समाज सेवा शुरु करने से पहले
कोई न कोई अपराध करना जरूरी है,
लोग देते हैं डर कर चंदा
कभी नहीं पड़ता धंधे में मंदा,
घी निकालने के लिये टेढी उंगली की तरह
चलना आजकल की मजबूरी है।
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नैतिकता की बातें करते वह लोग,
दौलत पाने की चाहत का लगा जिनको रोग।
सिमट गया है शिखर पुरुषों का दायरा
वाद और नारों के इर्दगिर्द,
खुद हो गये हैं सफेदपोश
काले करनामों अंजाम दे रहे उनके शागिर्द,
लोगों को त्याग करने की क्या प्रेरणा देंगे
अपने लिये जुटा रहे ढेर सारे भोग।
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दुःख इस बात का नहीं कि
वह अपने वादे से मुकर गये,
तकलीफ इस बात ये हुई,
वह अपना यकीन हमारे यहां खो गये।
चेहरे पर नकाब पहनकर धोखा देते तो
कोई बात नहीं थी,
पर हमारे अरमान का कत्ल कर
वह झूमकर नाचे
जैसे खुद शहंशाह हो गये।
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कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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3 years ago
1 comment:
इस देश और समाज में नैतिक पतन और गिरता सामाजिक सोच पर व्यंग करती उम्दा रचना के लिए आपका धन्यवाद /आशा है आप इसी तरह ब्लॉग की सार्थकता को बढ़ाने का काम आगे भी ,अपनी अच्छी सोच के साथ करते रहेंगे / ब्लॉग हम सब के सार्थक सोच और ईमानदारी भरे प्रयास से ही एक सशक्त सामानांतर मिडिया के रूप में स्थापित हो सकता है और इस देश को भ्रष्ट और लूटेरों से बचा सकता है /आशा है आप अपनी ओर से इसके लिए हर संभव प्रयास जरूर करेंगे /हम आपको अपने इस पोस्ट http://honestyprojectrealdemocracy.blogspot.com/2010/04/blog-post_16.html पर देश हित में १०० शब्दों में अपने बहुमूल्य विचार और सुझाव रखने के लिए आमंत्रित करते हैं / उम्दा विचारों को हमने सम्मानित करने की व्यवस्था भी कर रखा है / पिछले हफ्ते अजित गुप्ता जी उम्दा विचारों के लिए सम्मानित की गयी हैं /
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