Thursday, September 29, 2016

राहिल शरीफ की हीरोगिरी खत्म करना जरूरी था-हिंदी संपादकीय (Rahil Sharif now not HERO Of Pakistan-Hindi Editorial)

                          यह क्षणिक आक्रमण के धारावाहिक प्रवाह प्रारंभ है।  भारत आगे भी करेगा यह बात तय है। हमने पहले ही कहा था कि भारतीय सीमा अंदर जाकर मारकर चली आयेगी। हमले हमारा अनुमान था कि भारतीय सेना चूंकि सीमा के पार नहीं करेगी  इसलिये पाकिस्तान जवाबी हमला करने की बजाय इधर उधर चिल्लायेगा। अब तो पाकिस्तान का सेनाध्यक्ष हमले से ही इंकार कर रहा है।  जिस मित्र चीन पर सबसे ज्यादा भरोसा है उसने इस घटना के तत्काल दोनों देशों से संपर्क रखने का दावा करते हुए शान्ति की अपील की है। भारत ने चीन को पहले ही बता दिया था। अब अगर वह शांति की अपील कर रहा है तो इसका मतलब यह है कि वह पाकिस्तान से कह रहा है कि भईये, तुम आगे मत जाना।भारत कह देगा कि तुम्हारी शंाति की अपील मान लेते है।‘  वह तो कर चुका सो कर चुका अब अपील मानने में क्या हर्ज है?
                                       बिना कुछ किये धरे राहिल शरीफ पाकिस्तान के नायक बना हुआ था। भारतीय आक्रमण पर कह रहा है कि ऐसा कुछ नहीं हुआ।नवाज शरीफ ने माना कि हुआ और भारत की निंदा की।  मतलब नवाज ने राहिल शरीफ पर जिम्मा डाल दिया कि जो करना है तुम करो। मैं तो निंदा ही कर सकता हूं। संकट राहिल के सामने ही नहीं पूरी सेना पर है जो पाकिस्तान की भाग्यनियंता बनकर वहां की माफिया बन गयी है। वहां के सैनिक अधिकारी भारी संपदा तो लूटकर पूंजीपति बन ही गये हैं बाकी जनता को दोयम दर्जे की नागरिक समझते हैं।  फिर भी जनता यह सोचकर झेलती है कि चलो इनकी वजह से देश बचा हुआ है। मगर अब.............पाकिस्तान की जनता का यह टूटा भ्रम इतिहस की धारा बदलने वाला सहायक हो सकता है। पहला अवसर था इसलिये भारत ने सब तरफ अपनी बात कहकर अच्छा काम किया।  अब दूसरी बार तो करने के बाद किसी को कहने की जरूरत नहीं हैं। पाकिस्तान की जनता को भी भारतीय सेना के प्रति आभार जताना चाहिये कि आतंकवाद खत्म करने का काम उनकी सेना ने नहीं किया वह कर रही है।
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Sunday, September 25, 2016

शराब की मस्ती देखकर नहीं पीने वाले जलते क्यों हैं-दीपकबापूवाणी (Wine Drinker and not Drinker-DeepakBapuWani)

शराबियों के सिर चढ़कर शराब गम भुलाती है।
नहीं पीने वालों को भी अहंकार में डुलाती है।
कहें दीपकबापू यह सच है कि  हर नशा बुरा होता
उस कुर्सी का क्या जो अहं के नशे में सुलाती है।
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उनके दर्द का हाल भी पूछ लेते मगर बंदिशों का पहरा था।
यह लगा गैर ने नहीं अपने ने ही दिया घाव जो गहरा था।
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रूठे मित्र हों या टूटे दिल, शब्दों से कोई रंग नहीं भरता।
कौन सांत्वना दें उसे, जिसका मधुर संबंध स्वार्थ से मरता।
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फिरते जो मुफ्तखोर पुजने के लिये, चाहें पद सुरा सुंदरी के लिये।
‘दीपकबापू भलाई का ढिंढोरा पीटते, जो लूट का माल खाकर जिये।।
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शराब की मस्ती देखकर नहीं पीने वाले जलते क्यों हैं।
मजे का माहौल फैला है जब, सूखे दिल ढलते क्यों है।
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दोस्तों से किनारा न करना दुश्मन अकेले होने के इंतजार में रहते।
इश्क से बचना मोहब्बत करना नहीं, लोग पाखंड की बात कहते।।
मोबाईल से मोहब्बत हुई, दोस्तों के लिये जज़्बात कहां से लायेंगे।
भरवाते बात करने का समय, बोलने के लिये शब्द कहां से लायेंगे।
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यार मत पूछो दिल का हिसाब, लोग अपने राज छिपा जाते हैं।
अपने अंदर भी झांको, अपनी औकात हम अपने से छिपा जाते हैं।
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लच्छेदार शब्दों के होते व्यापारी, खेलते है सौदे की लंबी पारी।
‘दीपकबापू’ नाटकीयता बरतते, सच में फंसने की भी आती बारी।
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Saturday, September 17, 2016

कुत्ता बिल्ली और चूहा जैसे शब्दों से लोकप्रियता नहीं मिलती-हिन्दी व्यंग्य (Why Dog, Cat & rate word use for Any Popolar Parsanalty-Hindi Satire)


                        कभी कभी ट्विटर लोकप्रिय टेग देखकर उस पर लिखने का मन करता है। आज सोचा कि चलो कोई टेग देखें तो हैरानी हुई किसी पत्रकार के नाम से कुत्ता शब्द लिखकर लोकप्रिय टैग चलाया जा रहा है। हमने अंतर्जाल पर स्वयं ही अपने लिये एक आचरण संहिता बनायी है उसक अनुसार जिसकी प्रशंसा करनी होती है उसका नाम तो लिख देते हैं पर जिसकी आलोचना या विरोध करना हो उसका सीधे नाम न लिखकर व्यंजना विधा में संकेत देते हैं।  हमारी संस्कृत देवा भाषा कही जाती है जिससे हिन्दी तथा क्षेत्रीय भाषाओं का सृजन स्वतः हुआ है।  इसके अनुसार शब्द तथा वाक्य की संरचना में शाब्दिक, लाक्षणिक तथा व्यंजना विधा में अपनी बात कही जाती है। पुराने रचनाकारों ने तो लाक्षणिक तथा व्यंजना विधा का उपयोग हमारी रचना परंपरा को एक महान स्थान दिलाया है।  ऐसे मेें किसी सार्वजनिक व्यक्तित्व के नाम से कुत्ता बिल्ली या चूहा जैसे शब्द जब सामने आते हैं तब असहजता का अनुभव होता है।
                          सर्वश्रेष्ठ लेखक वही माने जाते हैं जो व्यंजना विधा का उपयोग करना जानते हैं। जो इसका उपयोग नहीं करते उनमें अपनी रचना या शब्द के प्रभाव को लेकर आत्मविश्वास का अभाव होता है। उनमें यकीन नहीं होता कि उसके लाक्षणिक या व्यंजना विधा को कोई समझेगा? हमारी दृष्टि से इस तरह अभद्र शब्द उपयोग करने वालों के पास अध्ययन तथा चिंत्तन का अभाव होता है इस कारण वह आत्मविश्वास की बजाय अतिविश्वास से यह सोचकर लिखते हैं कि हमारी बात लोगा जल्दी सुनेंगे। वह किसी विषय या व्यक्ति पर लिखते हैं उससे संबंधित पूरी जानकारी भी उनको नहीं होती उन्हें तो बस तात्कालिक रूप् से अपनी भडास निकालनी होती है। कहना चाहिये कि  अंतर्जाल ने कुंठित लोगों के लिये अभिव्यक्ति का एक सुगम साधन दिया है पर उसका उपयोग सभ्यता से उपयोग करने की जरूरत है।
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