Sunday, February 22, 2015

धुऐं में मद और दर्द उड़ाते-हिन्दी कविता(dhuen mein mad aur dard udate-hindi poem)




धन का मद सिगरेट
निर्धनता का दर्द बीड़ी के
धूऐं में लोग यूं ही उड़ाते हैं।


मिटते नहीं मस्तिष्क के तनाव
धूऐं के साथ
फिर इंसान की तरफ
मुड़ आते हैं।

कहें दीपक बापू ताजी हवा में
सांस लेना भूल गया ज़माना,
ख्वाहिशों की आग में
जल रहा अब भी परवाना,
स्वर्ग की चाहत में
आकाश में उड़ते लोग
गिरते जमीन पर
नरक से जुड़ जाते हैं।
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लेखक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा भारतदीप
लश्कर, ग्वालियर (मध्य प्रदेश)
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
hindi poet,writter and editor-Deepak 'Bharatdeep',Gwalior
http://dpkraj.blgospot.com

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Tuesday, February 10, 2015

एक चेहरे के पीछे भीड़-हिन्दी कविता(ek chehare ke peechhe bheed-hindi poem)



एक चेहरा आगे

दिखता है

पीछे नरमुंडों की

भीड़ चली आती है।



एक चरित्र के पीछे छिपे

बहुत से लोगों की

नीयत की पहचान

भला किसे हो पाती है।



कहें दीपक बापू खूबसूरत मुखौटों पर

ज़माना फिदा हो जाता है,

सपनों की मस्ती में खो जाता है,

काले बाज़ार के सौदागर

अपने खेल के लिये

इंसानों के रूप में मुखौटे

बाज़ार में सजा लेते हैं

दिखते हैं वह लोगों के

भले करने के लिये तत्पर

यह अलग बात है

वफा आकाओं के पास

हमेशा गिरवी नज़र आती है।
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लेखक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा भारतदीप
लश्कर, ग्वालियर (मध्य प्रदेश)
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Monday, February 2, 2015

खंबे पर कभी रौशनी कभी अंधेरा-हिन्दी कविता(khambe par kabhi roshni kabhi andhera-hindi poem)



सड़क पर खड़ा
बिजली क   खंबा
कभी बल्ब की रौशनी से
राहगीरों का बनता सहारा
कभी स्वयं ही अंधेरे में
डूब जाता है।

लगता है कभी
रौशनी के लिये हुआ दीवाना
कभी जैसे उससे ऊब जाता है।

कहें दीपक बापू नरमुंडों के जंगल में
जिसके हाथ में प्रबंध की
बागडोर होती
चतुर कहलाता है,
शिकायतकर्ता को
मूर्ख बताता है,
कोई कोई ज्ञानी भी है
जो खंबे की जिंदगी की
पहेली बूझ जाता है।
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लेखक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा भारतदीप
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