उनकी भावनायें इतनी महान है कि
इलाज की दुकान हो या
रहने का मकान
उनका नाम भी आस्था रखते हैं,
दौलत की चाहत पूरी होने का मज़ा
और सर्वशक्तिमान पर अहसान के साथ ही
दोनों का स्वाद एक साथ चखते हैं।
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समाज सेवक ने कहा अपने शिष्य से
‘देखो यह संस्था केवल लोगों की
भलाई के लिये है यह सच मत मान लेना,
भले ही कोई भी नाम रख लेना,
हमारा मुख्य लक्ष्य अपने लिये पैसा कमाना है।
सुनकर शिष्य बोला
‘’मैं मदद के मामले में पुराना पापी हूं,
सारा काम करने के लिये अकेला काफी हूं,
आप अपना आशीर्वाद देते रहें,
ताकि हम लोगों से दान लेते रहें,
जहां तक नाम का सवाल है कुछ भी रख लें
कोई अंतर नहीं पड़ता,
अपनी नीयत से भी अब मैं नहीं डरता,
अलबत्ता लोगों का दिल के जज़्बात भुनाने के लिये
आदर्श नाम रख लेते हैं,
अच्छा है, समझ लीजिये इसमें माल खूब आना है।’’
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कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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