Thursday, September 20, 2007

तू तो हैं हिन्दी का सेवक

हिन्दी दिवस पर लोगों के सुने उदगार
लेखकों से कहने लगे
हिन्दी के चिराग जला दो
सारे जगत में ज्ञान का प्रकाश
हम फैलायेंगे
ऊंची इमारत में रहने वाले
चारो ओर संपन्नता की
रोशनी में रहने वाले
कार में बैठकर टहलने वाले
गरीब लेखकों से कहते हैं कि
तुम हिन्दी के लिए
अपने प्रतिभा से रोज करो रचनाएँ
हमारे प्रकाशन में है ताकत
हम उन्हें तुमसे ज्यादा गरीबों में
सस्ती दरों पर पढ़वायेंगे

ज्ञान के चिराग तो बहुत आसान है जलाना
तुम माया के चक्कर में ना आना
घर में दिया न जलता हो
पर तुम ज्ञान का प्रकाश फैलाना
मिटटी के दिए की क्या कीमत
बाजार से खरीद लाना
तेल में क्या लगता है
किराने की दुकान से उधार लाना
रुई का क्या
अपने घर के कबाड़ से जुटाना
तू दान कर
अपनी मातृभाषा हिन्दी का नाम कर
हम नही लिखना जानते
इसलिये नहीं लिखते
शब्दों के शेर हम से नही सधते
माया तो ख़ूब है पर
व्याकरण का मायाजाल नहीं समझते
हम तो बाजार ही सजायेंगे

हम हैं प्रकाशन के स्वामी
और तू है हिन्दी का सेवक
क्या यह कम है तेरे चिराग
बाजार में चमकते नजर आएंगे
रोटी की चिन्ता मत कर
वह तो तुझे भगवान दिलवायेंगे
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