Thursday, October 29, 2015

संसार का सच-हिन्दी व्यंग्य कविता(Sansar ka Such-HindiSatirePoem)


स्वार्थ के संबंध
लंबे समय तक
रह पाते हैं।

अर्थ का रस सूखते ही
कच्ची दीवारों की तरह
ढह जाते हैं।

कहें दीपकबापू रोना बेकार
मिलने वालों का बिछड़ना तय
निस्वार्थ भाव में नहीं होती लय
विरले होते जो संसार का सच
सह पाते हैं।
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लेखक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा भारतदीप
लश्करग्वालियर (मध्य प्रदेश)
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
hindi poet,writter and editor-Deepak 'Bharatdeep',Gwalior
http://dpkraj.blgospot.com


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