Sunday, October 31, 2010

आस्था और आदर्श-हास्य कविताएँ (aastha aur adarsha-hasya kavitaen)

उनकी भावनायें इतनी महान है कि
इलाज की दुकान हो या
रहने का मकान
उनका नाम भी आस्था रखते हैं,
दौलत की चाहत पूरी होने का मज़ा
और सर्वशक्तिमान पर अहसान के साथ ही
दोनों का स्वाद एक साथ चखते हैं।
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समाज सेवक ने कहा अपने शिष्य से
‘देखो यह संस्था केवल लोगों की
भलाई के लिये है यह सच मत मान लेना,
भले ही कोई भी नाम रख लेना,
हमारा मुख्य लक्ष्य अपने लिये पैसा कमाना है।
सुनकर शिष्य बोला
‘’मैं मदद के मामले में पुराना पापी हूं,
सारा काम करने के लिये अकेला काफी हूं,
आप अपना आशीर्वाद देते रहें,
ताकि हम लोगों से दान लेते रहें,
जहां तक नाम का सवाल है कुछ भी रख लें
कोई अंतर नहीं पड़ता,
अपनी नीयत से भी अब मैं नहीं डरता,
अलबत्ता लोगों का दिल के जज़्बात भुनाने के लिये
आदर्श नाम रख लेते हैं,
अच्छा है, समझ लीजिये इसमें माल खूब आना है।’’
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कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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Monday, October 18, 2010

आतंक के पक्के व्यापारी-हिन्दी हास्य कविता (atank ke pakke vyapari-hindi hasya kavita)

एक पत्रकार आतंकवादी का
साक्षात्कार लेने पहुंचा और बोला
‘भई, बड़ी मुश्किल से तुम्हें ढूंढा है
अब इंटरव्यु के लिऐ मना नहीं करना
बहुत दिन से कोई सनसनीखेज खबर नहीं मिली
इसलिये नौकरी पर बन आई है,
तुम मुझ पर रहम करना
आखिर दरियादिल आतंकवादी की
छबि तुमने पाई हैं।’
सुनकर आतंकवादी बोला
‘‘भई, हमारी मजबूरी है,
तुम्हें साक्षात्कार नहीं दे सकता
क्योंकि तुमने कमीशन देने की
मांग नहीं की पूरी है,
पता नहीं तुम यहां कैसे आ गये,
जिंदा छोड़ रहा हूं
तुम शायद सीधे और नये हो
इसलिये मुझे भा गये,
कमबख्त!
तुम्हें आर्थिक वैश्वीकरण के इस युग में
इस बात का अहसास नहीं है कि
आतंकवाद भी कमीशन और ठेके पर चलता है,
उसी पर ही हमारे अड्डे का चिराग जलता है,
टीवी पर चाहे जैसा भी दिखता हो,
अखबार चाहे जो लिखता हो,
हक़ीकत यह है कि
अगर पैसा न मिले तो हम आदमी क्या
न मारें एक परिंदा भी,
आतंक के पक्के व्यापारी हैं
कहलाते भले ही दरिंदा भी,
हमें सुरक्षा कमीशन मिल जाये
तो समझ लो हाथी सलामत निकल जाये,
न मिले तो चींटी भी गोली खाये,
आजकल निठल्ला बैठा हूं
इसका मतलब यह नहीं कि काम नहीं है
सभी चुका रहे हैं मेरा कमीशन
फिर हमला करने का कहीं से मिला दाम नहीं है,

अब इससे ज्यादा मत बोलना
निकल लो यहां से
सर्वशक्तिमान को धन्यवाद दो कि
क्योंकि अभी तुम्हारी जिंदगी ने अधिक आयु पाई है।
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Tuesday, October 5, 2010

अंधेरे का सौदा-हिन्दी कविता (andhera ka sauda-hindi shayari)

लोग जलाते हैं जो चिराग
वह उसे बुझा देते हैं,
रौशनी के दलाल
अपनी दलाली के लिये
करते हैं अंधेरों का सौदा
रात के अंधेरे में चमकता
कोई तिनका भी राह में दिख जाये
उसे भी पत्थरों के नीचे दबा देते हैं।
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