‘क्या तुम बुरे आदमी हो‘
जवाब मिला
‘कभी अपने काम से
कुछ सोचने का अवसर ही नहीं मिला
इसलिये कहना मुश्किल है
कभी इस बारे में सोचा ही नहीं।’
फिर उसने पूछा
‘क्या तुम अच्छे आदमी हो?’
जवाब मिला
‘यह आजमाने का भी
अवसर नहीं आया
पूरा जीवन अपने स्वार्थ में बिताया
कभी किसी ने मदद के लिये
आगे हाथ नहीं बढ़ाया
कोई बढ़ाता हाथ
तो पता नहीं मदद करता कि नहीं!’’
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अपने भले होने का प्रमाण
कहां से हम लाते
ऐसी कोई जगह नहीं है
जहां से जुटाते।
शक के दायरे में जमाना है
इसलिये हम भी उसमें आते।
सोचते हैं कि
हवा के रुख की तरफ ही चलते जायें
कोई तारीफ करे या नहीं
जहां कसीदे पढ़ेगा कोई हमारे लिये
वह कोई चिढ़ भी जायेगा
अपने ही अमन में खलल आयेगा
इसलिये खामोशी से चलते जाते।
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