Friday, September 4, 2009

नजरें फेरते ही-हिंदी कविता (nazaren-hindi poem)

सच बोलना कभी कभी
ठीक नहीं लगता
कड़वा जो होता।
सोचता भी नहीं
कोई दिमाग की हलचल को
सुन न ले
दीवारों के भी कान होता।
हां, लाचार हूं
एकदम बेबस हूं
निगाहों के सामने हैं दोस्त बहुत
नजरें फेरते ही
हर कोई मेरी शिकायतें लिये
कोई दुश्मन ढूंढ रहा होता।
....................................



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2 comments:

Mithilesh dubey said...

bahut khub likha aapne......

वाणी गीत said...

तभी तो कहा जाता है मीठा मीठा गप गप कड़वा कड़वा थू थू
सच को कहना तो फिर भी आसान है .. सच का सामना करना उतना ही मुश्किल ..!!

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