Thursday, November 6, 2008

अपने आप को ही गरीब पाओगे-व्यंग्य कविता


खूब खेलो और नृत्य करो
अभिनय करते हुए लोगों का दिल बहलाओ
जमकर कमाओ पैसा तो महान बन जाओगे
लकड़ी और प्लस्टिक के खिलौनो से
बचपन में खेले लोग
बड़े होकर हांड़मांस के खिलौनो से
खेलने के आदी हो जाते हैं
तुम उनके साथ जमकर खेलो
पर अहसास दिलाओ
उनको स्वयं खेलने का
तो तुम इस जिदंगी के खेल में जीत जाओगे

काल्पनिक कहानियों के पात्र बन जाओ
लोगों को भ्रम में सच दिखाओ
तो तुम उनके इष्ट बन जाओगे
लोगों का चाहिये हर पल कुछ नया
दौलत और शौहरत की इस दौड़ में
जुटे हैं सभी लोग
तुम दिल बहलाकर बटोर लो दौलत
बिना दौड़े किसी दौड़ में
पर्दे पर कई बार विजेता बन जाओगे

सच से दूर रहना सीख लो
खुद को ही दो धोखा
तभी दूसरे को भी दे पाओगे
हां, यह जरूरी होगा
क्योंकि सत्य कभी बदल नहीं सकता
भ्रम के रूप तो पल पल बदल सकते हैं
चमकती रौशनी कितनी भी तेज हो
सूर्य जैसी तो नहीं हो सकती
कितना भी सुंदर सूरत हो
चांद जैसी सीरत नहीं हो सकती
दरियादिल तो दिखने के होते
समंदर जैसी गहराई उनमें नहीं हो सकती
कभी इतिहास के नायकों जैसा
बनने का ख्वाब नहीं देखना
उनकी हकीकत भी वैसी बयान नहीं होती
फिर पूरा जमाना करने लगा है नकल मेे ही
असल जैसा विश्वास
तब असली नायक होने की सोची तो पछताओगे

तुम करते रहो स्वांग
खुद को भी यकीन दिला दो कि
तुम ही हो वाकई महान
अगर नहीं कर सकते तो
आम इंसान बन जाओ
देखो सच को अपनी आंखों से
महसूस करो अपनी ताकत को
जमाना तुम्हें चाहे, यह उम्मीद छोड़ दो
हंसना सीख लो अपनी हालातों पर
जमाने को बताना छोड़ दो
वह हंस सकता है मु्फ्त में तुम पर
अगर मौका दिया हंसने का
उसे अपना दर्द बताकर
तब अपने आप को ही गरीब पाओगे

..................................


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4 comments:

विवेक सिंह said...

ठीक है ठीक है . अच्छा व्यंगियाया आपने .

Sadhak Ummedsingh Baid "Saadhak " said...

व्यंग्य किया खुद पर अगर,तो समझोगे बात.
लम्बी कविता में कही,यह छोटी सी बात.
इक छोटी सी बात,बदल दे जीवन धारा.
दीपक भारतदीप, बनाये कविता-कारा.
यह साधक कुछ कविता ढूँढ रहा है.
आप सरीखे द्दिग्गजों से पूछ रहा है.

Udan Tashtari said...

सही है.

रंजना said...

सत्य कहा......

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