जिंदगी का कारवां
हम बढ़ाये जा रहे यूं ही हम
कभी खुशी तो कभी गम
न किसी की शिकायत करते
न ही किसी की शान में
कभी झूठे कसीदे पढ़ते
खामोशी से चलते जाते अपनी राह हम
फिर भी लोग बैचेन हैं
लगता है कि
इसके घर में कहीं चैन है
दखलांदाजी कर जाते
चाहे जब ताने कस जाते
नहीं रोते शायद किसी के आगे
पी जाते हैंं अपने गम
लोग समझते हैं कि
इसके दुःख दर्द क्यों हैं कम
एक भी आंसू नहीं देखते
क्योंकि जंग लड़ने की आदत है
इसलिये कभी घुटने नहीं टेकते
अपनी आदतों और ख्वाबों के गुलाम
देख नहीं पाते
ढेर सारी कमियों के बाद भी
शायद हमारी आजादी
इसलिये मुफ्त सलाहों की
दवायें यूं ही घर ले आते
यह सोचकर कि बीमारों की
भीड़ में क्यों नहीं शामिल होते हम
हम खामोशी से देखते हैं सब
लोग अपने हालात छिपाने के लिये
मशक्कत तमाम करते हैं
इसलिये उभारते दूसरों के गम
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