Wednesday, March 23, 2011

खामोशी और तटस्थता-हिन्दी कविता (khamoshi aur tatsthta-hindi poem)

किसे क्या समझायें,
भला कोई किसी को समझा पाया है,
किसको कैसे मनायें
भला कोई किसी को समझा पाया है।
पूरा ज़माना वहम में जीने का आदी है
दूर उससे सच का साया है,
बेहतर है खामोश हो जायें
या तटस्थ होकर देखते रहें,
विद्वानों ने यही मार्ग बताया है।
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Friday, March 18, 2011

होली पर क्रिकेट का सच तो मजाक में भी लिखा जा सकता है-हिन्दी व्यंग्य (holi par cricket ka sach aur majak-hindi vyangya)

होली, क्रिकेट और सट्टा
लेखक -दीपक 'भारतदीप'  
इस बार होली का मजा वैसे भी किरकिरा होना ही है क्योंकि विश्वकप क्रिकेट प्रतियोगिता के मैचे खेल जा रहे हैं। होली पर देश का जनजीवन एकदम ठप्प हो जाता है। कुछ लोग रंग खेलने में लग जाते है तो कुछ उनसे बचने के लिये घरों में दुबक जाते हैं। दोपहर एक बजे तक सड़कें सन्नाटे से घिर जाती हैं जिसको होली के अवसर पर निकलने वाले झुंड ही अपने शोर से चीरकर निकल जाते हैं। जिन लोगों को साफ सुथरा जीवन पसंद है उनके लिये यह दिन उदासी का दिन हो जाता है। ऐसे अवसर पर हमारे देश के बहुत सारे लोग अपनो के बीच जुआ खेलते हैं तो आदतन जुआरियों के लिये तो यह दिन स्वर्णिम होता है। कहीं खुले में भी खेलते हैं तो उनके पास इस बात का पारंपरिक लाईसैंस होता है कि वह यह बताने के लिये कि वह तो रस्म निभा रहे हैं।
शराब, जुआ और बेकार की बकवास करने के लिये होली का दिन उपयुक्त मान लिया जाता है। वैसे दिवाली पर भी लोग जुआ की रस्म निभाते हैं। इससे एक बात तो प्रमाणित होती है कि हमारे पवित्र त्यौहारों में प्रमाद और व्यसनों की अनिवार्यता को जो लोग स्वीकार करते हैं वह निहायत अज्ञानी हैं और ऐसे लोगों की कमी नहीं है। मनोरंजन और खुशी के लिये बने दिनों में व्यसन में लिप्त होकर हुआ में लगने की प्रवृत्ति देश के लिये खतरनाक रही है। यही कारण है कि क्रिकेट तो क्रिकेट अब सुनने में आ रहा है कि टीवी चैनलों में प्रतियोगिताओं पर आधारित हास्य, संगीत तथा वाद विवाद कार्यक्रमों में जीत हार पर सट्टे लगता है और वहां विजेता और उपविजेता फिक्स होते हैं । हम यह न समझें कि सट्टा लगाने और लगवाने वाले कोई अदृश्य तत्व हैं बल्कि वह इस देश के ही लोग हैं। खासतौर से आर्थिक उदारीकरण के बाद बने नवधनाढ्य वर्ग के लोग इसमें शामिल हो रहे हैं। समस्या यह है कि उनके साथ मध्यम और निचली आयवर्ग के युवक भी शामिल होते हैं जो कि संकट का कारण बनती है।
एक बात तय है कि विश्व कप क्रिकेट प्रतियोगिता के मैचों में सट्टा चल रहा है। अनेक जगह पुलिस ने अनेक लोगों को पकड़ा है। जब यह सट्टे वाले दो सौ करोड़ तक की रकम वाले संगीत कार्यक्रम को फिक्स कर सकते हैं तो वह अरबों की राशि वाले क्रिकेट मैच में अपना हाथ न दिखायें इस पर अब कौन यकीन कर सकता है। खासतौर से जब धनपति और घनपति-यानि काले धंधे वाले लोग-और उनके पालित मनपति-यानि लोगों के मन का हरण करने वाले प्रचार माध्यमों मे लोग-यह स्वयं बता रहे हैं कि पांच देशों के 21 खिलाड़ी तथा खेले गये सात मैचों की जांच विश्व कप क्रिकेट की अंतर्राष्ट्रीय संस्था आई सी आई कर रही है। इन मैचों के फिक्स होने का उसे संदेह है। भारतीय प्रचार माध्यमों ने इसमें विदेशी खिलाड़ियों होने की बात तो कही है पर भारतीय खिलाड़ियों की तरफ कोई संकेत न कर अपनी व्यवसायिक सीमाओं का भी प्रमाण दिया है। भारतीय खिलाड़ियों की गल्तियों पर खूब शोर हो रहा है पर वह उन्होंने अनजाने में की या अनजाने में हो गयीं इसका पता नहीं। न ही यह पता लग रहा है कि वह उनसे करवाई गयी। इस पर विशेषज्ञ खामोश हैं। बात सीधी है कि टीवी पर हर विषयों की तरह क्रिकेट के विशेषज्ञ भी प्रायोजित हैं। इनमें एक तो ऐसा कप्तान भी है जो फिक्सिंग की वजह से सजा भी पा चुका है मगर जोड़तोड़ कर अब टीवी चैनलों में अपना चेहरा विशेषज्ञ की तरह दिखाने लगा है। क्या मान लें कि भारतीय खिलाड़ी वाकई साफ सुथरे हैं? मान लेते हैं क्योंकि धनपतियों, घनपतियों और मनपतियों ने ऐसा वातावरण फिर बना दिया है जिससे लोग विश्व कप क्रिकेट प्रतियोगिता में देशप्रेम से जुड़ रहे हैं। इसलिये कुछ कहने या सुनने में खतरे हैं।
उस दिन एक आदमी ने दूसरे से क्रिकेट प्रेमी से कहा-‘काहेका क्रिकेट! सब मैच फिक्स हैं।’
दूसरा उग्र हो गया और बोला-‘तू क्या अपने देश को खिलाड़ियों की पाकिस्तानियों से तुलना कर रहा है।’
वह चुप हो गया। पाकिस्तान का भी एक ऐसा खिलाड़ी विशेषज्ञ की भूमिका हमारे देश के टीवी चैनलों में निभा रहा है जिस पर उसके अपने देश के लोग ही फिक्सर होने का आरोप लगाते हैं। यह आईसीआई क्रिकेट में खेल रहे खिलाड़ियों के किसी सट्टेबाज से मिलने पर उससे शक की निगाह से देखती है पर यह विशेषज्ञ की भूमिका में बदनाम लोग घूम रहे हैं उसके बारे में उसकी राय का पता नहीं चलता। इससे एक बात लगती है कि विश्व क्रिकेट पर नियंत्रण करने वाली संस्था यह प्रयास नहीं कर रही कि खेल साफ सुथरा हो बल्कि वह चाहती है कि वह ऐसा दिखे। कम से कम भारतीय खिलाड़ी तो पाक साफ दिखें क्योंकि इसी देश के लोगों का पैसा इस खेल की प्राणवायु हैं जो कि मनोरंजन और खुशी भी जुआ और सट्टे के साथ मनाते हैं।
वैसे जिस तरह मैच चल रहे हैं अनेक लोगों को शक है कि कुछ गड़बड़ है। ऐसे में अगर मान लीजिये होली के दिन कोई भारतीय खिलाड़ियों के सट्टे में शामिल होने के बारे में कोई बात सत्य भी लिख दे तो लोगों को मजाक लगेगा। वैसे इतने सारे अखबार हैं। इंटरनेट पर भी बहुत कुछ लिखा जा रहा है। इसलिये संभव है उस दिन कोई मजाक करते हुए भी सत्य लिख सकता है। हां, होली पर कोई बात सच कहकर उसे मजाक का रूप दिया जा सकता है।
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Saturday, March 5, 2011

पक्का ख्याल-हास्य कविता (pakka khyal-hasya kavita)

कैदखाने के मुखिया ने
अपनी यहां से रिहा हो रहे चोर से कहा-‘‘
कमबख्त,
तू फिर दस हजार की चोरी के
आरोप की छाया में यहां आया,
पिछली बार की रकम पांच हजार की
चोरी में धरा गया था
अब महंगाई का हिसाब देखें
तू उसमें कोई इजाफा नहीं कर पाया।
शर्म आती है तुम्हें अपने यहां आते देखते हैं,
दस पंद्रह हजार तो अमीर ऐसे ही फैंकते हैं,
यह भी क्या बात हुई कि
जहां हम करोड़ों की हेराफेरी वाले अपने यहां रख रहे है,ं
वहीं हजार की चोरी वाले भी हमारा माल चख रहे हैं,
अब तुम लोगों की यहां कद्र नहीं है
क्या सोचकर यहां चले आते हो,
छोटी मोटी चोरी कर पकड़े जाने पर नहीं शर्माते हो,
बाहर भी तुमने इज्जत नहीं कमाई,
यहां भी तुम्हें कौन पूछेगा
तुमसे बड़े लोगों ने आकर कैदखाने की रौनक बढ़ाई,
इससे अच्छा मूंगफली बेचकर अपना काम चलाओ,
यहां आकर अपनी औकात मत घटाओ,
कैदखाना अब बदनाम जगह नहीं रही,
तुमसे बड़े लुटेरों ने अपनी देह से अब इसे सजाया।’

सुनकर चोर बोला-‘
आपके ज्ञान से मेरे अंर्तचक्षु खुल गये हैं,
यहां से छूटकर करूंगा अच्छा काम
लगता है मेरे सारे पुराने पाप धुल गये हैं।
सही कहते हैं कि संत लोग
सत्संग का असर होता है,
वरना आदमी ख्वाब में सोता है,
मेरा सौभाग्य है जो आपने ज्ञान दिया,
चोर होते हुए भी सम्मान किया,
दरअसल अब हमें भी शर्म आती है,
पकड़े जाते हैं चोरी के आरोप में
रंगेहाथ पकड़े गये रिश्वतखोरों के साथ
जब मिलते हैं
अपनी ही करनी छोटी नज़र आती है,
हम तो लाचारी की वजह से चोरी करते हैं,
वह तो पकवान से पेट भरने के बाद भी
अपनी तिजोरी भी भरते हैं,
बड़े बड़े धुरंधरों को आपके यहां देखकर
सोचता हुं कि
बड़े काम मिलने पर भी रिश्तवतखोरी और बेईमानी
पर आदमी उतारू हो जाता है,
दो नंबर की कमाई करते हुए बाजारू हो जाता है
पहले छोटा काम करने में होती हिचक,
अब उसको लेकर खत्म हो गयी झिझक,
यहां आकर भी छोटी चोरी करने का मलाल मन में आया
बड़ा बुरा काम करना अब संभव नहीं
इससे अच्छा ठेला चलाकर जिंदगी गुजारूं
यह पक्का ख्याल मेरे मन में आया।
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कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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