Tuesday, July 31, 2012

जितना बिजली चलाये-हिन्दी हास्य व्यंग्य कविता (jitna bijzli chalaye-hindi hasya vyangya kavita)

कवि सम्मेलन में
बिजली गुल हो गयी
एकदम सन्नाटा छा गया
कवियों की हो गयी बोलती बंद,
सब श्रोता चिल्लाने लगे
नहीं रहे थे वह अब शांति के पाबंद,
एक श्रोता बोला
‘‘कवि भाईयों
इस बिजली गुल होने पर
कोई कविता सुनाओ,
अंधेरे पर कुछ गुनगुनाओ,
देशभक्ति पर बाद में
अपने गीत और गज़लें सुनाना,
मौका है तुम्हारे पास
चाहो तो तरक्की का मखौल उड़ाना,
हमारे अंदर का दर्द बाहर आ जाये,
आप में से कोई ऐसा गीत गाये।
सुनकर एक कवि बोला
‘‘अंधेरा मेरा गुरु है
जिससे प्रेरित होकर मैंने शब्द शास्त्र चुना
उसका मखौल मैं उड़ा नहीं सकता,
बिजली की राह भी अब नहीं तकता,
आ जाये तो कुछ लिख पाता हूं,
नहीं आती तो सो जाता हूं,
इस देश में अंधेरा बसता है
यह बिजली ने आकर ही बताया,
हैरानी है यह देख कर
अंधेरे ने पुराने लोगों को नहीं सताया,
हंसी यही सोचकर आती है
बिजली की रौशनी के हम गुलाम हो गये,
सूरज का प्रकाश अब मायने नहीं रखता
तरक्की में इंसानी जज़्बात कहीं खो गये,
इस अंधेरे में
मैं बोल सकता हूं
तुम सुन सकते हो
मगर इस कमरे में
अपनी आदतों से मजबूर हम
लाचार साये हो गये,
ओढ़ ली है बेबसी हमने खुद
उतना ही चलते हैं जितना बिजली चलाये,
कुदरत ने इंसान बनाया
मगर हम रोबोट बन गये,
यह अलग बात है कि
बिजली से चलने वाले रोबोट हमने बनाये,
वह हमारे काम आते हैं,
पर हम खुद कभी किसी के काम न आये।
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कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
hindi poet,writter and editor-Deepak 'Bharatdeep',Gwalior
http://dpkraj.blgospot.com

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Sunday, July 8, 2012

भगवान बड़े हैं
उनकी तलाश में वह भटक रहे हैं,
कण कण में जो व्याप्त हैं
उसका कण ढूंढकर उसमें अटक रहे हैं।
कहें दीपक बापू
जिसे छुआ नहीं जा सकता,
आंखों से देखना भी संभव नहीं,
उसकी आवाज सुन सकें
ऐसे कान मिलना भी मुश्किल है,
उसकी गंध सूंघ सके
वह नाक अभी तक बनी नहीं,
हम शब्द बोलें
पर वह सुने इसका आभास भी नहीं होता
उसके कण की सत्यता
कौन पहचानेगा
अज्ञान के अंधेरे में भटकते लोग
विज्ञान की रौशनी में
झूठ को सच समझे लटके रहे हैं।
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कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
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