Wednesday, April 22, 2015

कोई दिल टूट न जाये-हिन्दी व्यंग्य कविता(koyee dil toot n jaye-hindi satire poem)

पूछते है लोग
तुम दिल पर कोई
रचना क्यों नहीं लिखते।

इश्क के अफसाने
इतने होते जहां में
क्या वह तुम्हें नहीं दिखते।

कहें दीपक बापू दिल ठहरा सौदागर
कभी किसी के जिस्म पर
जज़्बात छिड़कता है,
किसी सामान की किस्म पर
लात थिरकता है,
सर्वशक्तिमान के रूप भी
विज्ञापन के प्रचलन से
चुनता है,
चाहिये जहां भंवर से
पार होने के लिये सत्य की नाव
वह भ्रम के जाल बुनता है,
लोगों के जिस्म का
सबसे ताकतवर अंग दिल
कमजोरी का शिकार होता
कोई टूट न जाये
इसलिये उस पर कोई
व्यंग्य हम नहीं लिखते।

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लेखक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा भारतदीप
लश्करग्वालियर (मध्य प्रदेश)
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
hindi poet,writter and editor-Deepak 'Bharatdeep',Gwalior
http://dpkraj.blgospot.com

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