मुफ्त के माल पर कब्जा कर जिंदगी को सजाओगे।
गुजर जाये कई बरस बड़े आराम और शांति से शायद
मगर जब आया बुलडोजर तो खून के आंसुओं से नहाओगे।
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तुम्हारे अतिक्रमण पर हुआ आक्रमण
भला कौन तुम्हें बचायेगा,
हदों से बाहर बने आशियानों में
रहने वाले तभी तक रहेंगे बेखौफ
जब तक जमींदौज करने कोई नहीं आयेगा।
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अपनी खिड़की से बाहर
यूं न झांका करो,
कोई परिंदा आंख से टकरा जायेगा,
हदों से बाहर है तुम्हारा आशियाना,
पर अहसास होगा इसको तब तुम्हारा
जब कोई लोहे का हरकारा खौफ बनकर आयेगा।
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कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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