Thursday, May 28, 2009

सात पुश्तों के लिये रोटी का जुगाड़-व्यंग्य कविता (sat pidhiyon ke roti-hindi hasya vyangya kavita)


वादे और इरादे
बाजार में बिक जाते हैं
सच देखने तक भला
कितने लोग जिंदा रह पाते हैं।

धरती पर बने जुहन्नम में जीते लोग
जन्नत की ख्वाहिश में
अपनी जिंदगी घिसते चले जाते हैं
वहां जगह मिली कि नहीं
भला मुर्दे कभी बताने आते हैं।

गरीबी मिटाने
भूख भगाने और
सम्मान दिलाने के वादे
करते रहो
ना शब्द से करना परहेज
बस हां कहो
समझदार इसलिये वही कहलाते
जो भले ही एक टुकड़ागुड़ का न दें
बात और वादे तो गुड़ जैसे जरूर करते
सात पुश्तों के लिये
रोटी का जुगाड़ इसी तरह किये जाते हैं।

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1 comment:

Anonymous said...

बहुत खूब कही....

साभार
हमसफ़र यादों का.......

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