Tuesday, July 26, 2011

शांति संदेश और दर्द-हिन्दी कवितायें shanti sandesh aur dard-hindi kavitaen)

आसमान के उड़ते कबूतरों के झुंड को देखकर
ख्याल आया कि
इन शांति दूतों की हलचल पर
अब क्यों नहीं लोग नज़र डालते,
फिर जमीन पर देखा घूमते हुए
लोगों ने मिट्टी, लोहे और प्लास्टिक के बने
कबूतर सजा दिये हैं अल्मारी में
दूसरों को दिखाने के लिये
शोर मचाते हुए वह
अपने पक्षीपेमी होने का
सबूत देते हैं,
मगर छत पर दाना चुगते हुए
शांति संदेश के संवाहक कबूतरों को देखकर
मौन होकर कोई देखे
वह तभी जान पायेगा शांति की तलाश
बाहर नहीं अंदर होती है।
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रोते, चिल्लाते और धमकाते
थक गये हम
किसी दूसरे का क्या
अपना दर्द भी अब नहीं सताता
नहीं रुला पाते अपने गम।
जिनके हाथ में खंजर है
वह कत्ल किये बिना नहीं रहेंगे,
जिनके पास दौलत है
वह गरीब का भला नहीं सहेंगे,
शौहरत का हिमालय पा लिया जिन्होंने
लोग उन शैतानों को फरिश्ता समझेंगे,
क्या कहें हम बेदर्द जमाने के
अपने ही दर्द पर अपनी आंखें नहीं होती नम।
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कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
hindi poet,writter and editor-Deepak 'Bharatdeep',Gwalior
http://dpkraj.blgospot.com

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