Sunday, September 27, 2015

सिलिकॉन वैली, भारत में निर्माण और भारत निर्माण पर ट्विटर(Twitter on MakeIndiaFirst,ModiInSiliconValley,Modi on USA)

                                    
                                    सिलीकॉन वैली में ढेर सारे भारतीय हैं तब यह सवाल उठता है कि भारत में वैसी जगह क्यों नहीं बन पाई? इस पर मंथन बिना भारत के स्वर्णिम भविष्य के लिये होने वाले सारे प्रयास  बेकार है। यह जानना जरूरी है कि पूंजी और प्रतिभा होते हुए भी भारत में सिलिकॉनवैली जैसी जगह क्यों न बन पाई? तब ही हम कुछ कर पायेंगे। सिलिकॉनवैली  में भारत में ही शिक्षा प्राप्त करने वालों छात्रों का ही योगदान है, तब सवाल उठता है कि उन्हें ऐसे अवसर यहीं क्यों नहीं मिलेभारत में स्वदेशी पूंजी तथा प्रतिभाओं का सम्मान व मनोबल बढ़ाया जाये तो यहां एक नहीं अनेक सिलकॉनवैली हो सकती हैं। आखिर यह कौन समझायेगा कि पूंजी और प्रतिभा होते हुए भी  अमेरिका की सिलीकॉन वैली  को भारतीय आज भी सपना ही समझते हैं।
                                   टीवी पर सिलीकॉनवैली के दृश्य देखकर मजा आ जाये पर भारत की ज़मीनी  वास्तविकता दिमाग में आकर उसे सपने की तरह भंग कर देती है। भारत में सिलिकॉन वैली नहीं है इसका कारण अनेक लोग देश में अकुशलप्रबंध भी मानते हैं, इस पर भी ध्यान देना चाहिये।
                                   यह सही है कि भारत में गरीबों की संख्या बहुत है पर उनकी समस्याओं की चर्चा भिखारी की बजाय श्रमिक मानकर होना चाहिये। गरीब भिखारी नहीं होते कि उन्हें दान दें, वह श्रमिक होते हैं उन्हें अपने श्रम का उचित दाम मिलना चाहिये। हम देश के विकास को अनावयक मानकर केवल इसलिये नहीं नकार सकते कि यहां गरीबों की संख्या ज्यादा है। भारत में अगर सिलिकॉनवेली चाहिये तो सबसे पहले देश के पूंजीपति भारत के कुशल तथा अकुशल श्रमिकों को उचित दाम देना सीखें। जब तक भारत में पूंजीस्वामी अकुशल व कुशल श्रमिकों उचित दाम और सम्मान नहीं देखेंगे तब तक सिलिकॉन वेली होना एक सपना ही होगा। जहां तक हमारा विचार है कि भारत में निर्माण से भारत निर्माण भी होगा। भारत निर्माण से भारत में भी निर्माण हो सकता है। बात बराबर है।
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लेखक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा भारतदीप
लश्करग्वालियर (मध्य प्रदेश)
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
hindi poet,writter and editor-Deepak 'Bharatdeep',Gwalior
http://dpkraj.blgospot.com


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Friday, September 18, 2015

संदेश-हिन्दी कविता(Sandesh-HIndiPoem)


अगर दिल में होता
कलम से भी लिख देते
सभी के लिये प्रेम संदेश।

अगर दिमाग में होता
मुख से बोल भी देते
सभी के लिये मित्र संदेश।

दीपकबापूदीवार पर टंगी
तस्वीर की तरह ज़मीन पर भी
चेहरे आते जाते हैं,
कहा सुना भूल जाते हैं
कानों  में बांध होता
प्रवाहित कर देते
सभी के हार्दिक शुभ संदेश
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लेखक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा भारतदीप
लश्करग्वालियर (मध्य प्रदेश)
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Saturday, September 12, 2015

दीपकबापू वाणी (Deepakbapu Wani)some Poems on Hindidiwas

अपना लक्ष्य कभी तय नहीं किया, जग को रास्ता दिखाते।
दीपकबापूअंग्रेजी के ग्राहक, हिंग्लिश से वास्ता सिखाते।।
अंग्रेजी के ढोलकिया छद्म रूप में, हिन्दी का का महत्व गायेंगे।
दीपकबापू’  नकदी के गुलाम हैं, मजे से हिन्दी दिवस मनायेंगे।।
देखी एक मच्छर की लीला, ले गया एक डंक से प्राण तीन।
दीपकबापूविकास की धारा में, न देखें जहर पीती मीन।। 
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लेखक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा भारतदीप
लश्करग्वालियर (मध्य प्रदेश)
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Sunday, September 6, 2015

आतंकवादी भेजकर शरणार्थी निकालना अरब देशों की योजना भी हो सकती है(atankwad bhejkar sharnaarthi nikalna arab deshon ki yojna ho sakateehai)



                                   जिस तरह अरब देशों में उथलपुथल हो रही है उससे वहां के जनसमुदाय में अन्य देशों की तरफ पलायन बढ़ रहा है। ऐसा लगता है कि राजनीतिक रूप से आर्थिक रूप से संपन्न अरब देश अपने आसपास के देशों से भयभीत होकर वहां आतंकवाद को प्रश्रम दे रहे हैं।  यमन में तो सऊदी अरब शिया मुसलमानों का वर्चस्व रोकने के लिये खुल्लखुल्ला लगा हुआ है।  सामान्य तौर से कहा जा रहा है कि अरब क्षेत्र में आईएसआईएस के आतंकवादी अभियान के कारणं तनाव है। यह मान लेते हैं पर आईएसआईएस के खैरख्वाह कौन हैं यह बात छिपा दी जाती है।  आईएसआईएस को समर्थन उन अरब देशों से मिल रहा है जो अपनी बढ़ती आबादी पर नियंत्रण नहीं कर पाये तो अपने यहां की युवाशक्ति को आतंकवाद बनाकर पड़ौसी देशों की तरफ ढकेल रहे हैं।  वहां से पलायन होकर लोग यूरोप जा रहे हैं। यह संदेह होता है कि  अरब देश अपने  धर्म के विस्तार की कोई योजना पर काम कर रहे हैं।   यूरोप के लोग इससे परेशान होकर शरणार्थियों को रोकना चाहते हैं पर उनकी मौतों के फोटो देखकर अब दरियादिली दिखाना चाहते हैं।
                                   सभी जानते है कि अरबी लोग अपना मूल धर्म कभी नहीं छोड़ सकते। यूरोप, इंग्लैंड या अमेरिका जाकर भी वह अपनी पूजा पद्धति के साथ वैसा रहन सहन भी रखना चाहते हैं जैसे अरब देश में होता है।  एक बात निश्चित है कि अरब देशों की अधिकृत सरकारों के समर्थन के बिना आईएकआईएस इतना आगे नहीं आ सकता।  महत्वपूर्ण बात यह कि विश्व के आधुनिकीकरण से अरब देशों का धर्म नफरत करता है।  अमीर शेख भले ही आधुनिक साधन उपयोग करें पर वह अपनी जनता को पशुओं से अधिक नहीं समझते।  अपने यहां जनविद्रोह की आशंकों में जीते यह लोग अपने लोग दूसरी जगह आतंकवादी और दूसरी जगह से शरणार्थी के रूप में तीसरी जगह भेजने की योजना बना सकते हैं। ताकि उनकी धार्मिक तिलिस्म बना रहे। विश्व में रणनीतिकारों को इस पर ध्यान देना चाहिये।
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