घर पर आया फंदेबाज और बोला
‘‘दीपक बापू इस बार देश में
बढ़ गयी है बहुत महंगाई,
गरीब तो टूटा है
मध्यम वर्ग वाला भी हो गया गरीब
हमें रंग न खेलकर
समाज सेवा का व्रत लेना है
यही सोच मेरे मन में आई,
आप तो फ्लाप कवि हो
पिटती हैं आपकी अंतर्जाल पर कविता
इसलिये कुछ नया करो
समाज सेवा के लिये बनाओ संस्था
करो आमजन की भलाई।’’
सुनकर हंसे और बोले दीपक बापू
‘‘लगता है होली का मजाक करने आये हो,
हमारे फ्लाप होने का सच
हमारे सामने धरने आये हो,
हमारी पुरानी टोपी
फटी धोती
और पैबंद लगा कुर्ता देखकर
तुम्हें परेशानी होती है,
की नहीं कभी कविता से कमाई
यह देखकर तुम्हारी नीयत पानी पानी होती है,
तुम जानते हो अच्छी तरह
नये ज़माने में समाज सेवा भी
एक तरह से हो गयी धंधा,
लाचारों के नाम पर सजाओ दुकान
कभी हवाई जहाज में करो दौरा
कभी कार में करो खरीददारी
बांट सको तो ठीक
नही हैं अपने काम में लाओ चंदा,
पहले प्रचार में प्रसिद्धि,
फिर उसके नकदीकरण में दिखाओ अपनी सिद्धि,
हमसे यह नहीं हो पायेगा,
पराये धन पर मजे करना हमें ही सतायेगा,
वैसे भी होली हम क्या मनायेंगे,
हालातों कर दिये सभी रंग लगते हैं फीके
किसी पर क्या लगायेंगे,
करेंगे कुछ चिंत्तन
कुछ रचेंगे हास्य कवितायें
देश की तो नहीं कर सकते
अपनी हृदय की ही करेंगे सफाई।
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लेखक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’
लश्कर, ग्वालियर (मध्य प्रदेश)
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियरhindi poet,writter and editor-Deepak 'Bharatdeep',Gwalior
http://dpkraj.blgospot.com
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