Saturday, May 22, 2010

सम्मेलन-हिन्दी व्यंग्य कविता (sammelan-hindi vyangya kavita)

सम्मेलन में
कुछ रूठे इस उम्मीद में गये कि
कोई उन्हें मना लेगा
कुछ टूटे दिलों ने आसरा किया कि
कोई उन्हें फिर बना लेगा,
मगर वहां जमी महफिल में
सभी चीख रहे थे
गुर्राने के नये नये तरीके सीख रहे थे,
सद्भाव के नाम संघर्ष दिखने लगा।
सभी ने अपनी अपनी कही,
दूसरे की सलाह भी सही,
तय किया ज़माने में नश्तर चुभोने का,
अपने को छोड़कर सभी को डुबोने का,
फिर कोई अगले सम्मेलन की तारीख लिखने लगा।

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कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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