Tuesday, September 29, 2009

प्रायोजन की महिमा-व्यंग्य कवितायें

अपना दर्द यूं जमाने को न दिखाओ
दवा देकर इलाज करने वाले
हर जगह नहीं मिलते हैं।
जो अल्फाजों की जादूगरी से
जख्मों का बहता खून चूस लें
इस जहां में
जुबानी हमदर्दी के ऐसे सौदागर भी मिलते हैं।
..............................
चक्षुहीन करते प्रकृति सौंदर्य का बखान
बहरे सिर हिलाते, सुनकर कोई भी गान
पैसे से प्रायोजन की महिमा होती अपरंपार
गूंगे गाते कविता, मूर्ख बताते वेदों का ज्ञान।
...............................
यह कविता/आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप की अभिव्यक्ति पत्रिका’ पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.दीपक भारतदीप का चिंतन
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिका

लेखक संपादक-दीपक भारतदीप

1 comment:

शरद कोकास said...

"ज़ुबानी हमदर्दी के ऐसे सौदागर " का जवाब नही ।

समस्त ब्लॉग/पत्रिका का संकलन यहाँ पढें-

पाठकों ने सतत अपनी टिप्पणियों में यह बात लिखी है कि आपके अनेक पत्रिका/ब्लॉग हैं, इसलिए आपका नया पाठ ढूँढने में कठिनाई होती है. उनकी परेशानी को दृष्टिगत रखते हुए इस लेखक द्वारा अपने समस्त ब्लॉग/पत्रिकाओं का एक निजी संग्रहक बनाया गया है हिंद केसरी पत्रिका. अत: नियमित पाठक चाहें तो इस ब्लॉग संग्रहक का पता नोट कर लें. यहाँ नए पाठ वाला ब्लॉग सबसे ऊपर दिखाई देगा. इसके अलावा समस्त ब्लॉग/पत्रिका यहाँ एक साथ दिखाई देंगी.
दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका


लोकप्रिय पत्रिकायें

विशिष्ट पत्रिकाऐं

हिंदी मित्र पत्रिका

यह ब्लाग/पत्रिका हिंदी मित्र पत्रिका अनेक ब्लाग का संकलक/संग्रहक है। जिन पाठकों को एक साथ अनेक विषयों पर पढ़ने की इच्छा है, वह यहां क्लिक करें। इसके अलावा जिन मित्रों को अपने ब्लाग यहां दिखाने हैं वह अपने ब्लाग यहां जोड़ सकते हैं। लेखक संपादक दीपक भारतदीप, ग्वालियर