राज रखकर ही राज
चलाये जाते हैं
सामने कर दुश्मनी के सौदे
बंद कमरे में दोस्तों में
बांटे जाते हैं।
जज़्बात मर गये हैं लोगों के
प्यार हो नफरत
दिल के अदंर तक नहीं पहुंचती
केवल जमाने को दिखाये जाते हैं।
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दिन भर दिखाते रहे
अपनी दुश्मनी जमाने को,
रात को चले दोस्ती निभाने को।
विज्ञापन का युग है
तारीफों पर अब लोग नहीं बहलते
इसलिये लोग चल पड़ते हैं
दोस्त के ही हाथ से अपने लिये गालियां लिखाने को।
कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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