समाज के बदलते दौर में
चेहरे बदल जाते
मगर इंसानी बुतों की
बोल और अदायें एक ही
तरह सामने आते।
आकाश जैसा चमकीला
बनाने का वादा तो सभी कर जाते
इसलिये धरती पर
कृत्रिम सितारे सजाते।
भुगतते हैं सभी अपने कारनामों के अंजाम
औकात के हिसाब से मिलते
इंसान को काम और दाम
अपने कर्ज चुकाने हैं खुद सभी को
दिखाने के लिये हमदर्द सभी बनते
साथी वही बनते, हमसफर हों जो
ऐसे में बहुत अच्छा लगता है
सारे संसार में खुशहाली के वादे
जो हकीकत से परे होते भी प्यारे नजर आते।
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