बैठा है
और यह उससे शांति का
समझौता कर रहा है
अपने जंगल की नहीं
अपनी जान की फिक्र कर रहा है
वह इस बात से अनजान थे कि शेर
सब बातें सुन रहा था

दूसरे ने कहा -'
इसे पता नही अगर यह राजा है
तो हम भी प्रजा हैं
अगर हम यह जंगल छोड़ गये
तो इसकी गद्दी खतरे में होगी'
गद्दी की बात सुनकर शेर उठ बैठा
और जम्हाई लेते हुए बोला-'
क्या कहा किसकी गद्दी ख़तरे में होगी'
उसकी गर्जना सुनकर हर मेमना
बुरी तरह काँप रहा था

सबने शेर से ऐसे मुहँ फेरा
जैसे वह किसी अन्य विषय पर
बतिया रहे थे पर शेर है कि
गरज रहा था-'
जिसे जाना है चले जाओ
मैं तो राजा ही पैदा हुआ हूँ
राजा ही मरूंगा
तुम मुझे मत चलाओ
मैं तुम्हारी हर बात सुन रहा था'
मेमनों का नेता बोला-'
हुजूर आपने ही तो इस
जंगल में लोकतंत्र की
स्थापना की है उसमें तो
सब चलता है
आप महान है आपकी दम पर
तो वही चलता है '
उसकी बात पर शेर का
गुस्सा ठण्डा हो गया और
वह जोर-जोर से हंस रहा था
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