प्रचार पा जाते हैं
बिना दाम के।
चमकते हैं
नकलची सितारे
बिना काम के।
कायरता में
ढूंढ रहे सुरक्षा
योद्धा काम के।
असलियत
छिपाते वार करें
छद्म नाम से।
भ्रष्टाचार
सम्मान पाता है
सीना तान के।
झूठी माया से
नकली मुद्रा भारी
खड़ी शान से ।
चाटुकारिता
सजती है गद्य में
तामझाम से।
असमंजित
पूरा ही समाज है
बिना ज्ञान के।
...............................
यह कविता/आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप की अभिव्यक्ति पत्रिका’ पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.दीपक भारतदीप का चिंतन
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिकालेखक संपादक-दीपक भारतदीप
No comments:
Post a Comment