दिल में नहीं था कहीं
पर जुबान से लेते रहे राम का नाम,
बनाते रहे अपने काम,
बरसती रही उन पर रोज़ माया,
फिर भी चैन नहीं आया,
कुछ लोग मतलब से पास आते हैं,
निकलते ही दूर चले जाते हैं,
राम का नाम बेचने में
उनको आता है मज़ा,
मगर मिलती है उनको भी बैचेनी की सज़ा,
भक्तों के लिये भोले हैं राम,
जरूरत से बनाते जाते काम
पर जो भक्तों को भुलाते हैं,
झूठे दर्द का वास्ता देकर रुलाते हैं,
नाम लेने से भर जाती उनकी भी झोली,
मगर हृदय में नहीं होते राम,
नहीं पाते इसलिये वह कभी आराम।
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कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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3 years ago
1 comment:
सही बात कही है ....
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