आस्तीन में ही पलते हैं
धोखा देते हैं वही लोग
जो कदम दर कदम साथ चलते हैं
अपना राजदार किसी को न बनाना
ज़माने में अपने ही बदनाम करते हैं
जो तुम अपनी बात दिल में नहीं रखते
तो भला कोई और कैसे रखेगा
इसे कान से उस कान में जाते हुए
शब्द भी अर्थ बदलते हैं
जो कोई और न जाने राज हमारा
यह जानते हुए भी
हम कोई राजदार पाने के लिए क्यों मचलते हैं
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2 comments:
हम कोई राजदार पाने के लिए क्यों मचलते हैं.
bahut sateek umda. deepak ji tahedil se badhaai .
मन को जो तोल सके वो राजदार सभी को चाहिए |
शानदार |
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