Monday, November 2, 2009

मनुष्यता-त्रिपदम (mansushyata-tripadam)

यह लघुता
चाहती है प्रभुता
छुरे के साथ।

वह क्रूरता
नाम रखे साधुता
खूनी हैं हाथ।

बड़ी शत्रुता
मांगती है मित्रता
सोच अनाथ।

मनुष्यता
बरतती पशुता
बनती नाथ।

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कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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