Thursday, November 20, 2008

इसलिये उभारते दूसरे के गम-व्यंग्य शायरी

कुछ ख्वाब कुछ हकीकतें
जिंदगी का कारवां
हम बढ़ाये जा रहे यूं ही हम
कभी खुशी तो कभी गम
न किसी की शिकायत करते
न ही किसी की शान में
कभी झूठे कसीदे पढ़ते
खामोशी से चलते जाते अपनी राह हम

फिर भी लोग बैचेन हैं
लगता है कि
इसके घर में कहीं चैन है
दखलांदाजी कर जाते
चाहे जब ताने कस जाते
नहीं रोते शायद किसी के आगे
पी जाते हैंं अपने गम
लोग समझते हैं कि
इसके दुःख दर्द क्यों हैं कम
एक भी आंसू नहीं देखते
क्योंकि जंग लड़ने की आदत है
इसलिये कभी घुटने नहीं टेकते
अपनी आदतों और ख्वाबों के गुलाम
देख नहीं पाते
ढेर सारी कमियों के बाद भी
शायद हमारी आजादी
इसलिये मुफ्त सलाहों की
दवायें यूं ही घर ले आते
यह सोचकर कि बीमारों की
भीड़ में क्यों नहीं शामिल होते हम
हम खामोशी से देखते हैं सब
लोग अपने हालात छिपाने के लिये
मशक्कत तमाम करते हैं
इसलिये उभारते दूसरों के गम

.............................................

यह कविता/आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप की अभिव्यक्ति पत्रिका’ पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.दीपक भारतदीप का चिंतन
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिकालेखक संपादक-दीपक भारतदीप

No comments:

समस्त ब्लॉग/पत्रिका का संकलन यहाँ पढें-

पाठकों ने सतत अपनी टिप्पणियों में यह बात लिखी है कि आपके अनेक पत्रिका/ब्लॉग हैं, इसलिए आपका नया पाठ ढूँढने में कठिनाई होती है. उनकी परेशानी को दृष्टिगत रखते हुए इस लेखक द्वारा अपने समस्त ब्लॉग/पत्रिकाओं का एक निजी संग्रहक बनाया गया है हिंद केसरी पत्रिका. अत: नियमित पाठक चाहें तो इस ब्लॉग संग्रहक का पता नोट कर लें. यहाँ नए पाठ वाला ब्लॉग सबसे ऊपर दिखाई देगा. इसके अलावा समस्त ब्लॉग/पत्रिका यहाँ एक साथ दिखाई देंगी.
दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका


लोकप्रिय पत्रिकायें

विशिष्ट पत्रिकाऐं

हिंदी मित्र पत्रिका

यह ब्लाग/पत्रिका हिंदी मित्र पत्रिका अनेक ब्लाग का संकलक/संग्रहक है। जिन पाठकों को एक साथ अनेक विषयों पर पढ़ने की इच्छा है, वह यहां क्लिक करें। इसके अलावा जिन मित्रों को अपने ब्लाग यहां दिखाने हैं वह अपने ब्लाग यहां जोड़ सकते हैं। लेखक संपादक दीपक भारतदीप, ग्वालियर