Sunday, August 26, 2007

हीरो को मिली जेल, प्रियतम प्यार में फेल

एक ही हीरो की फिल्म देखने और
गाने सुनने के शौक़ ने उन दोनों को
आपस में मिलवाया
फिर तो उन्होने फ़िल्मों जैसा ही
प्रेम प्रसंग रचाया

हीरो के जन्म दिन पर
प्रियतम ने प्रेयसी को
फेवरिट हीरो की फिल्मों की
सीडी अपने पहले उपहार के रुप में दीं
और उसने फिल्म में दिया था जैसा
सोने का हार वैसा ही उसे पहनाया
दोनों ने एक होटल में
केक काटकर जश्न मनाया

उसकी हर फिल्म
पहले दिन पहले शो में देखी और
हर गाने पर शोर मचाया
जब प्रेम फिल्मों जैसा था
तो फिल्म जैसी समस्या भी आनी थी
और वह दिन भी आया जब
हीरो को उसके काले कारनामों ने
सीधे असली जेल भिजवाया
प्रियतम तो गया संभल पर
प्रियतमा का हृदय घबडाया
और उसने जेल के बाहर जाकर
अपना डेरा जमाया

इधर प्रियतम ने रोज मिलने के
ठिकाने से जब उसे नदारद पाया
तो बहुत घबडाया
उसने अपनी प्रेयसी के मोबाइल पर
कई बार बजाई घंटी पर उसे बंद पाया
इधर-उधर ढूँढता रहा
अखिर जेल के दरवाजे से
हीरो का दर्शन किये बग़ैर लौटे
उसके ऐक मित्र ने उसे
प्रेयसी का पता बताया


वह वहां पहुंचा तो
अपनी प्रियतमा को गम में डूबा पाया
उसे देखते ही वह बोली
'तुम मुझे प्यार करते हो तो
अन्दर जाकर हीरो का पता लगाओ
उसका हाल जानकार मुझे बताओं'

प्रीतम बोला
'उसे अपने कर्मों का फल भोगने दो
उससे हमारा अब क्या वास्ता
अब उसे तुम भूल जाओ तुमने तो
अब मुझे अपना हीरो बनाया
बिना अपराध के अन्दर जाना संभव नहीं
सरकार ने कानून ही ऐसा बनाया'

प्रेयसी को गुस्सा आ गया और बोली
'मुझे इससे मतलब नहीं है
मुझे तो बस हीरो के दर्शन करने हैं
आज तुम्हारे इम्तहान का समय आया
उस हीरो की वजह से तुम्हारा और मेरा मिलन हुआ
जिसे किस्मत ने सींखचों के पीछे पहुंचाया'

जब प्रियतम ही अपनी जताई असमर्थता
तब वह बोली
'हीरो गया जेल और तुम्हें उस पर
बिल्कुल भी तरस नहीं आया
मैंने तो उसकी तस्वीर तुम में
देखकर ही तुमसे प्यार रचाया
उसके समर्थन में देखो कितने
लोगों ने आवाज उठाई है और तुमने
ऐक भी नहीं लगाया नारा
तुम प्यार के इम्तहान में फेल हो गये
आज मैंने तुम्हें आजमाया'


बहुत समझाने पर भी वह नहीं मानी
तब प्रियतम को भी गुस्सा आया और बोला
'अच्छा ही है जो तुमने
अपना असली रुप दिखाया
नकली हीरे को असली समझकर
उसमें दिल लगाने की बात मेरे
समझ में भी नहीं आयी
परदे की हीरो जिन्दगी के विलेन
अभिनय कें दिखाएँ बहादुरी और जिन्दादिली
हकीकत में कमजोर और बेरहम
लिखे डायलाग बोलने वाले
क्या बेजुबानों की भाषा समझेंगे
उनके चाहने वालों की बुद्धि पर
तो मुझे शक होता है
अच्छा ही उसे मिली जेल
मैं हुआ प्यार में फेल'
ऐसा कहकर प्रियतम अपने घर चला आया

बेटा हीरो या साधू बनना

अब वह समय गया जब
माँ कहती थी
पढ़ जा बेटा
तुझे किसी तरह भी
इंजीनियर या डाक्टर है बनना
बाप कहता था
पढ़ या नहीं परन्तु
दुनिया के सारे गुर सीख ले
तुझे किसी तरह नेता है बनना
अब दोनों ही कहते हैं
पढ़ या नहीं तेरी मर्जी
परन्तु तू साधू या हीरो बनना

जब से प्रचार के लिए
साधू और हीरो की माँग
बाज़ार में बढ़ी है
जनता की नजरों में
उनकी छबि चढी है
वह दिन अब लद गये जब
लोग अपने प्रतिनिधियों के
दीवाने थे अब टूट गया है उनका भ्रम
वह दिन भी गये जब लड़के के
साधू बन जाने का भय सताता था
अब उन्हें पता चल गया है
उसका आश्रम कोई वीराने में नहीं बसेगा
पर्ण कुटिया की तरह नहीं
फाइव स्टार की तरह सजेगा
ग्रंथों का ज्ञान तोते की तरह रटेगा
और दुनिया भर की एश करेगा
बन गया हीरो तो भी
महापुरुषों की तरह पुजेगा
सबके माता-पिता की यही है तमन्ना
न किसी घौटाले में फंसने का भय
न किसी सेक्स स्कैंडल में
बदनाम होने की आशंका
साधू होकर काले धन को
सफ़ेद करेगा
पकडा गया तो भी उनके
भक्तो के भड़कने के भय से
कौन पकडेगा
चाहे कितने जुबान और बेजुबान
कुचल डाले
हीरो होकर जेल गया तो भी
प्रशंसकों का हुजूम उमडेगा
अच्छा हो या बुरा
चारों तरफ बजेगा डंका
बेटे के ऐसे ही रुप की
करते हैं सब कल्पना
कहैं दीपक बापू
हम अपने को खुद ठगते हैं
या कोई हमें मूर्ख बना जाता है
धर्म ग्रंथ पढ़-पढ़कर
और फिल्म देखकर
अपनी उम्र गंवाते जा रहे हैं
अपना ज्ञान ही अज्ञान लगता है
स्वाभिमान ही अपना अपमान
करने जैसा लगता है
हीरो जैसी शौहरत और साधू जैसी
क्यों न कर सके कमाई
क्यों नहीं पाली ऎसी तमन्ना
फिर सोचते हैं यह तो भेड़ चाल है
जब इनका यह भी भ्रम टूटेगा
इसने ऊपर भी कोई
सर्वशक्तिमान है
जब यह भांडा फूटेगा
तब लोगों की रह जायेगी सब कल्पना
अभी तो कह लेने दो
बेटा साधू या हीरो बनना
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Saturday, August 25, 2007

बगुला भगत पर टिकी धर्म की धुरी

मानव हृदय की कमजोरी का
लाभ उठाकर भक्ति के नाम पर अंधविश्वास
और प्रेम के नाम पर प्रपंच रचाएं
पहने वस्त्र साधू और फकीर के
चाल, चरित्र और चाहत असाधु की
यज्ञ करें राष्ट्र के कल्याण के लिए
अपने लिए दौलत के अंबार जुटाएँ

मूहं में नाम , बगल में छुरी
बगला भगत पर टिकी धर्म की धुरी
कौन किसको साधे
कौन किससे सधे
सबने निज स्वार्थ ओढ़ लिए
माया के अँधेरे में भटक रहे हैं
एअर कन्डीशन कमरे में सांस ले रहे हैं
भ्रम,भय और भ्रष्टाचार का अँधेरा फैलाकर
लोगों को रोशनी के अहसास बैच रहे हैं
खालीपन है सबकी आँखों में
इन्सान तरस रहा है
इन्सान देखने के लिए
कहीं समंदर का पानी मीठा बताएं
कभी भगवान को दूध पिलायें
कही मूर्ती के आंसू टपकावाएं

इंसानियत और ईमान ढूंढते थक गये
किसी इन्सान में देखने के लिए
कौन कहता है कि
मजहब नहीं सिखाता बैर रखना
दुनियां में हर जंग पर
धर्म-मजहब का नाम लिखा है
इंसानों के बीच खडी है दीवार
इनके नाम पर सब लड़ रहे है
अपने -अपने पंथ के गौरव के लिए
बनाया था ऊपर वाले ने
इन्सान को आजादी से
जीने के लिए
उसने स्वर्ग के मोह में
अपने को गुलाम बना लिया
जात , भाषा और धर्म की
झूठी शान की खातिर लड़ने के लिए
जो जिम्मा लेते है ऊपर वाले का
सदेश फ़ैलाने की दुनिया की
अपने इंसानों को ही
दूसरे के लिए लिए शैतान बनाएं

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प्यार से है ज्यादा जान प्यारी

निराश प्रेमी ने हाथ पकड़ कर
अपनी प्रेमिका से कहा
'हम दोनों के परिवार वाले
नहीं हो रहे हमारे रिश्ते पर सहमत
उनसे लड़ने की नहीं है हम दोनों में हिम्मत
चलो कहीं डूब कर मर जाते हैं
अपना नाम अमर प्रेमियों की
लिस्ट में शामिल करा जाते हैं '
प्रेमिका ने ग़ुस्से में अपना
हाथ छुडा कर कहा
'पगला गये हो
इस जमाने में प्रेम पर
आत्महत्या करने की
बात तो सोचना भी बेकार
मैं तो समझी थी कि टाइम
पास करने हम आते हैं
पुराने समय में नहीं थे
इन्टरनेट, कंप्यूटर और
टीवी जैसे मनोरंजन के साधन
नहीं देख पाता था कोई भी
नकली प्रेम के विज्ञापन
सिमटी रहती थी गाँव तक ही सोच
ऐक लडकी-लड़के के मिलने पर
हंगामा पूरे इलाके में मच जाता
अब तो सेंकड़ों सड़कों पर घुमते हैं
देखकर भी हर कोई अनदेखा कर जाता
अब तो पड़ फीकीं पुरानी प्रेम कहानी
कोई याद नहीं करता उनको
सबको याद हैं बस फिल्मी हीरो और
हीरों की नाम मुहँ जुबानी
ऐक ढूँढो हजार मिलते हैं
शादी के लिए रिश्ते
कलकत्ता से कनाडा तक दिखते हैं
तुम में नहीं है हिम्मत
पर मुझे तुम्हारे प्यार से ज्यादा है जान प्यारी
इसलिये कल से हम अजनबी हो जाते
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माँ-बाप कब सुधरेंगे

प्रेमी ने प्रेमिका से कहा
'मेरे मान-बाप नहीं है
बिना दहेज़ के मेरा विवाह
करने को तैयार
उनकी मर्जी के बिना
अगर मैंने बढ़ाया कदम तो
वह मुझ संपत्ति से बेदखल कर देंगे
मेरा-तुम्हारा साथ बस इतना ही था
अब फिर कभी नहीं मिलेंगे'
प्रेमी ने खेला था चालाकी से अपना दाव
प्रेमिका को पहले आया ताव
फिर संभलकर प्रसन्नता से बोली
'बहुत अच्छा हुआ
मेरी तरफ से उनको धन्यवाद देना
मेरी चिंता बिल्कुल न करना
कन्याओं के भ्रूण गिराने से चली जो हवा
उससे पड़ गया है लड़कियों का अकाल
समझदार माँ-बाप अब बेटे की शादी में
अब नहीं मांगते पैसा और माल
मेरे लिए परिवारवालों के पास
बिना दहेज़ के मेरा हाथ मांगने वाले
रिश्तों की झड़ी लगी थी
तुम्हारे साथ जिंदगी गुजरने के लिए तो
बस मैं अकेली अड़ी थी
आज से हम अपने रास्ते अलग कर लेंगे'

अपनी चाल नाकाम होते देखकर
प्रेमी घबडाया और बोला
'अभी जल्दी न करना
मैं अपने माता-पिता को
मनाने के प्रयास जारी रखूंगा
कभी न कभी तो हामी भरेंगे '

प्रेमिका ने कहा
'उमर निकल जायेगी तुम्हारी
माँ-बाप को मनाते
तुम जैसे कई बैठे हैं अपनी जवानी गंवाके
मैं अब इन्तजार नहीं कर सकती
विदेशों से आये हैं मेरे लिए रिश्ते
सोचती हूँ जाकर माँ-बाप की बात मान लूं
अच्छा तो मैं अब चलती हूँ
किस्मत में रहा तो फिर कभी मिलेंगे'

प्रेमिका चली गयी
प्रेमी पीछे से चिल्लाता रहा
पर वह अनसुना कर गयी
प्रेमी बोला'लड़को को तो सब
सुधरने के लिए कहते हैं
पर अपने मुहँ से दहेज़ मांग कर
अपने लड़के की जवानी बरबाद
करने वाले माँ-बाप कब सुधरेंगे'

Wednesday, August 22, 2007

ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा की प्रतिमाएं

पुरानी धरोहर के विभाग में मची थी खलबली
क्योंकि सर्वेसर्वा ने आजादी के दिन
ऐक कार्यक्रम में कहा था
ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा
वह प्रतिमाएं हैं जो अब पुरानी हो चलीं
पर हमें उनका दामन नहीं छोड़ना
अपने विभाग में उन्हें बनाए रखना
ताकि लोगों में बने अपने विभाग की
छबि स्वच्छ और एकदम भली

कई अधिकारियों और कर्मचारियों की
हवाईयां उड़ रही थीं
अखिर यह प्रतिमाएं कहाँ हैं
कभी देखी नहीं अपने यहां
अगर थी तो गयी कहाँ
अब तो लोगों में चर्चा का विषय बन गयीं हैं
लोगों ने कभी देखी नहीं
इसलिये देखने आएंगे
हम उन्हें क्या दिखाएंगे
अख़बार और टीवी वाले चिल्लायेंगे
और इसके साथ ही
प्रतिमाएं ढूँढने की कवायद
जोरशोर से शुरू हो चली

बहुत कोशिश करने पर भी
वह कहीं न मिली
थक-हार कर सर्वेसर्वा से
ही पता पूछने के लिए
ऐक सहायक उनके पास गया
तो उन्होने खा
'तुम पगला गये हो
भाषण नहीं समझते
मैंने ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा के
किसी पत्थर की प्रतिमाओं का
जिक्र नहीं किया था
मेरा तात्पर्य केवल भावनाओं से था
तुम लोग तो उससे भी दूर रहना
मेरी सुविधाओं पर ही ध्यान रखना
हमारे यहाँ कैसे रह सकती है
ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा
जब कहीं भी नहीं चली
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दृश्य-अदृश्य

शूटिंग-हूटिंग
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सुरा, सुंदरी और सता के खेल में
अब ऐसे दृश्य सामने आने लगे हैं
कि पता ही नहीं लगता
असल हैं या फिल्म की शूटिंग है
दौलत, शौहरत और ताकत के सहारे
करने वालों का हर कर्म
शानदार अभिनय कहलाये
गरीब की बुरे क्या अच्छे कर्म पर भी
लोग करते हूटिंग है
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दृश्य-अदृश्य

प्रचार प्रबंधक रचते हैं
शब्दों का ऐसा मायाजाल कि
फिल्मी हीरो
असल जिन्दगी में विलेन होते हुए भी
लोगों के दिल में हीरो होते हैं
अखबार और टीवी में खबरों की
ऐसी चाल रचते हैं गोया कि
हीरो के जग जाहिर काले कारनामे भी
ऐसे प्रस्तुत होते हैं जैसे
कोई काल्पनिक दृश्य हैं
देश , समाज और मर्यादाओं का
कोई लेना-देना नहीं
हीरो से लड़ने वाली
उसे सताने वाली
ऎसी शक्ति है जो अदृश्य है
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प्रचार प्रबंधन
--------------
असली दृश्य नकली लगे
और नकली लगे असली
इसी करामात को
कहते हैं प्रचार प्रबंधन
खलनायक को फिल्म में पीटकर
बनता है नायक
करता है असल जिंदगी में खलनायकी
पर अखबार रहते हैं खामोश
और टीवी पर ऐसे दृश्य आते जैसे
लोग देख रहे हैं स्वपन
हीरो पर हिरन के शिकार का आरोप है और वह जेल में है जब वह जमानत पर छूटता है तो लोग उसके स्वागत में जुट जाते हैं। कोई हीरो कोकीन रखने के आरोप में जेल जाता है और वह भी जमानत पर छूटता है उसके प्रशंसक उसको घेर लेते हैं। किसी हीरो को अवैध हथियार रखने के आरोप में सजा हुई है और वह सुप्रीम कोर्ट से जमानत पर छूटता है तो लोग उसकी रिहाई के समय उस जेल के बाहर खडे हो जाते हैं। यह दृश्य फिल्मी भी हो सकता है और असल भी। चिंता वाली बात यह नहीं है कि ऐसे दृश्य सामने आ रहे हैं बल्कि चिन्ता तो इस बात कि हो गयी है कि लोग असली दृश्यों को भी ऐसे ही देख रहे हैं जैसे मानो कि फिल्म के दृश्य को देख रहे हैं और उन पर कोई प्रतिक्रिया भी नहीं होती।

Tuesday, August 21, 2007

मयखाने के पास अस्पताल

अपने
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अब रात के अंधेरो से ज्यादा
दिन की रौशनी में
अपनों की अँधेरी नीयत से
घबडाते हैं
क्योंकि जो दुष्कर्म करते थे अनजाने लोग
वही अपने कर दिखाते हैं
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मय खानों के पास अस्पताल
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पहले लोग मयखाने तक
खुद जाते और आते हैं
और फिर खुद जाते और
दूसरे उन्हें लाते हैं
मय का मायाजाल ऐसा कि
जब तक चढ़ी रहे दिलो-दिमाग पर
आदमी शेर की तरह गरजता है
और जब उतरे तो बिल्ली की तरह डरता है
इसलिये मय खानों के पास
अस्पतालों की लगने लगी हैं बाढ़
पीने वालों की जब उखड़ने लगे सांस
तब बिना इलाज मरने का गम
साथ लेकर नहीं जाते हैं
--------------
कल्पना
श्रृंगार रस की कविता को
ऐक कवि महोदय
बहुत लंबा खींच जाते हैं
महिलाओं में इसीलिये
प्रसिद्धि भी पाते हैं
जब उनसे वजह पूछी गयी
तो बोले
'क्रीम, पाउडर और फैशियल
के ज़माने में जब लोग
वास्तविक सौन्दर्य को
देखने के लिए तरसे जाते हैं
और यह तो प्रकृति का नियम है
जिससे लोग होते हैं वंचित
उसी के लिए मरे जाते हैं
नहीं करते किसी की तारीफ दिल से
इसलिये महिलाएं देखती हैं
मेरी कविता की नायिका में अपनी तस्वीर
पुरुष कल्पनाओं में ही सौन्दर्य की
प्रशंसा का आनंद उठाते हैं
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Sunday, August 12, 2007

सास-बहू का सीरियल और झगडा

थका हारा पुरुष काम से
जब घर वापस लौटा तो
सास-बहू में कुहराम मचा हुआ था
बाप बाहर सिर पकड़े बैठा था तो
अन्दर बच्चों का मुहँ सूख रहा था
उसने बेटे से पूछा तो
वह बोला-'हम तो पढ़ रहे थे
ज्यादा तो पता नहीं
पर झगडा जब शुरू हुआ
तब टीवी पर सास-बहू वाला
कोई सीरियल चल रहा था
दादी ने कहा इसकी सास ठीक है
बहू है एकदम नालायक
मम्मी ने कहा सास करा रही है
सब जगह झगडे
बहू तो है एकदम सीधी
फिर तो जो चला दोपहर से
वाद-विवाद जो
आपके आने तक चल रहा था'

आदमी ने इन्क्वायरी शुरू की
बेटी से पूछा-'
तुम भी तो देखती हो
अपनी दादी-मम्मी से साथ सीरियल
दोनों में छिड़ गयी जंग
ऐसा कौनसा सीन चल रहा था'
बेटी ने कहा-'
मम्मी और दादी तो
अपने-अपने कमरे में
अलग-अलग चैनल पर
सास-बहू के सीरियल देख रहीं थी
एक में थी बहू विलेन तो दूसरे में
सास खतरनाक रोल कर रही थी
मम्मी गयी चाय के लिए
दादी से पूछने तो वह रो रही थी
सीरियल वाली बहू को कोस रही थी
मम्मी अपने सीरियल की सास
पर क्रोध प्रकट कर रही थी
मैं तो छत पर चली गयी
सीरियल का सीन घर में
आते देख डर लग रहा था'

आदमी अपना सिर पकड
कर बैठ गया
अपनी माँ को समझाए कि
अपनी पत्नी को मनाये
वह कुछ तय नहीं कर पाया
क्योंकि वह सीरियल नहीं देख रहा था
जिससे पैदा हुआ झगडा
अभी तक उसके घर में चल रहा था

जंगल में प्रजातंत्र

जंगल का राजा शेर सो रहा था
पास ही मेमनों का झुंड जंगल की
राजनीति में चर्चा कर रहा था
एक ने कहा-"
हमारे राजा की मति फिर गयी है
पास के जंगल का शेर हम पर
नजरें गाढ़े बैठा है
और यह उससे शांति का
समझौता कर रहा है
अपने जंगल की नहीं
अपनी जान की फिक्र कर रहा है
वह इस बात से अनजान थे कि शेर
सब बातें सुन रहा था

दूसरे ने कहा -'
इसे पता नही अगर यह राजा है
तो हम भी प्रजा हैं
अगर हम यह जंगल छोड़ गये
तो इसकी गद्दी खतरे में होगी'
गद्दी की बात सुनकर शेर उठ बैठा
और जम्हाई लेते हुए बोला-'
क्या कहा किसकी गद्दी ख़तरे में होगी'
उसकी गर्जना सुनकर हर मेमना
बुरी तरह काँप रहा था

सबने शेर से ऐसे मुहँ फेरा
जैसे वह किसी अन्य विषय पर
बतिया रहे थे पर शेर है कि
गरज रहा था-'
जिसे जाना है चले जाओ
मैं तो राजा ही पैदा हुआ हूँ
राजा ही मरूंगा
तुम मुझे मत चलाओ
मैं तुम्हारी हर बात सुन रहा था'
मेमनों का नेता बोला-'
हुजूर आपने ही तो इस
जंगल में लोकतंत्र की
स्थापना की है उसमें तो
सब चलता है
आप महान है आपकी दम पर
तो वही चलता है '
उसकी बात पर शेर का
गुस्सा ठण्डा हो गया और
वह जोर-जोर से हंस रहा था
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अँधेरे में तीर का तक चलेंगे

अंधेरे में चलाते हैं वह तीर

जहाँ दाल का पानी भी नहीं मिलता

कागजों में बाँट जाती है खीर

गरीबी का इलाज करते हैं

ऐसे शल्य-चिकित्सक

जो नहीं जानते इसकी पीर



आकर्षक योजनाओं का रथ

भ्रष्टाचार के पहियों पर

धीरे-धीरे रेंगता हुआ चलता है

जिसको अवसर मिलता है

वही फुर्ती से कमीशन

लूटकर चलता बनता है

बोरी में बंद गेहूं, दाल और चावल

बिचोलियों के भोजन में

बन जाता है मटन-पनीर

बेरोजगारी का इलाज

वह लोग करते हैं

जो ऊपरी कमाई के कहलाते हैं वीर



प्रतिवेदन में लिखे होते हैं दावे

हजारों बनाम पेट भर जाने के

जाने-पहचाने नाम वाले

मुख होते हैं मोहताज दाने-दाने के

पता नहीं कब तक चलेंगे

इस तरह अंधेरे में तीर

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नारे लगते-लगते विकास के

इस देश में आशाओं और आकांक्षाओं

के दीप जलने लगे हैं

फाइलों में ऊंची विकास दर के

आंकडे अब सितारों की तरह

चमकने लगे हैं

टीवी चैनलों और अखबारों में

विकास की बातें करने वालों के

चेहरे रोज चमकने लगे हैं

पर सड़कों पर पडे गड्ढे

चहुँ और फैले गंदगी के ढ़ेर

और रोजगार के लिए भटकते

हुए युवकों का हुजूम

जो एक कटु सत्य की तरह

सामने खडा है

उससे क्यों डरने लगे हैं

विकास के आंकडे और सच

अलग-अलग क्यों लगने लगे हैं

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शिक्षा अब व्यापार हो गयी है

आजकल कि शिक्षा
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शिक्षा अब धर्म नहीं
व्यापार हो गयी है
शिक्षक देते हैं अखबार और टीवी में
अपने श्रेष्ठ होने का विज्ञापन
छात्र लिखते हैं अपनी
मांगों के लिए नित नये ज्ञापन
किताबें पढने के लिए
न लिखीं जातीं
न छापीं जातीं
बाजार में बिक जाये
छात्रों पर किसी तरह थोप पायें
ऎसी व्यूह रचना की जाती है
शब्दों पर भी माया की
अब मार हो गयी है
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शिक्षा और ज्ञान सस्ता
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निजी संस्थान में काम करने वाले
एक क्लर्क से ज्यादा
दिहाडी के मजदूर
ज्यादा कमाते हैं
कहीं वह पिछड़ जाते हैं
शिक्षा और ज्ञान कहीं सस्ते
कहीं खोलें ऊंचाई के रस्ते
ऐसे दृश्य देश की अकुशल प्रबंध की
समस्या को दर्शाते हैं
ऊंचीं-ऊंची बातें करते वाले
इस देश के रहनुमा अर्थशास्त्री भी
इस विषय पर बहस और
चर्चा करते से कतराते हैं
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Saturday, August 11, 2007

पुरस्कार ऐसे ही नहीं मिल जाते हैं

मन्त्री जी ने मीटिंग में
अपने सचिव से कहा'-
इस बार के वार्षिक पुरस्कार के लिये
ऐसे लेखक का नाम ढूँढना
जो लिखता हो पर प्रचार के लिये
किसी की न तो
चमचागिरी करता हो
न ही ऐक रचना लिखकर
उसे हजार जगह सुनाता हो
न छ्पवाता हो
और उसके रचना में दम भी हो
समाज सेवा के क्षेत्र में भी
किसी ऐसे व्यक्ति का नाम सुझाना
जो वाकई में निष्काम भाव से
सेवा करता हो
उसके नाम पर चंदा न कर
अपनी जब से पैसा लगाता हो

बैठक में सन्नाटा खिंच गया
सचिव कुछ देर सोचने के बाद
मुस्कराता हुआ बोला-'
सर इसके लिये कहीं
और जाने की क्या जरूरत है
इतना काम है कि किसे
इतनी माथापच्ची करने की फुरसत है
आपके सुपुत्र जी की कुछ कविताएँ
कालिज के मेग्जीन में छपीं हैं
मित्रो के बीच में कविता भी
खूब सुनाते हैं न किसी की
चमचागिरी करते हैं
न कहीं अन्यत्र सुनाने जाते हैं
और समाज सेवा में तो सर
आप ही जाने जाते हैं
अपने घर का पुराना सामान
मंदिर में दान दे आते हैं
और कहीं प्रचार के लिये
खबर नही छ्पवाते हैं
सर मेरा विचार तो यह है
कि दोनों पुरस्कार आप
पिता-पुत्र पर फ़िट हो जाते हैं

मन्त्री जी खुश हो गये और बोले -'
तुम जाकर यह घोषणा करो
तब तक हम यह खबर
अपनी श्रीमतीजी को सुना कर आते हैं
उन्हें भी पता लगे कि
पुरस्कार ऐसे ही नहीं मिल जाते हैं

Tuesday, August 7, 2007

सबसे अलग होकर लिख

तू लिख जमकर लिख
समाज में झगडा न होता हो तो
कराने के लिए लिख
शांति की बात लिखेगा
तो तेरी रचना कौन पढेगा

जहां द्वंद्व न होता वहां होता लिख
जहाँ कत्ल होता हो आदर्श का
उससे मुहँ फेर
बेईमानों के स्वर्ग की
गाथा लिख
ईमान की बात लिखेगा
तो तेरी ख़बर कौन पढेगा

अमीरी पर कस खाली फब्तियां
जहाँ मौका मिले
अमीरों की स्तुति कर
गरीबों का हमदर्द दिख
भले ही कुछ न लिख
गरीबी को सहारा देने की
बात अगर करेगा
तो तेरी संपादकीय कौन पढेगा
रोटी को तरसते लोगों की बात पर
लोगों का दिल भर आता है
तू उनके जजबातों पर ख़ूब लिख
फोटो से भर दे अपने पृष्ठ
भूख बिकने की चीज है ख़ूब लिख
किसी भूखे को रोटी मिलने पर लिखेगा
तो तेरी बात कौन सुनेगा

पर यह सब लिख कर
एक दिन ही पढे जाओगे
अगले दिन अपना लिखा ही
तुम भूल जाओगे
फिर कौन तुम्हे पढेगा
झगडे से बडी उम्र
शांति की होती है
गरीब की भूख से
लडाई तो अनंत है
पर जीवन का
स्वरूप भी बेअंत है
तू सबसे अलग हटकर लिख
सब झगडे पर लिखें
तू शांति पर लिख
लोग भूख पर लिखें
तुम भक्ति पर लिख
सब आतंक पर लिखें
तू अपनी आस्था पर लिख
सब बेईमानी पर लिख
तू अपने विश्वास पर लिख
जब लड़ते-लड़ते
थक जाएगा ज़माना
क्योंकि मुट्ठी हमेशा
भींचे रहना कठिन है
हाथ कभी तो खोलेंगे ही लोग
तब हर कोई तुम्हारा लिखा पढेगा
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छिद्रान्वेष्ण करने वाले क्या ख़ाक सृजन करेंगे

दूसरों के लिखे का
करें छिद्रान्वेषण
कहैं जैसा वह लिखता है
वैसा खुद नही दिखता है
आधा-अधूरा पढ़ें
शब्दों के अर्थ न समझें
भाव क्या वह समझेंगे
करते हैं लिखने वाले का
चरित्र विश्लेषण
ऐसे लेखक क्या सृजन करेंगे


अपने दोष रहित होने का
जिसे आत्मबोध है
अपनी चाहत के अनुरूप
न लिखा होने का जिनके मन में
अत्यंत क्रोध है
दुसरे लेखक से अपने
लिखे के अनुसार ही चाल, चरित्र और
चेहरा रखने का होने का अनुरोध है
लिखेंगे वह खुद जो
उसका वह मतलब खुद नहीं समझेंगे
भाव रहित और भ्रमित अर्थ के
शब्दों से ही अपने पृष्ठ भरेंगे


आजकल तो दोष देखने का
सिलसिला कबीर और तुलसी में भी
देखने का चल पडा है
हिंदी में इसलिये सार्थक
रचनाओं का अकाल पडा है
विदेशी लेखकों में
महानता ढूँढने वाले
उनके शब्दों को दोहराकर
इतराने वाले
अपनी मातृभाषा को
पवित्र रचनाओं की क्या सौगात देंगे


कहैं दीपक बापू
अपने दोषों में ही जीवन का
अर्थ ढूँढा है
अपने ही धर्म ग्रंथों में ही
जीवन का अनमोल सत्य ढूँढा है
तुलसी, सूर, कबीर और मीरा के
छंदों में जीवन का रहस्य ढूँढा है
उनकी रचनाओं में दोष ढूँढने वाले
हिंदी के स्वर्णिम काल में
पत्थर ढूँढने वाले
अपनी मातृभाषा की माला में से
क्या भला शब्दों के मोती चुनेंगे
जो दोषों का पुलिंदा पकड़े बैठे हैं
छिद्रों में अन्दर तक घुसे हैं
ऐसे लोग भला क्या ख़ाक सृजन करेंगे

Monday, August 6, 2007

माया और मय के खेल में सिद्ध भी फेल हो जाएँ

शादी-ब्याह में लोग
दूल्हा-दुल्हन की जोडी को
राम-सिया जैसी बताएं
पर उनके बारातियों जैसी
मर्यादा नहीं निभाएं
शराब पीकर करते हैं
भरे बाजार करते हैं डांस
सड़क पर जाम लगाएं

आत्मा के मिलन का तो नाम है
लगती है नीलामी दूल्हे की
मांग होती है
टीवी, फ्रिज, मोटर साइकिल
और गैस चूल्हे की
राजा दशरथ जैसे नहीं है
पर मांगें ऎसी कि
बडे-बडे अमीर भी शरामाएं

मर्यादा, संस्कार और कुल की
बातें होती हैं बड़ी-बड़ी
पर लेनदेन की बात पर
सब अपनी औकात बताएं

कहैं दीपक बापू
ज्यों-ज्यों चलते हैं धर्म की राह
त्यों-त्यों अधर्म सामने आता है
सिद्धांतों और आदर्शों के झंडे तले ही
पाखण्ड सरेआम रचा जाता है
शराब के नशे में अमर्यादित होकर
करते हैं मर्यादा की बात
शादी के सौदे में लाखों का लेनदेन कर
करते हैं भगवान् की मर्जी बात
माया और मय का खेल ही ऐसा कि
बडे-बडे सिद्ध भी फेल हो जाएँ
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Sunday, August 5, 2007

फ्रेंड्स डै बना छुट्टी का दिन

हमारे लिये तो रोज है
दोस्तों का दिन
आज छुट्टी मना ली है
न हाय न हलो
न राम राम
न श्याम श्याम
आज फुरसत पा ली है
मिलते हैं जो रोज
दर्द बाँटते हैं जो रोज
खुशी बाँटते हैं जो रोज
उनके लिये
आज का दिन खाली है गये हैं
सब फ्रैंडस के पास
दोस्ती के नाम से मुक्ति पा ली है
कहैं दीपक बापू जिंदगी में
दोस्त तो बहुत मिले
कुछ ने निभाया कुछ ने
मुसीबत में पीछा हमसे छुडाया
हिन्दी में ही पूरी की शिक्षा
अंग्रेजी से कभी
नाता नहीं निभाया
दोस्त बने और बिछडे
पर फ्रैंड कभी नहीं बनाया
हिन्दी-अंग्रेजी का
द्वंद जब भी चला
मातृभाषा का पक्ष हमेशा
हमने संबल बनाया
कोयी फ्रेंड नहीं बनाया
यह देखकर कभी-कभी
हारे हुए लगते हैं
फिर यह सोचकर
खामोश हो जाते हैं कि
हिन्दी और अंग्रेजी के द्वंद
तो अब भी चलते हैं
हमारे दोस्तो के रात-दिन तो
हिंदी भाषा और संस्कार में
ही ढलते हैं
यह सब देखकर हमने आज
फ्रेंडस डे से छुट्टी पा ली है

झुग्गी-झौंपडी की जगह महल का चित्र

स्कूल में बच्चों को प्रोत्साहन देने के लिए ड्राइंग के शिक्षक ने चित्रकार प्रतियोगिता का आयोजन किया। उन्होने सब विधार्थियों को झुग्गी-झौंपडी का चित्र बनाने का निर्देश दिया।

सब बच्चे बडे उत्साह से अपने कार्य में जुट गये, पर एक बच्चा परेशान चुपचाप बैठा था और चित्र नहीं बना पा रहा था। टीचर ने जब उसे डांटा तो वह रुआंसा हो गया और बोला-''सर, मुझे चित्र नहीं बनाना आता।

टीचर ने कहा-''कोशिश करो, अभी नहीं तो बाद में बन जाएगा।"

वह बच्चा बोला-''आप मुझे मारेंगे तो नहीं।"

टीचर ने कहा-"नहीं!तुम जैसा भी बनाओ। मैं तुम्हें नहीं मारूंगा।"

उस बच्चे ने चित्र बना दिया। प्रतियोगिता समाप्त हो गयी। सबने अपनी कापी टीचर को सौंप दीं। सबने अच्छे चित्र बनाए थे। रंग-बिरंगी कलम से उन चित्रों में उनके निवासी भी चित्रित किये गये थे। पर उस बच्चे ने आडी-तिरछी लाइनें खींचकर एक मकान बना दिया और उस पर लिख दिया 'मेरा आलीशान महल' और उससे बहुत दूर गड्ढेनुमा गोला खींचकर लिख दिया 'झुग्गी-झौंपडी'।

टीचर ने प्रसन्न होकर उसे ही पुरस्कार दिया। अन्य टीचरों ने जब यह देखा -सूना तो उनसे आपति जताई। तब उन्होने उत्तर दिया -" तुम जानते हो न! पूत के पाँव पलने में ही नजर आते हैं। उसने झुग्गी-झौपडी को गड्ढे में डालकर किसी तरह अपना आलीशान महल बना लिया। आख़िर उसमें वह सभी गुण दिख रहे हैं जिससे लगता है कि आगे वह ऐसा ही करेगा। अगर कहीं झुग्गी-झौंपडी बनाने वाला ठेकेदार बन गया तो......अपने लिए कितना बडा महल बनाएगा और कितनी तो इसके पास गाडियां होंगी। और कुछ नहीं तो तब इसकी वजह से समाज में कितना सम्मान होगा कि मैंने कितने बडे ठेकेदार को पढ़ाया है।

बाकी टीचर उनका मुहँ ताक रहे थे । कुछ ने तो उनकी दूरदर्शिता की सराहना भी की।

Saturday, August 4, 2007

कहीं अमेरिका तो कहीं भारत लगता है

यार , भारत को अमेरिका
बना देने का तुम्हारा ख्याली पुलाव
डरावने सपने जैसा लगता है
या तो तुम्हे सच पता नहीं
या हमारा खबरची एकदम
झूठा लगता है
पता नहीं क्यों दूर का ढोल
तुम्हें सुहावना लगता है

टीवी और फिल्मों में
दिखती हैं ऊंची-ऊंची और
चमकदार इमारतें
चहूँ ओर पेड से सजी
काले नाग की तरह चमकती
और दमकती हुई सड़कें
उन पर दौड़ती हुईं
रंगीन महंगी कारें
मनभावन दृश्य देखकर
तुम्हारा मन उछलने लगता है
पर रोशनी के पीछे जो अंधियारे हैं
उनके होने का अहसास केवल
उसे जीने वालों को ही लगता है

जब तक फिट हो
तेज दौड़ सकते हो
अमेरिका में हिट होते
नजर आओगे
जब थकने लगेगा मन
ढलने लगेगा तन
तब अपने वतन लॉट आओगे
अगर अमेरिका बन गया यहां
फिर कहाँ जाओगे
अमेरिका के जख्म का इलाज
लोग कराने यहां आते है
वहां अपने रक्त को सस्ता
और दवा को महंगा पाते हैं
बुखार के हमले के शिकार
उससे बचने के लिए
अपने वतन आते हैं
वहाँ की अस्पताल की सीढिया
चढ़ने से अधिक
विमान में चढना सहज पाते हैं
अगर यहाँ अमेरिका बन गया तो
फिर कहाँ लॉट जाओगे
तुम्हारे ख्याली पुलाव का
सच से वास्ता नहीं लगता है

अमेरिका में बेकारी, भ्रष्टाचार
और गरीबी नहीं है
यह सोचना तुम्हारा वहम है
लगता है अपनी क़दर
न होने से नाखुश हो
अपने देश को कमतर बता रहे हो
यह तुम्हारा झूठा अहम है
तुम्हारे ख्याली पुलाव में
भ्रम छाया लगता है

कहै दीपक बापू
फिर भी नहीं मानते बात हमारी
तो मान लो यहां भी अमेरिका
बन गया है
गरीब का जीना वहां भी
इतना ही दूभर है
जितना यहाँ हो गया है
माया का स्वप्नलोक है अमेरिका
पर भूलोक के सच को
जानते है भारत के लोग
इसलिये नहीं पालते
व्यथित होकर भी
आत्महत्या का रोग
जिन्होंने धारण किया है
पश्चिमी देशो की संस्कृति को
अपनी जड़ों से कटकर
अमेरिका यहीं बसा लिया है
सामाजिक कार्यक्रमों में
बहती है अंग्रेजी शराब की धारा
अमेरिकी संगीत को उनका
हिस्सा बना लिया है
शाम को गोधूलि बेला में
गायों की झुंड की जगह मार्ग में
उनकी जगह मिलते हैं
पैट्रोल-डीजल का धुँआ छोड़ते वाहन
जहां बहती थीं दूध की नदियां
वहाँ हर तरफ जहर बहता लगता है

अब होने या न होने का
प्रश्न ही कहाँ जो
तुमने उसे दिल में फंसा लिया है
द्वंदों के बीच में है देश का समाज
कहीं अमेरिका तो
कहीं भारत लगता है

Friday, August 3, 2007

खेल सिफारिश का

कहीं से भी अपने काम के लिए
मिल जाये किसी बडे आदमी
की हमें भी सिफारिश
हर आदमी के दिल में यह
हमेशा होती है कशिश

सबके दिल की बातें
पूरी हो जातीं तो
हर जगह बस गयी होती जन्नत
सिफारिश से अगर
सारा जहाँ सज गया होता
तो जुह्न्नुम खाली पडा होता
गली-मुहल्लों में पडे कूड़े के ढ़ेर
मलेरिया और डेंगू के मच्छरों जैसे शेर
कभी के मिट गये होते
सर्दी में पानी के लिए तरसते लोग
नहीं करते महसूस गर्मी की तपिश


यहाँ दया और दान पर नहीं मिलती
बड़ों की चौखट पर जाकर
कितनी भी करो
आरजू और मिन्नतें
परन्तु उनके दिल में रखी
बर्फ की चट्टान नहीं पिघलती
पानी, दवा, सड़क और बिजली की
जरूरत से कोई वास्ता नहीं
कारों के खास नंबर
कालोनी में करोड़ों का प्लाट
कौड़ियों की दाम पर
देने के लिए बडे प्यार से
मिल जाती है सिफारिश
समाज सेवा के नाम पर
गरीबों, दलितों और शौषितौं
के लगते है रोज नारे
पर सिफारिशी चिट्ठी पर
किसी बडे आदमी का नाम
जिसकी पूरी होती हर फरमाईश

कहैं दीपक बापू
मन में कई बार आया
कई लोगों ने बहलाया
कुछ ने फुसलाया
पर की कहीं से नही पाई
किसी बडे आदमी की सिफारिश
अपने हाथ ही बने जगन्नाथ
अपने चरण ही बने कमल
अब बडे-बडे लोगों की ओर देखकर
मन्द-मन्द मुस्कराते है
आख़िर वह लोग भी इतने बडे
बन जाते है किसी से लेकर सिफारिश
जो खुद खरीदी है उसे किसी और को
मुफ़्त में कैसे देंगे
कोई पुराना माल नहीं है
जो कबाड़ समझ कर
गरीब को दान में देंगे
इसलिये उस सर्वशक्तिमान की
चौखट पर ही अब अपना शीश नवाते हैं
जब उनके मन में आयेगा
वही करेंगे सिफारिश

गीत-संगीत का मोबाइल से क्या संबंध

मोबाइल का भला संगीत और गाने और बजाने से क्या संबंध हो सकता है? कभी यह प्रश्न हमने अपने आपसे ही नहीं पूछा तो किसी और से क्या पूछते? अपने आप में यह प्रश्न है भी बेतुका। पर जब बातें सामने ही बेतुकी आयेंगी तो ऐसे प्रश्न भी आएंगे।

हुआ यूँ कि कल हम अपने एक मित्र के साथ एक होटल में चाय पीने के लिए गये, वहाँ पर कई लोग अपने मोबाइल फोन हाथ में पकड़े और कान में इयर फोन डालकर समाधिस्थ अवस्था में बैठे और खडे थे। हमने चाय वाले को चाय लाने का आदेश दिया तो वह बोला-" महाराज, आप लोग भी अपने साथ मोबाइल लाए हो कि नहीं?'
हमने चौंककर पूछा कि-"तुम क्या आज से केवल मोबाइल वालों को ही चाय देने का निर्णय किये बैठे हो। अगर ऐसा है तो हम चले जाते हैं हालांकि हम दोनों की जेब में मोबाइल है पर तुम्हारे यहाँ चाय नहीं पियेंगे।"

वह बोला-"नहीं महाराज! आज से शहर में एफ.ऍम.बेंड रेडिओ शुरू हो गया है न! उसे सब लोग मोबाइल पर सुन रहे हैं। अब तो ख़ूब मिलेगा गाना-बजाना सुनने को। आप देखो सब लोग वही सुन रहे हैं। आप ठहरे हमारे रोज के ग्राहक और गानों के शौक़ीन तो सोचा बता दें के शहर में भी ऍफ़.एम्.बेंड " चैनल शुरू हो गये हैं।"

" अरे वाह!"हमने खुश होकर कहा-" मजा आ गया!"

"क्या ख़ाक मजा आ गया?" हमारे मित्र ने हमारी तरफ देखकर कहा और फिर उससे बोले-"गाने बजाने का मोबाइल से क्या संबंध है? वह तो हम दोनों बरसों से सुन रहे हैं । यह तो अब इन नन्हें-मुन्नों के लिए ठीक है यह बताने के लिए कि गाना दिखता ही नहीं बल्कि बजता भी है। इन लोगों नी टीवी पर गानों को देखा है सुना कहॉ है, अब सुनेंगे तो समझ पायेंगे कि गीत-संगीत सुनने के लिए होते हैं न कि देखने के लिए। "

हमारे मित्र ने ऐसा कहते हुए अपने पास खडे जान-पहचाने के लड़के की तरफ इशारा किया था। उसकी बात सुनाकर वह लड़का तो मुस्करा दिया पर वहां कुछ ऐसे लोगों को यह बात नागवार गुजरी जो उन मोबाइल वालों के साथ खडे कौतुक भाव से देख और सुन रहे थे। उनमें एक सज्जन जिनके कुछ बाल सफ़ेद और कुछ काले थे और उनके केवल एक ही कान में इयर फोन लगा था उन्होने अपने दूसरे कान से भी इयर फोन खींच लिया और बोले -"ऐसा नहीं है गाने को कहीं भी और कभी भी कान में सुनने का अलग ही मजा है। आप शायद नहीं जानते।"

हमारे मित्र इस प्रतिक्रिया के लिए तैयार नहीं था पर फिर थोडा आक्रामक होकर बोला-" महाशय! यह आपका विचार है, हमारे लिए तो गीत-संगीत कान में सुनने के लिए नहीं बल्कि कान से सुनने के लिए है. हम तो सुबह शाम रेडियों पर गाने सुनने वाले लोग हैं। अगर अब ही सुनना होगा तो छोटा ट्रांजिस्टर लेकर जेब में रख लेंगे। ऎसी बेवकूफी नहीं करेंगे कि जिससे बात करनी है उस मोबाइल को हाथ में पकड़कर उसका इयर फोन कान में डाले बैठे रहें । हम तो गाना सुनते हुए तो अपना काम भी बहुत अच्छी तरह कर लेते हैं।"

वह सज्जन भी कम नहीं थे और बोले-"रेडियो और ट्रांजिस्टर का जमाना गया और अब तो मोबाइल का जमाना है। आदमी को जमाने के साथ ही चलना चाहिए।"

हमारा मित्र भी कम नहीं था और कंधे उचकाता हुआ बोला-"हमारे घर में तो अभी भी रेडियो और ट्रांजिस्टर दोनों का ज़माना बना हुआ है।अभी तो हम उसके साथ ही चलेंगे।

बात बढ न जाये इसलिये उसे हमने होटल के अन्दर खींचते हुए कहा-"ठीक है! अब बहुत हो गया। चल अन्दर और अपनी चाय पीते हैं।"

हमने अन्दर भी बाहर जैसा ही दृश्य देखा और मेरा मित्र अब और कोई बात इस विषय पर न करे विषय बदलकर हमने बातचीत शुरू कर दीं। मेरा मित्र इस बात को समझ गया और इस विषय पर उसने वहाँ कोई बात भी नहीं की । बाद में बाहर निकला कर बोला-" एक बात मेरी समझ में नहीं आ रही कि यह लोग गीत-संगीत के शौक़ीन है या मोबाइल से सुनने के। देखना यह कुछ दिनों का हे शौक़ है फिर कोई नहीं सुनेगा हम जैसे शौकीनों के अलावा।"

हमने कहा-" यह न तो गीत-संगीत के शौक़ीन है और न ही मोबाइल के! यह तो दिखावे के लिए ही सब कर रहे हैं। देख-सुन समझ सब रहे हैं पर आनंद कितना ले रहे हैं यह पता नहीं।"

हमारे शहर में एक या दो नहीं बल्कि चार एफ.ऍम.बेंड रेडियो शुरू हो रहे है और इस समय उनका ट्रायल चल रहा है। जिसे देखो इसी विषय पर ही बात कर रहा है। मैं खुद बचपन से गाने सुनने का आदी हूँ और दूरदर्शन और अन्य टीवी चैनलों के दौर में भी मेरे पास एक नहीं बल्कि तीन रेडियो-ट्रांजिस्टर चलती-फिरती हालत में है और शायद हम जैसे ही लोग उनका सही आनद ले पायेंगे और अन्य लोग बहुत जल्दी इससे बोर हो जायेंगे। हम और मित्र इस बात पर सहमत थे कि संगीत का आनंद केवल सुनकर एकाग्रता के साथ ही लिया जा सकता है और सामने अगर दृश्य हौं तो आप अपना दिमाग वहां भी लगाएंगे और पूरा लुत्फ़ नहीं उठा पायेंगे।

गीत-संगीत के बारे में तो मेरा मानना है कि जो लोग इससे नहीं सुनते या सुनकर उससे सुख की अनुभूति नहीं करते वह अपने जीवन में कभी सुख की अनुभूति ही नहीं कर सकते। गीतों को लेकर में कभी फूहड़ता और शालीनता के चक्कर में भी नही पड़ता बस वह श्रवण योग्य और हृदयंगम होना चाहिए। गीत-संगीत से आदमी की कार्यक्षमता पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार अधिक टीवी देखने के बुरे प्रभाव होते हैं जबकि रेडियो से ऐसा नहीं होता। मैं और मेरा मित्र समय मिलने पर रेडियो से गाने जरूर सुनते है इसलिये हमें तो इस खबर से ही ख़ुशी हुई । जहाँ तक कानों में इयर फोन लगाकर सुनने का प्रश्न है तो मेरे मित्र ने मजाक में कहा था पर मैंने उसे गंभीरता से लिया था कि 'कानों में नहीं बल्कि कानों से सुना जाता है।'
बहरहाल जिन लोगों के पास मोबाइल है उनका नया-नया संगीत प्रेम मेरे लिए कौतुक का विषय था। घर पहुंचते ही हमने भी अपने ट्रांजिस्टर को खोला और देखा तो चारों चैनल सुनाई दे रहे थे। गाने सुनते हुए हम भी सोच रहे थे-'गीत संगीत का मोबाइल से क्या संबंध ?'

Wednesday, August 1, 2007

बेटा तू साधू या हीरो बनना

अब वह समय गया जब
माँ कहती थी
पढ़ जा बेटा
तुझे किसी तरह भी
इंजीनियर या डाक्टर है बनना
बाप कहता था
पढ़ या नहीं परन्तु
दुनिया के सारे गुर सीख ले
तुझे किसी तरह नेता है बनना
अब दोनों ही कहते हैं
पढ़ या नहीं तेरी मर्जी
परन्तु तू साधू या हीरो बनना

जब से प्रचार के लिए
साधू और हीरो की माँग
बाज़ार में बढ़ी है
जनता की नजरों में
उनकी छबि चढी है
वह दिन अब लद गये जब
लोग अपने प्रतिनिधियों के
दीवाने थे
अब टूट गया है उनका भ्रम
वह दिन भी गये जब लड़के के
साधू बन जाने का भय सताता था
अब उन्हें पता चल गया है
उसका आश्रम कोई वीराने में नहीं बसेगा
पर्ण कुटिया के तरह नहीं
फाइव स्टार की तरह सजेगा
ग्रंथों का ज्ञान तोते की तरह रटेगा
और दुनिया भर की एश करेगा
बन गया हीरो तो भी
महापुरुषों की तरह पुजेगा
सबके माता-पिता की यही है तमन्ना

न किसी घौटाले में फंसने का भय
न किसी सेक्स स्कैंडल में
बदनाम होने की आशंका
साधू होकर काले धन को
सफ़ेद करेगा
पकडा गया तो भी उनके
भक्तो के भड़कने के भय से
कौन पकडेगा
हीरो होकर जेल गया तो भी
प्रशंसकों का हुजूम उमडेगा
अच्छा हो या बुरा
चारों तरफ बजेगा डंका
बेटे के ऐसे ही रुप की
करते हैं सब कल्पना

कहैं दीपक बापू
हम अपने को खुद ठगते हैं
या कोई हमें मूर्ख बना जाता है
धर्म ग्रंथ पढ़-पढ़कर
और फिल्म देखकर
अपनी उम्र गंवाते जा रहे हैं
अपना ज्ञान ही अज्ञान लगता है
स्वाभिमान ही अपना अपमान
करने जैसा लगता है
हीरो जैसी शौहरत और
साधू जैसी क्यों न कर सके कमाई
क्यों नहीं पाली ऎसी तमन्ना
फिर सोचते हैं यह तो भेड़ चाल है
जब इनका यह भी भ्रम टूटेगा
इसने ऊपर भी कोई
सर्वशक्तिमान है
जब यह भांडा फूटेगा
तब लोगों की रह जायेगी सब कल्पना
अभी तो कह लेने दो
बेटा साधू या हीरो बनना
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