Saturday, August 4, 2007

कहीं अमेरिका तो कहीं भारत लगता है

यार , भारत को अमेरिका
बना देने का तुम्हारा ख्याली पुलाव
डरावने सपने जैसा लगता है
या तो तुम्हे सच पता नहीं
या हमारा खबरची एकदम
झूठा लगता है
पता नहीं क्यों दूर का ढोल
तुम्हें सुहावना लगता है

टीवी और फिल्मों में
दिखती हैं ऊंची-ऊंची और
चमकदार इमारतें
चहूँ ओर पेड से सजी
काले नाग की तरह चमकती
और दमकती हुई सड़कें
उन पर दौड़ती हुईं
रंगीन महंगी कारें
मनभावन दृश्य देखकर
तुम्हारा मन उछलने लगता है
पर रोशनी के पीछे जो अंधियारे हैं
उनके होने का अहसास केवल
उसे जीने वालों को ही लगता है

जब तक फिट हो
तेज दौड़ सकते हो
अमेरिका में हिट होते
नजर आओगे
जब थकने लगेगा मन
ढलने लगेगा तन
तब अपने वतन लॉट आओगे
अगर अमेरिका बन गया यहां
फिर कहाँ जाओगे
अमेरिका के जख्म का इलाज
लोग कराने यहां आते है
वहां अपने रक्त को सस्ता
और दवा को महंगा पाते हैं
बुखार के हमले के शिकार
उससे बचने के लिए
अपने वतन आते हैं
वहाँ की अस्पताल की सीढिया
चढ़ने से अधिक
विमान में चढना सहज पाते हैं
अगर यहाँ अमेरिका बन गया तो
फिर कहाँ लॉट जाओगे
तुम्हारे ख्याली पुलाव का
सच से वास्ता नहीं लगता है

अमेरिका में बेकारी, भ्रष्टाचार
और गरीबी नहीं है
यह सोचना तुम्हारा वहम है
लगता है अपनी क़दर
न होने से नाखुश हो
अपने देश को कमतर बता रहे हो
यह तुम्हारा झूठा अहम है
तुम्हारे ख्याली पुलाव में
भ्रम छाया लगता है

कहै दीपक बापू
फिर भी नहीं मानते बात हमारी
तो मान लो यहां भी अमेरिका
बन गया है
गरीब का जीना वहां भी
इतना ही दूभर है
जितना यहाँ हो गया है
माया का स्वप्नलोक है अमेरिका
पर भूलोक के सच को
जानते है भारत के लोग
इसलिये नहीं पालते
व्यथित होकर भी
आत्महत्या का रोग
जिन्होंने धारण किया है
पश्चिमी देशो की संस्कृति को
अपनी जड़ों से कटकर
अमेरिका यहीं बसा लिया है
सामाजिक कार्यक्रमों में
बहती है अंग्रेजी शराब की धारा
अमेरिकी संगीत को उनका
हिस्सा बना लिया है
शाम को गोधूलि बेला में
गायों की झुंड की जगह मार्ग में
उनकी जगह मिलते हैं
पैट्रोल-डीजल का धुँआ छोड़ते वाहन
जहां बहती थीं दूध की नदियां
वहाँ हर तरफ जहर बहता लगता है

अब होने या न होने का
प्रश्न ही कहाँ जो
तुमने उसे दिल में फंसा लिया है
द्वंदों के बीच में है देश का समाज
कहीं अमेरिका तो
कहीं भारत लगता है

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