Saturday, May 20, 2017

भूख से ज्यादा थोपा गया मौन सताता है-छोटी हिन्दी कवितायें तथा क्षणिकायें (Bhookh se Jyada Thopa gaya maun satata hai-ShortHindiPoem)

पर्दे पर विज्ञापन का
चलने के लिये
खबरों का पकना जरूरी है।
ढंग से पके सनसनी
अपना रसोईया
रखना जरूरी है।
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अपने पर लगा इल्जाम
बचने के लिये रोना भी
अच्छा बहाना है।
एक ही बार तो
आंसुओं में नहाना है।
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प्यास अगर पानी की होती
नल से बुझा लेते।
दर्द बेवफाई का है
कैसे इश्क की दवा सुझा देते।
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फरिश्तों को पहचाने
दिलाने के लिये
शैतान पाले जाते हैं।
इसलिये अपराधों पर
पर्दे डाले जाते हैं।
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सपने नहीं बेच पाये
लोगों को गरीब बताने लगे।
काठ की हांड
जब दोबारा नहीं चढ़ी
खराब नसीब बताने लगे।
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दिल अगले पल क्या सोचेगा
हमें पता नहीं है।
वफा हो जाये तो ठीक
बेवफाई की खता नहीं है।
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भूख से ज्यादा
थोपा गया मौन सताता है।
भीड़ की चिल्लपों में भी
वही याद आता है।
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पर्दे पर सौंदर्यबोध की
अनुभूति ज्यादा बढ़ी है।
मुश्किल यह कि
जमीन पर सुंदरता
बिना मेकअप के खड़ी है।
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वह भूत ही होंगे
जो ज़माने को लूट जाते हैं।
सभी इंसान निर्दोष है
इसलिये छूट जाते हैं।
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देह से दूर हैं तो क्या
दिल के वह बहुत पास है।
आसरा कभी मिलेगा या नहीं
जिंदा बस एक छोटी आस है।
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दिल तो चाहे
 पर यायावरी के मजे
सभी नहीं पाते हैं।
ंभीड़ के शिकारी
अकेलेपन से डर
मुर्दे साथ लाते हैं।
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कमरे में रटकर
मंच पर जो भाषण करे
वही जननेता है।
क्या बुरा
अभिनय के पैसे लेता है।
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कल का ईमानदार
आज भ्रष्ट कहलाने लगा है।
सच है लोकमाया में
कोई नहीं किसी का सगा है।
....
लुट जाते खजाने
चाहे बाहर भारी पहरा है।
चोरों के नाम पता
पर रपट में लिखा
जांच जारी राज गहरा है।
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महल बनाने के लिये
कच्चे घरों का ढहना जरूरी है।
नये विकास सृजकों की नज़र में
पुराने ढांचे बहना जरूरी है।
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Wednesday, May 3, 2017

सिंहासन का नशा-हिन्दी व्यंग्य कविता (Singhasan ka Nasha-HindiSatirepoem)


सिंहासन का नशा-हिन्दी व्यंग्य कविता
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आकाश में उड़ने वाले पक्षी
कभी इश्क में
तारे तोड़कर लाने का
वादा नहीं करते हैं।

जाम पीने वाले
कतरा कतरा भरते ग्लास में
ज्यादा नहीं भरते हैं।

कहें दीपकबापू सिंहासन पर
बैठने का नशा ही अलग
जिन्हें मिल जाता 
फिर कभी उतरने का 
इरादा नहीं करते हैं।
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नीयत के सियार
दिखने मे गधे हैं।
‘दीपकबापू’ न पालें भ्रम
स्वार्थ से सभी सधे हैं।
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