कैदखाने के मुखिया ने
अपनी यहां से रिहा हो रहे चोर से कहा-‘‘
कमबख्त,
तू फिर दस हजार की चोरी के
आरोप की छाया में यहां आया,
पिछली बार की रकम पांच हजार की
चोरी में धरा गया था
अब महंगाई का हिसाब देखें
तू उसमें कोई इजाफा नहीं कर पाया।
शर्म आती है तुम्हें अपने यहां आते देखते हैं,
दस पंद्रह हजार तो अमीर ऐसे ही फैंकते हैं,
यह भी क्या बात हुई कि
जहां हम करोड़ों की हेराफेरी वाले अपने यहां रख रहे है,ं
वहीं हजार की चोरी वाले भी हमारा माल चख रहे हैं,
अब तुम लोगों की यहां कद्र नहीं है
क्या सोचकर यहां चले आते हो,
छोटी मोटी चोरी कर पकड़े जाने पर नहीं शर्माते हो,
बाहर भी तुमने इज्जत नहीं कमाई,
यहां भी तुम्हें कौन पूछेगा
तुमसे बड़े लोगों ने आकर कैदखाने की रौनक बढ़ाई,
इससे अच्छा मूंगफली बेचकर अपना काम चलाओ,
यहां आकर अपनी औकात मत घटाओ,
कैदखाना अब बदनाम जगह नहीं रही,
तुमसे बड़े लुटेरों ने अपनी देह से अब इसे सजाया।’
सुनकर चोर बोला-‘
आपके ज्ञान से मेरे अंर्तचक्षु खुल गये हैं,
यहां से छूटकर करूंगा अच्छा काम
लगता है मेरे सारे पुराने पाप धुल गये हैं।
सही कहते हैं कि संत लोग
सत्संग का असर होता है,
वरना आदमी ख्वाब में सोता है,
मेरा सौभाग्य है जो आपने ज्ञान दिया,
चोर होते हुए भी सम्मान किया,
दरअसल अब हमें भी शर्म आती है,
पकड़े जाते हैं चोरी के आरोप में
रंगेहाथ पकड़े गये रिश्वतखोरों के साथ
जब मिलते हैं
अपनी ही करनी छोटी नज़र आती है,
हम तो लाचारी की वजह से चोरी करते हैं,
वह तो पकवान से पेट भरने के बाद भी
अपनी तिजोरी भी भरते हैं,
बड़े बड़े धुरंधरों को आपके यहां देखकर
सोचता हुं कि
बड़े काम मिलने पर भी रिश्तवतखोरी और बेईमानी
पर आदमी उतारू हो जाता है,
दो नंबर की कमाई करते हुए बाजारू हो जाता है
पहले छोटा काम करने में होती हिचक,
अब उसको लेकर खत्म हो गयी झिझक,
यहां आकर भी छोटी चोरी करने का मलाल मन में आया
बड़ा बुरा काम करना अब संभव नहीं
इससे अच्छा ठेला चलाकर जिंदगी गुजारूं
यह पक्का ख्याल मेरे मन में आया।
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कमबख्त,
तू फिर दस हजार की चोरी के
आरोप की छाया में यहां आया,
पिछली बार की रकम पांच हजार की
चोरी में धरा गया था
अब महंगाई का हिसाब देखें
तू उसमें कोई इजाफा नहीं कर पाया।
शर्म आती है तुम्हें अपने यहां आते देखते हैं,
दस पंद्रह हजार तो अमीर ऐसे ही फैंकते हैं,
यह भी क्या बात हुई कि
जहां हम करोड़ों की हेराफेरी वाले अपने यहां रख रहे है,ं
वहीं हजार की चोरी वाले भी हमारा माल चख रहे हैं,
अब तुम लोगों की यहां कद्र नहीं है
क्या सोचकर यहां चले आते हो,
छोटी मोटी चोरी कर पकड़े जाने पर नहीं शर्माते हो,
बाहर भी तुमने इज्जत नहीं कमाई,
यहां भी तुम्हें कौन पूछेगा
तुमसे बड़े लोगों ने आकर कैदखाने की रौनक बढ़ाई,
इससे अच्छा मूंगफली बेचकर अपना काम चलाओ,
यहां आकर अपनी औकात मत घटाओ,
कैदखाना अब बदनाम जगह नहीं रही,
तुमसे बड़े लुटेरों ने अपनी देह से अब इसे सजाया।’
सुनकर चोर बोला-‘
आपके ज्ञान से मेरे अंर्तचक्षु खुल गये हैं,
यहां से छूटकर करूंगा अच्छा काम
लगता है मेरे सारे पुराने पाप धुल गये हैं।
सही कहते हैं कि संत लोग
सत्संग का असर होता है,
वरना आदमी ख्वाब में सोता है,
मेरा सौभाग्य है जो आपने ज्ञान दिया,
चोर होते हुए भी सम्मान किया,
दरअसल अब हमें भी शर्म आती है,
पकड़े जाते हैं चोरी के आरोप में
रंगेहाथ पकड़े गये रिश्वतखोरों के साथ
जब मिलते हैं
अपनी ही करनी छोटी नज़र आती है,
हम तो लाचारी की वजह से चोरी करते हैं,
वह तो पकवान से पेट भरने के बाद भी
अपनी तिजोरी भी भरते हैं,
बड़े बड़े धुरंधरों को आपके यहां देखकर
सोचता हुं कि
बड़े काम मिलने पर भी रिश्तवतखोरी और बेईमानी
पर आदमी उतारू हो जाता है,
दो नंबर की कमाई करते हुए बाजारू हो जाता है
पहले छोटा काम करने में होती हिचक,
अब उसको लेकर खत्म हो गयी झिझक,
यहां आकर भी छोटी चोरी करने का मलाल मन में आया
बड़ा बुरा काम करना अब संभव नहीं
इससे अच्छा ठेला चलाकर जिंदगी गुजारूं
यह पक्का ख्याल मेरे मन में आया।
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कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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