अवसाद के क्षण भी बीत जाते हैं,
जब मन में उठती हैं खुशी की लहरें
तब भी वह पल कहां ठहर पाते हैं,
अफसोस रहता है कि
नहीं संजो कर रख पाये
अपने गुजरे हुए वक्त के सभी दृश्य
अपनी आंखों में
हर पल नये चेहरे और हालत
सामने आते हैं,
छोटी सी यह जिंदगी
याद्दाश्त के आगे बड़ी लगती है
कितनी बार हारे, कितनी बार जीते
इसका पूरा हिसाब कहां रख पाते हैं।
----------
कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
---------------------------
यह कविता/आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप की अभिव्यक्ति पत्रिका’ पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.दीपक भारतदीप का चिंतन
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिका
समाधि से जीवन चक्र स्वतः ही साधक के अनुकूल होता है-पतंजलि योग सूत्र
(samadhi chenge life stile)Patanjali yog)
-
*समाधि से जीवन चक्र स्वतः ही साधक के अनुकूल होता
है।-------------------योगश्चित्तवृत्तिनिरोशःहिन्दी में भावार्थ -चित्त की
वृत्तियों का निरोध (सर्वथा रुक ज...
3 years ago
2 comments:
बहुत अच्छी कविता...
http://veenakesur.blogspot.com/
अच्छी पंक्तिया लिखी है .....
हमें भी पढ़े :-
( खुद को रम और भगवन को भांग धतुरा ....)
http://thodamuskurakardekho.blogspot.com/2010/09/blog-post_09.html
Post a Comment