सुंदरता अब सड़क पर नहीं
बस पर्दे पर दिखती है
जुबां की ताकत अब खून में नहीं
केवल जर्दे में दिखती है।
सौंदर्य प्रसाधन पर पड़ती
जैसे ही पसीने की बूंद
सुंदरता बह जाती,
तंबाकू का तेज घटते ही
जुबां खामोश रह जाती,
झूम रहा है वहम के नशे में सारा जहां
औरत की आंखें देखती
दौलत का तमाशा
तो आदमी की नजर बस
कृत्रिम खूबसूरती पर टिकती है।
कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
---------------------------
यह कविता/आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप की अभिव्यक्ति पत्रिका’ पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.दीपक भारतदीप का चिंतन
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिका
1 comment:
सच्चाई को बहुत सुंदर तरीके से उदघाटित किया है आपने।
------------------
जिसपर हमको है नाज़, उसका जन्मदिवस है आज।
कोमा में पडी़ बलात्कार पीडिता को चाहिए मृत्यु का अधिकार।
Post a Comment