भगवान बड़े हैं
उनकी तलाश में वह भटक रहे हैं,
कण कण में जो व्याप्त हैं
उसका कण ढूंढकर उसमें अटक रहे हैं।
कहें दीपक बापू
जिसे छुआ नहीं जा सकता,
आंखों से देखना भी संभव नहीं,
उसकी आवाज सुन सकें
ऐसे कान मिलना भी मुश्किल है,
उसकी गंध सूंघ सके
वह नाक अभी तक बनी नहीं,
हम शब्द बोलें
पर वह सुने इसका आभास भी नहीं होता
उसके कण की सत्यता
कौन पहचानेगा
अज्ञान के अंधेरे में भटकते लोग
विज्ञान की रौशनी में
झूठ को सच समझे लटके रहे हैं।
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उनकी तलाश में वह भटक रहे हैं,
कण कण में जो व्याप्त हैं
उसका कण ढूंढकर उसमें अटक रहे हैं।
कहें दीपक बापू
जिसे छुआ नहीं जा सकता,
आंखों से देखना भी संभव नहीं,
उसकी आवाज सुन सकें
ऐसे कान मिलना भी मुश्किल है,
उसकी गंध सूंघ सके
वह नाक अभी तक बनी नहीं,
हम शब्द बोलें
पर वह सुने इसका आभास भी नहीं होता
उसके कण की सत्यता
कौन पहचानेगा
अज्ञान के अंधेरे में भटकते लोग
विज्ञान की रौशनी में
झूठ को सच समझे लटके रहे हैं।
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कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
hindi poet,writter and editor-Deepak 'Bharatdeep',Gwalior
http://dpkraj.blgospot.com
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