बाबा रामदेव को योग शिक्षा सिखाते हुए बहुत समय हुआ होगा पर उनको चर्चा में आये पांच छह वर्ष से अधिक नहीं हुआ है, जबकि इस देश में भारत में योग साधना की अनिवार्यता पिछले पंद्रह वर्षों से बहुत तेजी से की जा रही थी। इसका कारण यह था कि जैसे जैसे आधुनिक विलासिता साधनों का प्रयोग बढ़ा वैसे ही लोगों में राजरोग का प्रचलन बढ़ा तो समाज में मानसिक तनाव की स्थिति भी बढ़ती देखी गयी। दूसरी बात यह रही कि मधुमेह, उच्च रक्तचाप, गैसीय विकार तथा हृदय का रोगी होना आम बात हो गयी। एक मजे की बात यह रही कि अंग्रेजी चिकित्सा में इनका इलाज किया गया पर यह भी बताया कि अंततः इन पर परहेज से ही नियंत्रण पाया जा सकता। साथ ही यह भी बताया गया कि मधुमेह, उच्च रक्तचाप तथा अन्य बीमारियों से होने वाली तत्कालिक पीड़ा से मुक्ति का उपाय तो है पर उनको समाप्त करने वाली कोई दवा नहीं है। ऐसे में समाज विशेषज्ञों का ध्यान देशी चिकित्सा पद्धतियों की तरफ गया तो धार्मिक संतों ने इन बीमारियों को जड़ से मिटाने के लिये भारतीय योग साधना का उपाय बड़े जोरदार ढंग से बताना प्रारंभ किया।
अनेक पुराने संत इसकी चर्चा करते थे पर वह अध्यात्मिक प्रवचनों में अन्य विषयों के साथ योग साधना का भी उपदेश देते थे। इधर समाज बीमार हो रहा था और जरूरत थी इसके लिये इलाज की। जिस तरह हृदय की पीड़ा से जूझ रहे आदमी के नाक में आक्सीजन का सिलैंडर लगाया जाता है न कि उसके पास ज्ञानी बढ़ाने के लिये श्रीमद्भागवत गीता पढी जाती हैं क्योंकि यह उस समय की आवश्यकता नहीं होती। उसी तरह समाज में विकारों के बढ़ते प्रकोप से बचने के लिये जरूरत थी केवल योग साधना के प्रचार की और ऐसे में अन्य विषयों की चर्चा अनावश्यक लगने लगी। उस समय योग गुरु बाबा रामदेव का प्रचार शिखर पर अवतरण हुआ। लोग उनके साथ तेजी से जुड़ने लगे। स्थिति यह हो गयी कि अंग्रेजी चिकित्सा के चिकित्सक लोगों को योग साधना करने के लिये प्रेरणा देने लगे।
इस देश में ऐसे अनेक लोग हैं जो उनसे भी पहले योग साधना करने के साथ ही सिखाते रहे हैं मगर व्यवसायिक न होने की वजह से उनको प्रचार माध्यमों में महत्व नहीं मिला। अनेक बुद्धिजीवी ऐसे हैं जो स्वयं योग साधना करते हैं पर सिखाने का उनके पास समय नहीं मिलता। ऐसे लोगों ने बाबा रामदेव को खुला समर्थन दिया।
इसमें कोई संदेह नहीं है कि बाबा रामदेव का योग का प्रचार बढ़ाना उस हर व्यक्ति के लिये प्रसन्नता का विषय है जो निष्काम भाव से समाज का हित सोचते हैं। स्वस्थ, मजबूत और चिंतन क्षमता वाला समाज अंततः बुद्धिजीवियों को ही संरक्षण देता है यह सर्वमान्य तथ्य है। ऐसे में इस लेखक ने भी बाबा रामदेव के समर्थन में जमकर लेख लिखे हैं। चूंकि हम चार वर्ष से इंटरनेट पर लिख रहे हैं और योग तथा श्रीमद्भागवत इस लेखक के प्रिय विषय हैं तो स्वाभाविक रूप से स्वामी रामदेव पर सदैव कुछ न कुछ लिखने में मजा आया। अब पुराने लेखों पर यह टिप्पणियां मिल रही हैं कि आप जैसे लोगों ने बाबा रामदेव का भाव बढ़ाया है तो यह बात भी लिखनी पड़ रही है कि अगर बात केवल योग शिक्षा की है तो यह तथ्य तो उनके आलोचकों को भी मानना चाहिये कि भारतीय समाज में चेतना लाने में बाबा रामदेव की महत्वपूर्ण भूमिका है। अलबत्ता योग शिक्षा से इतर विषयों पर उनसे सहमति और असहमति की हमारे पास पूरी गुंजायश है और हमने तो इस विषय पर अनेक पाठ लिखे हैं।
बाबा रामदेव योग शिक्षा में मिली सफलता से उत्साहित होकर राष्ट्रीय स्वाभिमान अभियान प्रारंभ किया है। सैद्धांतिक रूप से यह अच्छा है पर जैसे जैसे बाबा रामदेव अपने इस अभियान के दौरान कुछ व्यक्तियों या संगठनों पर शाब्दिक प्रहार करेंगे तब इसमें विवाद भी होंगे। एक पुराने समर्थक होने के बावजूद अनेक बुद्धिजीवी योग शिक्षा से इतर उनकी सक्रियता पर सवाल उठायेंगे। यह समाज मंथन का दौर है और इसमें द्वंद्व ढूंढने की बजाय सामजंस्य बढ़ाना चाहिये। हालांकि बहसों से द्वंद्व बढ़ता है पर यह बात सामान्य लोगों पर लागू होती है पर जहां ज्ञानी बहस करते हैं वहां निष्कर्ष निकलता है और समाज में सामंजस्य तथा आपसी सहयोग बढ़ता है। बाबा रामदेव अब एक शिखर पुरुष हैं और हम जैसा आम लेखक उनके पास न जा सकता है न मिल सकता है। अपने अभ्यास से वह योग रूप हो गये हैं इसलिये उन पर अपना ज्ञान भी नहीं झाड़ा जा सकता। इसके बावजूद यह सच है कि एक आम योग साधक और लेखक होने के कारण उनकी योग शिक्षा के साथ ही अन्य विषयों पर भी उनके वक्तव्यों पर दृष्टिपात करते हैं। उनको टीवी पर देखकर और उनके वक्तव्य समाचार पत्रों में पढ़कर योग साधना के कुछ रहस्य तो वैसे ही प्रकट हो जाते हैं।
आखिर में उनकी गतिविधियों से मिले रहस्यों की चर्चा करते हैं। एक रहस्य तो यह कि योग साधकों को उसके आठों अंगों की शिक्षा के अलावा कुछ अन्य नहीं देना चाहिये। अगर वह योग शिक्षा में पारंगत हो गया तो सारे विषय उसके पीछे चलेंगे। यदि आप योग साधक हैं तो अपने भविष्य की योजना के बारे में सार्वजनिक घोषणा बिल्कुल न करें क्योंकि आप नहीं जानते कि योग माता आपकों कहां ले जायेगी? बाबा श्रीरामदेव ने घोषणा की थी कि वह कभी राजनीति नहंी करेंगे। उनका यह वक्तव्य इस लेखक ने टीवी पर सुना था। तब ही यह अनुमान किया था कि एक न एक दिन इनको अपनी राष्ट्रवादी संकल्प के कारण इस चुनावी राजनीति में भी आना पड़ेगा। वजह यह कि योग साधना बरसों से कर रहे हैं। नित प्रतिदिन देह में पवित्र रक्त का प्रवाह तथा उच्च विचारों का निर्माण उनके अंदर होता होगा। जब योग का चरम शिखर पा लेंगे तो फिर उनके देह में मौजूद पवित्र गुण उनको समाज तथा राष्ट्र के नवनिर्माण के प्रेरित करेंगे। ऐसे में वह पुराने समय की तरह कोई युद्ध तो लड़ना संभव नहीं है इसलिये वह प्रत्यक्ष चुनावी राजनीति में आयेंगे जो कि आजकल युद्ध की तरह ही होती है। इसका सीधा मतलब यह कि हम उनके चुनावी राजनीति में न आने के संकल्प की याद करना पसंद नहीं करते।
आगे क्या होगा, यह तो हम देखेंगे। यह पाठ हमने एक पाठक की उस टिप्पणी पर ही लिखा है जिसका हमने जिक्र किया है। उसी ने यह याद दिलाया था कि योग गुरु रामदेव ने पहले राजनीति में न आने की घोषणा की थी पर अब आ गये। इसका मतलब यह कि वह भी दूसरे लोगों की तरह हैं। हम इसके जवाब में यही कहते हैं कि योग साधना बहुत जरूरी है पर श्रीमद्भागवत का अध्ययन उसके साथ होना चाहिये। जब गीता संदेश पढ़ने लगेंगे तक यह समझ जायेंगे कि गुण ही गुणों को बरतते हैं। सहज योगी हो या असहज योगी अपने गुण के वश में होकर ही काम करता है। दूसरी बात यह कि महाभारत युद्ध में भगवान श्रीकृष्ण ने हथियार न उठाने की घोषणा की थी पर वीरवर भीष्म पितामह ने उनको इस प्रतिज्ञा से विचलित कर दिया था। हम यहां बाबा रामदेव की तुलना भगवान श्रीकृष्ण से नहीं कर रहे बल्कि यह बता रहे हैं कि योगियों की लीला खुद योग भी नहीं जानते। इसलिये उनको ऐसी घोषणाओं से बचना चाहिये। अगर योगी अपनी राह बदल कर आ भी जायें तो उस भी आपत्ति नहीं करना चाहिए।
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कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
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