खजाना हाथ लग जाये
तो उसे ठिकाने लगाने की
अक्ल भी आना चाहिए,
दौलत सभी के पास आती है
मगर अक्ल कई लोगों से घबड़ाती है,
खर्च करने की तमीज भी चाहिए।
कहें दीपक बापू
कब नहीं भरे थे
खजाने इस देश में,
फिर भी गरीब रहे फटे वेश में,
जेब में रखी गिन्नियां
सेठों के सिर चढ़कर बोलती हैं
आकाश में ढूंढ रहे फरिश्तों के लिये
इंसान की आंखें अपनी नजर खोलती हैं,
जिस धरती पर खड़े हैं लोग
उसकी ताकत समझने की
तमीज होना चाहिए।
अमीर है देश है अपना,
सोना पाने का है सभी का सपना
मोटे पेट वालों को
भूख की मतलब समझना चाहिए।
तो उसे ठिकाने लगाने की
अक्ल भी आना चाहिए,
दौलत सभी के पास आती है
मगर अक्ल कई लोगों से घबड़ाती है,
खर्च करने की तमीज भी चाहिए।
कहें दीपक बापू
कब नहीं भरे थे
खजाने इस देश में,
फिर भी गरीब रहे फटे वेश में,
जेब में रखी गिन्नियां
सेठों के सिर चढ़कर बोलती हैं
आकाश में ढूंढ रहे फरिश्तों के लिये
इंसान की आंखें अपनी नजर खोलती हैं,
जिस धरती पर खड़े हैं लोग
उसकी ताकत समझने की
तमीज होना चाहिए।
अमीर है देश है अपना,
सोना पाने का है सभी का सपना
मोटे पेट वालों को
भूख की मतलब समझना चाहिए।
यह आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप का चिंतन’पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.अनंत शब्दयोग
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिका
4.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान पत्रिका5.दीपक बापू कहिन
6.हिन्दी पत्रिका
७.ईपत्रिका
८.जागरण पत्रिका
९.हिन्दी सरिता पत्रिका
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.अनंत शब्दयोग
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिका
4.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान पत्रिका5.दीपक बापू कहिन
6.हिन्दी पत्रिका
७.ईपत्रिका
८.जागरण पत्रिका
९.हिन्दी सरिता पत्रिका
No comments:
Post a Comment