ओहदा दर ओहदा
कितनी भी सीढ़ियां चढ़कर
पहाड़ जैसी हैसियत बना लो,
तुम्हारी गुलामी फिर भी छिप नहीं पायेगी।
आजाद होकर जिंदा रहने की
तुम्हारी कभी ललक नहीं दिखी,
दस्तखत केवल उसी कागज पर किये
जिस पर केवल दौलत की इबारत लिखी,
कमजोरों पर अजमाये हाथ
मगर ताकतवरों के तलुव चाटने वाली
तुम्हारी असली तस्वीर ज़माने से छिप नहीं पायेगी।
कितनी भी सीढ़ियां चढ़कर
पहाड़ जैसी हैसियत बना लो,
तुम्हारी गुलामी फिर भी छिप नहीं पायेगी।
आजाद होकर जिंदा रहने की
तुम्हारी कभी ललक नहीं दिखी,
दस्तखत केवल उसी कागज पर किये
जिस पर केवल दौलत की इबारत लिखी,
कमजोरों पर अजमाये हाथ
मगर ताकतवरों के तलुव चाटने वाली
तुम्हारी असली तस्वीर ज़माने से छिप नहीं पायेगी।
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
hindi poet,writter and editor-Deepak 'Bharatdeep',Gwalior
http://dpkraj.blgospot.com
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