इधर वहां के बारे में दो खबरें टीवी चैनलों और समाचार पत्रों में देखने को मिली। एक तो ताजा है जिसमेें जहरीली शराब पीने से अनेक लोगों की मृत्यु हो गयी। कुछ दिन पहले एक खबर देखने को मिली थी जिसमें भीड़ ने रेल में शराब की बोतलें तस्करी कर गुजरात लाये जाने का विरोध करते हुए उनको तोड़ डाला। जिस तरह बोतलों का झुंड देखा उससे तो यह देखकर लगता था कि वह छुपाकर नहीं लायी जा रही थी।
गुजरात का समाज आर्थिक, सामाजिक और दृष्टि से अन्य राज्यों से कुछ अधिक शक्तिशाली हो सकता है पर भिन्न नहीं है। पूरे भारत में पश्चिमी सभ्यता ने प्रभाव डाला है और गुजरात उससे अछूता होगा यह कहना कठिन है। फिर हिंदी फिल्मों ने आदतों, रहन सहन, चाल चलन और चिंतन के विषय में पूरे देश मेें एक साम्यता ला दी है और यह संभव नहीं है कि गुजरात पर उसका प्रभाव न पड़ा हो। कहने कहा तात्पर्य यह है कि शादी और पर्वों पर जिस तरह अन्य प्रदेशों में लोग शराब पीकर जश्न मनाते हैं गुजरात के लोग सूखे रहें यह संभव नहीं लगता। इसका आशय यह है कि शराब पर प्रतिबंध केवल नाम का ही रहा होगा। शराब पर प्रतिबंध से सीधा आशय तो यही होना चाहिये कि वहां इसका व्यवसाय ही न हो-न खरीदना न बेचना-पर जिस तरह यह दोनों घटनायें देखने को मिली उससे तो नहीं लगता कि वहां शराब अन्य प्रदेशों से अनुपात में कम उपलब्ध होगी।
शायद गुजरात देश का पहला एकमात्र प्रदेश है जहां शराब पर प्रतिबंध है। इसका कारण यह है कि भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी वहीं के थे और वह शराब के विरोधी थे। कहने को तो वह पूरे राष्ट्र के पिता थे पर जब शराब की बात आई तो उनका सम्मान केवल गुजरात तक ही सिमट गया।
महात्मा गांधी शराब के विरोधी थे पर क्या वह इस तरह प्रतिबंध के समर्थक भी थे इसकी जानकारी तो इस लेखक को नहीं है। मुद्दे की बात यह है कि शराब पर पूरी तरह प्रतिबंध संभव नहीं है। अगर आप अंग्रेजी शराब पर प्रतिबंध भी लगायें पर देश के कई ऐसे आदिवासी और जनजातीय समुदाय हैं जो शराब का सेवन धार्मिक अवसरों प्रसाद की तरह करते हैं और उनको रोका नहीं जा सकता। आदिवासी और जनजातीय समुदाय को अपनी शराब बनाकर पीने की शायद किसी सीमा तक कानूनी छूट भी है।
महात्मा गांधी ने शराब का विरोध जिस समय प्रारंभ किया था उस समय आधुनिक धनी और मध्यम वर्गीय लोग शराब का सेवन गंदी आदत की तरह मानते थे। महात्मा गांधी ने दादाभाई नौरोजी के आग्रह पर तत्काल स्वाधीनता संग्राम प्रारंभ करने से पहले दो वर्ष तक देश का दौरा किया तो यह पाया कि जिस तबके के सहारे वह आजादी की जंग लड़ना चाहते हैं वह आर्थिक और सामाजिक दृष्टि से निम्न स्तर पर खड़ा है और उसके उद्धार के बिना आजादी मिल जाये तो भी वह निरर्थक होगी। गरीब और निम्न वर्ग के संकट का सबसे बड़ा कारण शराब ही है-यह आभास उनको हो गया था। यही कारण है कि उन्होंने शराब का विरोध किया।
अब समय बदल गया है। शराब अब धनी, आधुनिक और सभ्य होने के तौर पर उपयोग की जाने लगी है। ऐसे में गुजरात में लोग पूरी तरह से शराब का सेवन न करे यह संभव नहीं लगता। फिर वहां अन्य प्रदेशों से भी लोग कामकाज की तलाश में गये हैं और उनमें अनेक लोग शराब के मामले में स्वयं पर प्रतिबंध लगायें यह संभव नहीं है। इधर जहरीली शराब की घटना ने वाकई देश को हिलाने के साथ चैंका भी दिया है।
हम यह मानते हैं कि शराब बहुत बुरी चीज है। इससे आर्थिक और शारीरिक हानि तो होती है मानसिक रूप से भी आदमी पंगु हो जाता है। मगर सवाल यह है कि इसके लिये लोगों को समझाने के लिये सामाजिक संगठनों को सक्रिय होना चाहिये कि जबरन प्रतिबंध लगाकर उसे अधिक संकटपूर्ण बनाया जाये। अनेक सामाजिक विद्वानों का मानना है कि जिस किसी समाज को किसी चीज के उपयोग करने से जबरदस्ती रोका जाये तो लोगों के मन में उसके प्रति रुझान अधिक बढ़ने लगता है। जहरीली शराब पीने से जितने लोग मरे हैं उससे तो लगता है कि वहां बड़े पैमाने पर उसका व्यवसाय होता है। शराब और खाना जहरीला होने से लोगों के मरने और बीमार पड़ने की घटनायें अत्यंत दारुण होती है। यह घटना अगर कहीं अन्य होती तो शायद इसको लोग अधिक महत्व नहीं देते क्योंकि अन्यत्र शराब पर प्रतिबंध नहीं है। इस घटना से पीड़ित लोगों के प्रति सहानुभूति व्यक्त करते हुए हम यही आशा करते हैं कि वह जल्दी इस हादसे से उबर कर आयें।
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