‘तू क्यों उस इंसान के लिये
हमारे से लड़ता है
जो सुबह आकाश में आफताब के आते ही
अपने से दूर करता है’
कहा चिराग ने
‘कुदरत ने बनाया है
मुझे तुमसे रात में लड़ने के लिये
सब जगह तुम्हें हटा नहीं सकता
जहां तक है मेरी रोशनी
तेरा घर वहां बन नहीं सकता
जैसे छोटा हूं उतनी ही है मेरी दुनियां
पर अपने कर्तव्य पालन के कारण
बहुत बड़े आफताब के बाद
तुमसे लड़ने में मेरा नाम ही चलता
इस धरती पर कई जगह
आफताब की रोशनी नहीं पहुंचती
वहां भी तेरे साथ मेरी होती जंग
फिर भी तुम्हारे लिये मेरे मन में द्वेष नहीं है
तुम्हारा होना मेरे लिये क्लेश नहीं है
तुम हो इसलिये इंसान को मेरी जरूरत है
आफताब का सहारा कुदरत है
पर तुम नहीं होते तो
हम दोनों का कोई हमारा मोल नहीं समझता
तराजू के एक पलड़ में कोई
चीज तोल नहीं सकता
हमारी रौशनी की पहचान
तुम्हारा अस्तित्व है
लोग भले ही कहें तुम्हारा दुश्मन
पर मैं तो तुम्हें अपना ही दोस्त कहता
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1 comment:
अच्छी शायरी, शयरियॉं ज्यादा पढ़ा तो नही हूँ क्योकि समझ में कम आती है। वकई आपने बहुत अच्छा लिखा है।
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