एक ‘भ्रष्टाचार विरोधी’ सम्मेलन बुलाया
जब पहुंचे उस जगह तो
वहां कोई नहीं आया।
अपने आमंत्रितों को फोन कर
उन्होंने कारण पता लगाया
किसी ने एक तो किसी ने
न आने का दूसरा बहाना बताया।
‘’यार, तुम भी कैसे समाज सेवक हो
किस विषय पर यह सम्मेलन बुलाया
सच यह है कि आज छुट्टी का दिन है
भूलना चाहते हैं वह सब
जो पूरे हफ्ते बिताया
दफ्तरों में गुजारे पलों को
तुम याद क्यों दिलाना चाहते हो
अपनी ऊपरी कमाई सभी को पवित्र लगती है
दूसरे की भ्रष्टाचार
सभी दौलत के पीछे हैं
ईमानदार का तो बस नकाब लगाया।
फिर वहां बरसेंगी भ्रष्टाचारियों पर गालियां
सभी की बीबी बच्चे बचायेंगे तालियां
आखिर सच कुरेदेगा लोगों का दिमाग
जिसकी अगले हफते पड़ेगी छाया
इसलिये सभी ने इस सच के संकट से
स्वयं को बचाया।’
एक हमदर्द ने उनको बताया।
............................................
यह कविता/आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप की अभिव्यक्ति पत्रिका’ पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.दीपक भारतदीप का चिंतन
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिकालेखक संपादक-दीपक भारतदीप
1 comment:
bahut badhiya.............sundar abhiwyakti
Post a Comment