Sunday, October 18, 2015

नज़र और नज़रिये का खेल-हिन्दी कविता(Nazar aur Nazariye ka Khel-Hindi Kavita)

देखते हैं चेहरा
जब आईने में
हंसी नज़र नहीं आती।

देखते हैं आंखें झुकाकर
 पांव की एड़ियां
साफ नज़र नहीं आती।

कहें दीपकबापू नज़रिये का खेल
सभी समझ नहीं पाते
पर्दे के खेल पर ही
अपना मन रमाते
सामने नाचते पुतलों की
डोर थामने वाली उंगलियां
सभी की नज़र नहीं जाती।
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लेखक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा भारतदीप
लश्करग्वालियर (मध्य प्रदेश)
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
hindi poet,writter and editor-Deepak 'Bharatdeep',Gwalior
http://dpkraj.blgospot.com


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