भलाई होती नहीं जंग के किस्से सुनाते, राजा भय से अपनी प्रीत के हिस्से भुनाते।
‘दीपकबापू’ नाचे कभी नहीं आंगन टेढ़ा बताया, विज्ञापनों में श्रृंगार गीत गुनगनाते।।
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नाकामों ने दरबार सुंदर तस्वीरों से सजाया, कामायाबी का भौंपू बाहर जोर से बजाया।
चिड़ियाओं की पुरानी बीट से रंगे हैं चेहरे, ‘दीपकबापू’ दाग को रंग बताकर सजाया।।
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पहना योगी भेष खुश होते उपहार संग, लेते राम नाम बदलें बार बार अपना रंग।
‘दीपकबापू’ अच्छे शब्द सुनकर हुए बोर, नये रास्ते चले सोच चाल वही पुरानी तंग।।
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कारिंदों के कारनामे राजा अपने नाम करते, जनता का धन लेकर अपने जाम भरते।
‘दीपकबापू’ लोकतंत्र का तमाशा देख रहे बरसों से, वोट हमारा हम ही दाम भरते।।
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मन फीके बाहर शोर से रंग डालें, पिचकारी हाथ में सोच में काली नीयत पालें।
‘दीपकबापू’ बधाई गान बजते सड़कों पर, घर के बर्तनों में सजी बेजुबान खालें।।
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