Monday, November 3, 2008

मुन्ने के बापू ने भी ऐसा ही लिखा था प्रेमपत्र-हास्य कविता

आवारा आशिक देखता था
उसे रोज गाडी में आते जाते
आ गया दिल तो उसने लिख कर प्रेम प्रस्ताव
और रास्ते में थमा दिया
"प्रिये रोज तुम्हें आते जाते देखता हूँ
तुम पहली हो जिस पर दिल आया
कितना सुन्दर तुम्हारा चेहरा है
क्या लहराते काले लम्बे बाल हैं
तुम्हारी चाल है हाथी की तरह मतवाली
मेरा दिल भी है खाली
इसलिए यह प्रेम प्रस्ताव तुमको दिया"

गाडी पर चलती लडकी भौचक्क रह गयी
किसी तरह संभली
पत्र हाथ में लेकर पढा
फिर गाडी पर बैठकर ही लिख जवाब लिख दिया
"गाडी पर हेलमेट पहनकर चलती हूँ
तुमने मेरे चेहरे के बारे में कैसा अनुमान कर लिया
बालों में लगाती हूँ रंग जो है लाल
घर से जाती हूँ इसी गाडी पर
अपने बच्चे को स्कूल से वापस लाने
वरना कभी बाहर पैदल नहीं चलती
गाडी की चाल हो सकती है मतवाली
मेरी कैसे समझ लिया
पर मुझे याद आया मुन्ने के बापू ने भी
भेजा था ऐसे ही प्रेमपत्र
जब मैं कालिज जाती थी
उस समय नहीं समझी थी
तब भी हेलमेट पहनाकर ऐसी ही गाडी पर जाती
आज पूछूंगी घर आते ही
उन्होंने कैसे मेरी सुन्दरता का वर्णन कर दिया
होता है झगडा तो परवाह नहीं
अच्छा हुआ तुमने मुझे याद दिला दिया
अंधी थी उसके प्यार में
मैंने कभी इस तरफ ध्यान नहीं दिया"

लड़के ने उत्तर देखकर अपना सर पीट लिया
फिर जो देखा उसका चेहरा
तो बहुत खुश हो गया
वह उसके उस दोस्त की पत्नी थी
लिखवा गया था ऐसा ही प्रेम पत्र पर
जिसने शादी की बाद उसके लक्षणों को देखते हुए
कभी घर में नहीं घुसने दिया
इस तरह उसने बदला लिया

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