Wednesday, July 1, 2009

सच का संकट-हास्य व्यंग्य कविता (trouble of truth-hindi hasya poem)

उन्होंने निजी और सरकारी सेवकों का
एक ‘भ्रष्टाचार विरोधी’ सम्मेलन बुलाया
जब पहुंचे उस जगह तो
वहां कोई नहीं आया।
अपने आमंत्रितों को फोन कर
उन्होंने कारण पता लगाया
किसी ने एक तो किसी ने
न आने का दूसरा बहाना बताया।
‘’यार, तुम भी कैसे समाज सेवक हो
किस विषय पर यह सम्मेलन बुलाया
सच यह है कि आज छुट्टी का दिन है
भूलना चाहते हैं वह सब
जो पूरे हफ्ते बिताया
दफ्तरों में गुजारे पलों को
तुम याद क्यों दिलाना चाहते हो
अपनी ऊपरी कमाई सभी को पवित्र लगती है
दूसरे की भ्रष्टाचार
सभी दौलत के पीछे हैं
ईमानदार का तो बस नकाब लगाया।
फिर वहां बरसेंगी भ्रष्टाचारियों पर गालियां
सभी की बीबी बच्चे बचायेंगे तालियां
आखिर सच कुरेदेगा लोगों का दिमाग
जिसकी अगले हफते पड़ेगी छाया
इसलिये सभी ने इस सच के संकट से
स्वयं को बचाया।’
एक हमदर्द ने उनको बताया।

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1 comment:

ओम आर्य said...

bahut badhiya.............sundar abhiwyakti

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