Sunday, May 24, 2009

ब्लाग जब्त होना चिंता की बात नहीं-आलेख

दूसरे का मामला हो तो दिलचस्प हो जाता है पर जब स्वयं उससे जुड़े हों तो चिंताजनक लगता है। यही इस लेखक के साथ भी हुआ जब गुगल ने दो ब्लाग अमृत संदेश पत्रिका और सिंधु पत्रिका को डेशबोर्ड से हटा दिया। दो ब्लाग हटा दिये या किसी तकनीकी गड़बड़े मे फंस गये यह एक अलग विषय था। चिंता थी तो इस बात की ब्लाग स्पाट के अन्य ब्लाग भी कभी इस तरह के संकट में फंस सकते हैं। ब्लाग स्पाट के ब्लाग दिखने में आकर्षक हैं पर उनमें ऐसा कुछ नहीं है जिसकी चिंता की जाये। गूगल भी एक बहुत बहुत बड़ा संगठन है पर उसके सहारे ही अंतर्जाल पर लेखन यात्रा चलेगी यह जरूरी नहीं है, मगर उसके दो ब्लाग पर ढाई सौ पाठ हों और वह उसे जब्त कर ले तो उसे बर्दाश्त भी तो नहीं किया जा सकता।

अगर गूगल कोई आदमी होता तो हम उससे कहने कि‘यार, किसी बात पर नाराज है तो अपने ब्लाग ले जा हमारे पाठ तो फैंक जा! हमने वह कितनी मेहनत से लिखें हैं। हम उनको जाकर वर्डप्रेस की अलमारी में सजायेंगे।’

मगर अंतर्जाल पर आदमी सारा खेल कीबोर्ड पर ही करता है और उससे संपर्क करना कठिन काम है। कहने को गूगल एक संगठन हैं पर काम तो आदमी ही करते हैं। सो किस आदमी ने इस लेखक के दो ब्लाग उड़ा दिये उसकी तलाश करना जरूरी था पर वह एक ही था यह कहना भी कठिन है।
कल अपना पाठ लिखते हुए लेखक ने इस बात की सावधानी बरती थी कि कोई आक्षेप किसी पर न लगायें क्योंकि इन दो ब्लाग को लेकर ही हमें कुछ संदेह थे और लग रहा था कि कोई ऐसा कारण जरूर है कि यह फंसने ही थे। यह फंसे हमारी लापरवाही और सुस्ती से।
इसे भाग्य भी कह सकते हैं कि कोई अदृश्य शक्ति है जो काम करती है वरना इस लेखक के सारे ब्लाग गूगल के कैदखाने में होते-यह कहना कठिन है कि वर्डप्रेस के ब्लाग वह पकड़ पाता की नहीं। शिकायत तो इस बात की है कि उसने ऐसा करने में डेढ़ साल क्यों लिया? उसने वह वेबसाईट एक वर्ष पूर्व अपने सर्च इंजिन से कैसे निकलने दी जिसे आज वह खराब बता रहा है।

शायद दिसंबर 2007 की बात होगी। लेखक इस ब प्रयास में था कि ब्लाग स्पाट पर आने वाले पाठकों की संख्या कैसे पता लगे। हिंदी के एक ब्लाग एक जगह दिखाने वाले फोरम से बाहर के पाठकों की संख्या का अनुमान नहीं हो पाता था। उस पर एक आलेख लिखा गया। आलेख के प्रकाशन के एक माह बाद एक मासूम ब्लाग लेखक ने अपनी टिप्पणी में एक वेबसाईट का पता दिया जिसका नाम था‘गुड कांउटर’। उस ब्लाग लेखक के लिये मासूम शब्द मजाक में नहीं लिखा। वह अतिसक्रिय ब्लाग लेखक है और गाहे बगाहे किसी निराश और परेशान ब्लाग लेखक का मार्गदर्शन करने पहुंच ही जाता है। कभी कभी गंभीर पाठ पर ऐसे सवाल भी उठा देता है जिसका जवाब देते नहीं बनता या देने के लिये एक अन्य पाठ लिखने का मन नहीं करता।
उसकी टिप्पणी से ही उस वेबसाईट का पता लिया और उस समय अपने ब्लाग स्पाट के सभी आठ ब्लाग पर गुड कांउटर लगा दिया। उसकी सूचनायें लुभावनी लगी और उससे यह पता लगता था कि किस शहर से कब ब्लाग देखा गया। उसके आकर्षण की वजह से उसे वर्डप्रेस पर भी लगाया। लगभग उसी समय किसी अन्य ब्लाग लेखक ने स्टेट काउंटर का पता अपने पाठ पर लगाया और चिट्ठकारों की चर्चा में भी उसका नाम आया। इस लेखक ने उसे भी अपने एक दो ब्लाग पर लगाया। कोई गड़बड़ी नहीं थी पर गुड कांउटर के पीछे दूसरा सच भी था जो बाद में दिखाई दिया। अगर कोई पाठक वहां क्लिक करे तो उसे घोड़ों की रेस पर दांव लगाने का अवसर मिल सकता था। यह देखकर ं थोड़ी परेशानी हुई। यह जुआ देखना पसंद नहीं था। पाठकों की जानकारी की वजह से उसे लगाया था पर फिर उसे हटा दिया क्योंकि उसकी जगह स्टेट कांउटर भी अच्छा काम रहा था। उसमें कोई गड़बड़झाला नहीं था। फिर एक एक कर गुड कांउटर सभी जगह से हटा दिया मगर जो ब्लाग जब्त हुए हैं वह इतने सक्रिय नहीं थे इसलिये वहां से हटाने की तरफ ध्यान नहीं गया।
बाद में उन ब्लाग का पता बदलकर उसे सक्रिय किया। पाठक संख्या कोई अधिक नहीं थी इसलिये कोई चिंता वाली बात नहीं थी। एक दो बार गुड काउंटर पर नजर गयी पर यह सोचकर कि अभी हटाते हैं पर नहीं हटाया। वैसे भी चूंकि उनका पता बदला गया था इसलिये वह निष्क्रिय लगता था।
मुख्यधारा में लाने से पूर्व भी ब्लाग पर कोई पाठक नहीं आता था यह बात स्टेट कांउटर से पता लगती थी। गुड कांउटर से तो कभी देखने का प्रयास भी नहीं किया। जब्त होने के तीन चार दिन पहले वहां चार पांच ऐसे पाठकों की आवक देखी गयी जो ब्लाग के पते से उसे खोलते थे। हो सकता है कोई एक पाठक रहा हो। बहरहाल कोई अधिक आवक नहीं थी। सिंधु पत्रिका पर अंतिम दिन नौ पाठ पढ़े गये और उसमें कोई भी उसका पता लगाकर ढूंढता हुआ नहीं आया।
हिंदी के पाठक तो वैसे भी कम हैं और ब्लाग स्पाट पर तो और भी कम है। वैसे इन ब्लाग पर पिछले तीन दिनों में अमेरिका से पाठक संख्या अधिक थी और शक यही है कि उस वेबसाईट को वहीं के कुछ लोग देख रहे होंगे। अंतर्जाल पर एक समस्या यह है कि आप अगर किसी वेबसाईट को लिंक करते हैं और अगर उसे कहीं सर्च किया जाये तो आपका ब्लाग भी वहां चला जायेगा। ऐसा लगता है कि गुड कांउटर को ढूंढ रहे किसी एक या दो आदमी को इस लेखक के एक या दोनों ही ब्लाग हाथ लग गये होंगे। उन्होंने सोचा होगा कि हमें इससे क्या मतलब कि ब्लाग किस भाषा में है मतलब तो गुड कांउटर से घुडदौड़ के समाचार देखने से है-यह कहना कठिन है कि उस पर आन लाईन सट्टा भी हो सकता था या नहीं क्योंकि उसे खोलकर देखे ही लेखक को करीब सवा साल हो गया है बहरहाल उस काउंटर से दोनों ब्लाग पर कोई ऐसी सक्रियता नहीं देखी गयी पर उसका लिंक होना उनके लिये परेशानी का सबब बना। ऐसा लगता है कि हाल ही में उस गुड कांउटर वाली साईट को प्रतिबंधित घोषित किया गया होगा क्योंकि इससे पहले डेढ़ वर्ष तक गूगल का आटोमैटिक सिस्टम उसे नहीं पकड़ रहा था।
उस मासूम ब्लाग लेखक के नाम का जिक्र हमने इसलिये नहीं किया क्योंकि वह भी तो हमारी तरह ही है जिसे बहुत सारी बातें बाद में पता चली होंगी। हो सकता है कि वह स्वयं भी भूल गया हों उसने अतिउत्साह में उस गुड कांउटर का पता बताया और हमने भी लगभग उसी मासूमियत से लगाया। अब समस्या आ रही है उन दोनों ब्लाग को वापस लाने की। गूगल के वेबमास्टर टूल पर अपना प्रयास किया है और तकनीकी ज्ञान की कमी के चलते यह कहना कठिन है कि हम अभी सफल हुए हैं या नहीं। यह तय बात है कि पहले उसे ब्लाग की सैटिंग मेें जाकर तृतीय पक्ष की क्षमता वाली जगह पर जाकर वहां से गुड कांउटर हटाना पड़ेगा। अब गूगल से वह कब वापस मिलेगा। हम अपनी प्रविष्टी सही जगह पर कर रहे हैं या नहीं इसका दावा करना कठिन है। वह दिन हमें आज भी याद है कि इन दोनों में किसी एक ब्लाग पर महीना भर पहले उस अनावश्यक और निष्क्रिय काउंटर का हटाने के लिये हमने माउस उठाया था कि लाईट चली गयी। उस समय पता नहीं था कि वह साथ में ब्लाग भी ले जाने वाली है। वह हटाते तो भी दूसरे ब्लाग को तो जाना ही था क्योंकि हमें तो पता ही नहीं था कि वह दो पर है।
बस एक बात का संतोष है कि किसी अन्य ब्लाग को कोई खतरा नहीं है जिसकी आंशका बनी हुई थी। इस लेखक की चिंता सबसे अधिक ‘शब्द लेख सारथी' की होती है जो पाठकों में ब्लाग स्पाट का सबसे अधिक पसंद किया जाने वाला ब्लाग है। सबसे बड़ी बात यह कि गूगल की विश्वसनीयता को लेकर कोई सवाल उठाना ठीक नहीं है। वैसे यह प्रतिबंध साईट द्वारा प्रदत्त सामग्री से अधिक गूगल के साथ उसकी कोई व्यापारिक संधि न होने के कारण लगा-ऐसा लगता है। जहां तक अश्लील और आन लाईन सट्टेबाजी की साईटों का सवाल है तो कौन गूगल भी पीछे है। पर इससे हमें क्या? हमारे सात्विक लिखने और पढ़ने में बाधा नहीं आना चाहिए। गूगल ने अगर गुड काउंटर को गलत समझा तो ठीक है हम भी उससे सहमत हैं। बस अफसोस इस बात है कि डेढ़ साल पहले उसने ऐसा क्यों नहीं किया। दूसरा जिन अन्य ब्लाग लेखकों के ब्लाग जब्त हुए हैं वह भी याद करें कि कहीं उन्होंने इस तरह की साईटें तो नहीं लगायी थी। हिंदी ब्लाग जगत के लेखक होने के नाते पश्चिमी तौर तरीकों और दाव पैंचों को अधिक नहीं जानते इसलिये इस तरह के धोखे में फंस जाना कोई बड़ी बात नहीं है। बहरहाल जो ब्लाग मित्र या पाठक हैं उन्हें चिंतित होने की बात नहीं है। प्रयास करने पर दोनों ब्लाग वापस मिलते हैं तो ठीक वरना कोई बात नहीं। अन्य ब्लाग कोई खतरा नहीं है इससे संतुष्ट होना ठीक है।
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यह कविता/आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप की अभिव्यक्ति पत्रिका’ पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
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2 comments:

संगीता पुरी said...

आपके आलेख से थोडी राहत मिली .. वरना मन तो परेशान था कि फिर गाज किसपर गिरेगी ?

Alpana Verma said...

dhnywaad is jaankari ke liye.

waise aap 'wayback machine' par jaa kar apni lost site/blog check kar saktey hain.shayad wahan wah surakshit ho.

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