बस अपनी बात कहेगा
पर तुम खामोश रहना
अपने शब्द सहजता से रचना
खड़ी रहेगी वह इतिहास में इमारत की तरह
उसका छद्म किला अपने आप ढहेगा
वह आतंक के शब्द रचेगा
बहने लगे खून कहीं
ऐसी उम्मीद करेगा
अपने काले कारनामों के लिये
सफेदपोश मुखौटे तलाश करेगा
तुम सहज और सरल शब्द लिखना
नहीं जरूरत होगी तुम्हें
किसी दूसरे के उधार चेहरे की
कभी न कभी उसके चेहरे पर ही
पुत जायेगी कालिख
कब तक वह चेहरे बदलेगा
वह लगायेगा शांति के नारे
पर चीख मचाता शोर करेगा
अमन और तसल्ली देने का दावा करता
बिखेर देगा अशांति इस जहां में
इसलिये उसका नाम भी चमकेगा
क्योंकि शोर की ताकत होती है ज्यादा
पर उम्र उसकी कम होती है
इसलिये भूल जायेगा जमाना नाम उसका
फिर कौन उसकी कद्र करेगा
तुम लिखना शांति के शब्द
प्रेम का प्रचार करना
जीवन जिससे महकता हो
उसे फूल जैसी रचना का सृजन करना
बनी बनाई इमारतों को ढहाना
बहुत आसान होता है
उसकी आवाज गूंजती है जोर से
इसलिये जमाने की नजर बहुत जल्दी जाती है
फिर फेर भी लेते हैं नजरे लोग उतनी ही जल्दी
जब इमारत का टूटा ढेर नजर आता है
तुम रखना एक एक ईंट अपने हाथ से
बनाना अपनी नयी इमारत
तुम्हारे बदने से निकलते पसीने पर
नहीं जायेगी किसी की नजर
कभी लगेगी भूख तो कभी होगा प्यास का कहर
पर बन जायेगी इमारत रचना की
कीर्ति स्तंभ पर तुम्हारा ही नाम गढ़ेगा
जिसे चमकते देखकर हैरान हुए थे तुम
जिस पर जमीं थी नजर जमाने की
चमकता था नाम जिसका आकाश में
उस विध्वंस और अशांति पैदा करने वाले
शख्स को याद कर तुम सोचोगे
पर जमाने में उसका नाम लेने वाला नहीं बचेगा
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2 comments:
bahut khub,aatank ko koi yaad nahi rakhta,magar shanti ki imarat banane wale hamesha dil ein rehenge
Waah ! bahut bahut sundar....
ekdam sahi kaha.....
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